यह तो आपने सुना ही होगा कि बिन विद्या नर पशु समान. बचपन में जब घरवाले हमें स्कूल भेजते थे, हमें किताबों पुस्तकों का ज्ञान नहीं था. लेकिन हम तब भी अज्ञानी नहीं थे. हम बातों को समझते थे, लेकिन तार्किक क्षमता विकसित नहीं हुई थी.

स्कूल पहुंचे, वहां हमारी शब्दकोश से पहचान कराई गई. तब हमें ये समझ आने लगा कि हम जो कुछ भी बोलते हैं उसे लिखा जाता है. उसे लिखा कैसे जाता है, लिखने के बाद वो शब्द के रूप में कैसा लगता है यह हमें पता चला और तब हम शब्द रूपी कलाकृति से परिचित हुए. लेकिन उस शब्द के कितने और अर्थ हो सकते हैं और उन शब्दों का हमारी जीवनशैली पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये सब हमें हमारे गुरुओं के द्वारा दी गई किताब को पढ़ कर समझ आया.

हम सभी बचपन से यही सुनते आए हैं कि किताबें इंसान की सब से अच्छी दोस्त होती है. जिस से हमारे अंदर चीजों को सोचने समझने का ज्ञान आता है और हम अनुभवी कहलाते हैं. एक किताब, किसी भी व्यक्ति को इंजीनियर, डाक्टर, अफसर, और बिजनेसमैन बनाती है. सिर्फ यही नहीं बल्कि एक किताब, किसी भी व्यक्ति को सफलता के उस श्रेष्ठतम पायदान पर ले जाती है जहां पहुंच कर वो व्यक्ति अपनी कहानी, कागज के महज चंद टुकड़ों में समेट कर एक किताब के रूप में पूरी दुनिया को अपने कीर्तिमान और शौर्य का परिचय करवाती है.

बहरहाल, एक समय था जब हमारे पास पढ़ने के लिए केवल पुस्‍तकें होती थीं. किताबों के बारे में मिसाइल मेन अब्‍दुल कलाम कह गए हैं. ‘एक अच्छी किताब हजार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक पुस्तकालय के बराबर होता है.’

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