निर्देशक गुलजार की 1975 में आई फिल्म ‘आंधी’ ने सफलता के तमाम रिकौर्ड तोड़ डाले थे. इस फिल्म पर तब तो विवाद हुए ही थे, यदाकदा आज भी सुनने में आते हैं, क्योंकि यह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी पर बनी थी. संजीव कुमार इस फिल्म में नायक और सुचित्रा सेन नायिका की भूमिका में थीं, जिन का 2014 में निधन हुआ था.

‘आंधी’ का केंद्रीय विषय हालांकि राजनीति था. लेकिन यह चली दरकते दांपत्य के सटीक चित्रण के कारण थी, जिस के हर फ्रेम में इंदिरा गांधी साफ दिखती थीं, साथ ही दिखती थीं एक प्रतिभाशाली पत्नी की महत्त्वाकांक्षाएं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह पति को भी त्याग देती है और बेटी को भी. लेकिन उन्हें भूल नहीं पाती. पति से अलग हो कर अरसे बाद जब वह एक हिल स्टेशन पर कुछ राजनीतिक दिन गुजारने आती है, तो जिस होटल में ठहरती है, उस का मैनेजर पति निकलता है.

दोबारा पति को नजदीक पा कर अधेड़ हो चली नायिका कमजोर पड़ने लगती है. उसे समझ आता है कि असली सुख पति की बांहों, रसोई, घरगृहस्थी, आपसी नोकझोंक और बच्चों की परवरिश में है न कि कीचड़ व कालिख उछालू राजनीति में. लेकिन हर बार उसे यही एहसास होता है कि अब राजनीति की दलदल से निकलना मुश्किल है, जिसे पति नापसंद करता है. राजनीति और पति में से किसी एक को चुनने की शर्त अकसर उसे द्वंद्व में डाल देती है. ऐसे में उस का पिता उसे आगे बढ़ने के लिए उकसाता रहता है. इस कशमकश को चेहरे के हावभावों और संवादअदायगी के जरीए सुचित्रा सेन ने इतना सशक्त बना दिया था कि शायद असल किरदार भी चाह कर ऐसा न कर पाता.

आरती बनीं सुचित्रा सेन दांपत्य के दूसरे दौर में खुलेआम अपने होटल मैनेजर पति के साथ घूमतीफिरती और रोमांस करती नजर आती है, तो विरोधी उस पर चारित्रिक कीचड़ उछालने लगते हैं. स्वभाव से जिद्दी और गुस्सैल आरती इस पर तिलमिला उठती है, क्योंकि उस की नजर में वह कुछ भी गलत नहीं कर रही थी. चुनाव प्रचार के दौरान जब उस से यह सवाल हर जगह पूछा जाता है कि होटल मैनेजर जे.के. से उस का क्या संबंध है, तो वह हथियार डालती नजर आती है. ऐसे में पति उसे संभालता है. चुनाव प्रचार की आखिरी पब्लिक मीटिंग में वह पति को साथ ले कर जाती है और सच बताते हुए कहती है कि ये उस के पति हैं. अगर इन के साथ घूमनाफिरना गुनाह है, तो वह गुनाह उस ने किया है. आखिर में रोतीसुबकती आरती भावुक हो कर जनता से अपील करती है कि वह वोट नहीं इंसाफ मांग रही है.

जनता उसे जिता कर इंसाफ कर देती है. फिल्म के आखिरी दृश्य में जब वह हैलिकौप्टर में बैठ कर दिल्ली जा रही होती है तब संजीव कुमार उस से कहता है कि मैं तुम्हें हमेशा जीतते हुए देखना चाहता हूं. फिल्म इसी सुखांत पर खत्म हो जाती है. लेकिन बुद्धिजीवी दर्शकों के सामने यह सवाल छोड़ जाती है कि क्या कल कैरियर के लिए छोड़े गए पति को सार्वजनिक रूप से स्वीकारना भी राजनीति का हिस्सा नहीं था? यह जनता के साथ भावनात्मक ब्लैकमेलिंग नहीं थी?

साबित यह होता है कि राजनीति में सब कुछ जायज होता है. साबित यह भी होता है कि एक महत्त्वाकांक्षी पत्नी, जिसे हार पसंद नहीं, जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.

इंदिरा गांधी: मिसाल व अपवाद

फिल्म से हट कर देखें तो इंदिरा गांधी भारतीय महिलाओं की आदर्श रही हैं. वजह एक निकाली जाए तो वह यह होगी कि 70 के दशक में औरतों पर बंदिशें बहुत थीं. उन का महत्त्वाकांक्षी होना गुनाह माना जाता था और इस महत्त्वाकांक्षा की हत्या तब बड़ी आसानी से प्रतिष्ठा, इज्जत और समाज के नाम के हथियारों से कर दी जाती थी. चूंकि इंदिरा गांधी इस का अपवाद थीं, इसलिए उन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षा को जिंदा रखा और दांपत्य व गृहस्थी के झंझट में ज्यादा नहीं पड़ीं तो वे मिसाल और अपवाद बन गईं. नई पीढ़ी उन के बारे में यही जानती है कि वे एक सफल और लोकप्रिय नेत्री थीं. पर यह सब उन्होंने किन शर्तों पर हासिल किया था, इस की झलक फिल्म ‘आंधी’ में दिखाई गई है.

इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी का पत्नी पर कोई जोर नहीं चलता था. इसीलिए इंदिरा अपने अंतर्जातीय प्रेम विवाह पर कभी पछताई नहीं न ही उन्होंने कभी सार्वजनिक तौर पर पति की निंदा या चर्चा की. इस खूबी ने भी जिसे पति का सम्मान समझा गया था उन्हें ऊंचे दरजे पर रखने में बड़ा रोल निभाया.

लेकिन जब पत्नी इतनी महत्त्वाकांक्षी हो कि घर तोड़ने पर ही आमादा हो जाए तब पति को क्या करना चाहिए ताकि गृहस्थी भी बनी रहे और पत्नी का नुकसान भी न हो? इस सवाल का एक नहीं, बल्कि अनेक जवाब हो सकते हैं, जो मूलतया सुझाव होंगे, क्योंकि स्पष्ट यह भी है कि पत्नी का महत्त्वाकांक्षी होना समस्या नहीं है, समस्या है पति द्वारा उसे मैनेज न कर पाना. इसी कड़ी में गत अक्तूबर के आखिरी हफ्ते में पाकिस्तान के मशहूर 63 वर्षीय क्रिकेटर इमरान खान का भी नाम आता है, जिन्होंने अपनी पत्नी रेहम खान को तलाक दे दिया. उल्लेखनीय है कि रेहम खान और इमरान दोनों की यह दूसरी शादी थी. रेहम को पहले पति से 3 बच्चे हैं और इमरान को भी पहली पत्नी से 2 बच्चे हैं. उम्र में रेहम इमरान से 20 साल छोटी हैं.

इस तलाक की वजह दोनों की दूसरी शादी या बेमेल शादी नहीं, बल्कि इमरान खान की मानें तो रेहम की बढ़ती राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं जिम्मेदार हैं. इमरान पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दल तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के संस्थापक और मुखिया हैं. चर्चा यह भी रही कि रेहम पीटीआई पर कब्जा जमाना चाहती थीं. वे नियमित पार्टी की मीटिंग में जाने लगी थीं और कार्यकर्ताओं की पसंद भी बनती जा रही थीं. पीटीआई का दखल पाकिस्तान की सत्ता में हो या न हो, लेकिन वहां की सियासत में खासा दखल है, जिस की वजह पाकिस्तान में इमरान के चाहने वालों की बड़ी तादाद है.

इस तनाव पर पेशे से कभी बीबीसी में टीवी ऐंकर रहीं रेहम ने यह बयान दे कर जता दिया कि इस तलाक की वजह वाकई उन की महत्त्वाकांक्षा है. रेहम का कहना है कि पाकिस्तान में उन्हें गालियां दी जाती थीं. वहां का माहौल औरतों के हक में नहीं है. वे तो पूरे देश भर की भाभी हो गई थीं. जो भी चाहता उन्हें गालियां दे सकता था. तलाक के बाद रेहम ने यह भी कहा कि इमरान चाहते थे कि वे रोटियां थोपती रहें यानी एक परंपरागत घरेलू बीवी की तरह रहें, जो उन्हें मंजूर नहीं था. जाहिर है, वाकई रेहम की महत्त्वाकांक्षाएं सिर उठाने लगी थीं और इमरान को यह मंजूर नहीं था.

एक फर्क शौहर होने का

क्या सभी पतियों से ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वे पत्नि की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करने के रास्ते में अड़ंगा नहीं बनेंगे? तो इस सवाल का जवाब साफ है कि नहीं, क्योंकि पुरुष का अपना अहम होता है. वह पत्नी को खुद से आगे बढ़ने का, अपनी अलग पहचान बनाने का और लोकप्रिय होने का मौका नहीं देता. इस बाबत पूरी तरह से उसे ही दोषी ठहराया जाना उस के साथ ज्यादती होगी. जब पत्नी कह सकती है कि वह ही क्यों झुके और समझौता करे, तो पति से यह हक नहीं छीना जा सकता. सवाल गृहस्थी और बच्चों के साथसाथ अघोषित विवाह नियमों का भी होता है.

1973 में अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी द्वारा अभिनीत फिल्म ‘अभिमान’ ने भी बौक्स औफिस पर झंडे गाड़े थे. इस फिल्म में पतिपत्नी दोनों गायक होते हैं. लेकिन पूछपरख पत्नी की ज्यादा होने लगती है, तो पति झल्ला उठता है. नौबत अलगाव तक की आ जाती है. पत्नी मायके चली जाती है और गर्भपात हो जाने से गुमसुम रहने लगती है. बाद में पति उसे मना कर स्टेज पर ले आता है और उस के साथ गाना गाता है. लेकिन ऐसा तब होता है जब पत्नी हार मान चुकी होती है. स फिल्म की खूबी थी मध्यवर्गीय पति की कुंठा, जो पत्नी की सफलता और लोकप्रियता नहीं पचा पाता, इसलिए दुखी और चिड़चिड़ा रहने लगता है. उसे लगता है पत्नी के आगे बढ़ने पर दुनिया उस की अनदेखी कर रही है. पत्नी के कारण उस की प्रतिभा का सही मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है और लोग उस का मजाक उड़ा रहे हैं. अब नजर रील के बजाय रियल लाइफ पर डालें, तो अमिताभ शीर्ष पर हैं और हर कोई जानता है कि इस में जया भादुड़ी का योगदान त्याग की हद तक है. जिन्होंने पति के डूबते कैरियर को संवारने के लिए ‘सिलसिला’ फिल्म में काम करना मंजूर किया था. ऐसा आम जिंदगी में होना और हर कहीं दिख जाना आम बात है कि प्रतिभावान महत्त्वाकांक्षी पत्नी का पति अकसर हीनभावना और कुंठा का शिकार रहने लगता है. वजह उस की कमजोरी उजागर करता एक सच उस के सामने आ खड़ा होता है.

यहां से शुरू होता है द्वंद्व, कशमकश, चिढ़ और कुंठा. पति जानतासमझता है कि वह पत्नी से पीछे है और यह सच सभी समझ रहे हैं. दांपत्य का यह वह मुकाम होता है जिस पर वह पत्नी को नकार भी नहीं सकता और स्वीकार भी नहीं सकता. जबकि पत्नी की इस में कोई गलती नहीं होती. इधर सफलता और लोकप्रियता की सीढि़यां चढ़ रही पत्नी पति की कुंठा और परेशानी नहीं समझ पाती. लिहाजा, अपना सफर जारी रखती है. उधर पति को लगता है कि वह जानबूझ कर उसे चिढ़ाने और नीचा दिखाने के लिए ऐसा कर रही है. ऐसे में जरूरत ‘अभिमान’ फिल्म की बिंदु, असरानी और डैविड जैसे शुभचिंतकों की पड़ती है, जो पतिपत्नी को समझा पाएं कि दरअसल में गलत दोनों में से कोई नहीं है. जरूरत वास्तविकता को स्वीकार लेने की है, जिस में किसी की कोई हेठी नहीं होने वाली.

पर ऐसे शुभचिंतक फिल्मों में ही मिलते हैं, हकीकत में नहीं. इसलिए पति की कुंठा हताशा में बदलने लगती है और वह कई बार क्रूरता दिखाने लगता है.इस कुंठा से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि  पति पत्नी की हैसियत और पहुंच को दिल से स्वीकार करे और पत्नी को चाहिए कि वह पति को यह जताती रहे कि ये तमाम उपलब्धियां उस की वजह और सहयोग से हैं. इस में कोई शक नहीं कि महत्त्वाकांक्षी पत्नी की पहली प्राथमिकता उस की अपनी मंजिल होती है, गृहस्थी, बच्चे या पति नहीं. पर इस का मतलब यह भी कतई नहीं कि उसे इन की चिंता या परवाह नहीं होती. इस का मतलब यह है कि वह अपनी प्रतिभा पहचानती है, लक्ष्य तक पहुंचना उसे आता है और वह कोई समझौता करने में यकीन नहीं करती.

याद रखें

– पतिपत्नी में किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा गृहस्थी और दांपत्य दोनों के लिए सुखद नहीं है, इसलिए इस से बचें. एकदूसरे की भावनाओं और इच्छाओं के सम्मान से ही दोनों वे सब पा सकते हैं, जो वे पाना चाहते हैं. – पत्नी जिंदगी में कुछ बनना या हासिल करना चाहती है, तो कुछ गलत नहीं है. यह उस का हक है. लेकिन पत्नियों को यह देखसमझ लेना चाहिए कि वे जो पाना चाहती हैं उस से आखिरकार हासिल क्या होगा और पति की भावनाओं को जरूरत से ज्यादा ठेस तो इस से नहीं लग रही.

– पति का प्रोत्साहन और प्रशंसा पत्नी की प्रतिभा को निखारती है. उस की मंशा पति को नीचा दिखाने की नहीं होती. यह नौबत तब ज्यादा आती है जब पति कुढ़ने लगता है और पत्नी की उपलब्धियों में से खुद की भागीदारी खत्म कर लेता है.

– पत्नी कमाऊ हो, सार्वजनिक जीवन जी रही हो तो पति को चाहिए कि वह बजाय हीनभावना से ग्रस्त होने के पत्नी पर गर्व करे.

पछतावा सईद जाफरी का

हाल ही में दिवंगत हुए 86 वर्षीय अभिनेता सईद जाफरी ने 2 शादियां की थीं और दोनों ही असफल सिद्ध हुईं.

सईद की पहली पत्नी मधुर जाफरी दिल्ली के एक संपन्न परंपरावादी कायस्थ परिवार की थीं और खुद भी पति की तरह कलाकार, ऐंकर और एक कामयाब सैलिब्रिटी कुक थीं और आज भी हैं. इन दोनों का प्यार परवान चढ़ा और शादी में तबदील हो गया. शादी के बाद सईदमधुर को 3 बेटियां हुईं. मधुर प्रतिभाशाली होने के साथसाथ एक अच्छी पत्नी और गृहिणी भी थीं. लेकिन सईद ने उन की कद्र नहीं की. नतीजतन टकराहट शुरू हुई और तलाक हो गया.

सईद का यह भ्रम जल्द ही टूट गया कि मधुर उन के बगैर कुछ नहीं कर पाएंगी. हुआ उलटा. मधुर को तलाक के बाद खुद को साबित करने का मौका मिला और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुकरी के क्षेत्र में खूब नाम कमाया. सईद ने फिर जेनिफर से शादी की. लेकिन कुछ समय बाद जेनिफर की बेरुखी जब हदें पार करने लगीं तो उन्हें दोबारा मधुर की याद आई, जो सेनफोर्ड एलन नाम के शख्स से दूसरी शादी कर अमेरिका जा बसीं और पति व बेटियों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही हैं. तलाक के 8 साल बाद न जाने किस उम्मीद और हिम्मत से सईद उन से मिलने अमेरिका उन के घर पहुंचे तो उस वक्त सकते में रह गए जब मधुर ने उन से मिलने से सख्ती से मना कर दिया. लेकिन बेटियां आखिरी बार मिल लीं.

VIDEO : मैटेलिक कलर स्मोकी आईज मेकअप

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