पति व पत्नी में खटपट तो हर घर में होती है, लेकिन जब झगड़े इतने बढ़ जाएं कि पत्नी अपना घर छोड़ कर मायके चली जाए या तलाक ले ले तो इस का ज्यादा खमियाजा पति को ही भुगतना पड़ता है जो हर काम के लिए पत्नी पर आश्रित रहा है. दो अलग परिवारों से, अलग परिवेश, अलग आर्थिक स्थितियों, अलग संस्कारों, अलग आदतों, अलग शिक्षा पाए दो लोग जब शादी के बंधन में बंध कर एक छत और एक कमरे में साथ रहने लगते हैं तो दोनों के बीच तालमेल बैठतेबैठते एक लंबा समय लग जाता है.
अगर पतिपत्नी के बीच पहले से प्रेम है तो एकदूसरे के प्रति आकर्षण के चलते तालमेल जल्दी बैठ जाता है, लेकिन अरेंज मैरिज के केस में जहां दोनों एकदूसरे के व्यक्तित्व और आदतों से अनजान होते हैं, तालमेल बैठाने में देर लगती है. कभीकभी यह तालमेल नहीं भी बैठता है. दोनों अपनी आदतों और संस्कारों के अनुरूप ही व्यवहार करते हैं और चाहते हैं कि दूसरा उसे स्वीकार करे. ज्यादातर वैवाहिक जोड़ों में देखा गया है कि पुरुष चाहता है कि उस की पत्नी अपने घर की आदतें-व्यवहार छोड़ कर उस के घर के अनुसार ढल जाए. पति ही नहीं बल्कि उस का पूरा परिवार इस कोशिश में जुट जाता है कि बहू अपने मायके के सारे रीतरिवाज, आदतव्यवहार भूल कर अब ससुराल वालों के मुताबिक ही चले. सास किचन में बहू को अपने तरीके से खाना बनाना सिखाने लगती है. सोचिए कि 25-30 साल तक एक लड़की अपनी मां से सीखसीख कर जिस तरह का भोजन पकाती आई है,
उसे दरकिनार कर उसे जबरन नए सिरे से सास के तरीके का खाना बनाना सीखना पड़ता है, फिर भले सास की रैसिपी उस की मां की रैसिपी से गईगुजरी और बेस्वाद क्यों न हो. भारत में मांएं बड़े जतन से अपनी बेटियों को बचपन से ही तरहतरह के पकवान बनाना सिखाती हैं ताकि ससुराल जा कर बेटी सुस्वाद भोजन बना कर खिलाए और अपने सासससुर व पति का दिल जीत सके. मगर ससुराल आ कर तो उस को पता चलता है कि 2 दशकों तक उस की मां ने उस पर जो मेहनत की, वह सारी व्यर्थ है क्योंकि ससुराल में तो सास के तरीके से खाना बनाना है. यहां अगर उस ने अपनी मां की रैसिपी ट्राई की तो उस के बनाए खाने में तमाम तरह के नुक्स निकाले जाएंगे. पति व पत्नी के बीच दरार पड़ने व आएदिन झगड़ों की सब से बड़ी वजह सास और उस का किचन होता है. सास, बहू के झगड़ों और मनमुटाव में लड़का मां और पत्नी के बीच ऐसा फंस जाता है कि फिर जिस पर उस का बस चलता है,
यानी उस की पत्नी, उसी पर सारी भड़ास निकालने लगता है. भारत में अधिकतर पति पत्नी में तलाक की मुख्य वजह सास है. जहां बहू और बेटे की एजुकेशन एकजैसी होती है और दोनों ही नौकरीपेशा होते हैं वहां भी बहू से औफिस के काम के साथ घर के सारे काम करवाए जाते हैं. एकाध साल में बच्चा हो गया तो घरबाहर के काम के साथ एक नई और बड़ी जिम्मेदारी भी उस पर आ जाती है. वह घरबाहर का काम भी करे, सास, ससुर और पति की सेवा भी करे और बच्चे भी पाले. कुछ अपवाद छोड़ दें तो आमतौर पर भारतीय पति जैसा शादी से पहले रहता आया है, वैसा ही शादी के बाद भी रहता है, बल्कि शादी के बाद तो उसे अपनी सेवा और सैक्स के लिए एक फ्री की नौकरानी भी मिल जाती है और उस का जीवन ज्यादा आसान व आनंदमय हो जाता है. लेकिन अपना घर छोड़ कर आई औरत के लिए ससुराल एक कारागार बन जाता है.
वह अपने मनमुताबिक कुछ कर ही नहीं सकती है. अपनी पसंद का खा नहीं सकती, अपनी पसंद का पहन नहीं सकती, अपनी इच्छानुसार कहीं आजा नहीं सकती, दोस्तों के साथ टाइम स्पैंड नहीं कर सकती. अधिकतर महिलाओं की दोस्त मंडली शादी के बाद छूट जाती है. उस के पास अपनी बातें शेयर करने के लिए कोई नहीं होता. ऐसे में वैवाहिक जीवन से औरत का मन उचटना, बातबात पर खिसियाना, चिड़चिड़ाना और अवसादग्रस्त होना, लड़ना झगड़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. भारत में लड़की की शादी बहुत महंगी होती है. दहेज के रूप में उस के पिता को लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं, इसलिए कोई लड़की अपना घर नहीं तोड़ना चाहती और जहां तक हो सके, सब से निभाने की कोशिश करती है. अधिकांश औरतें अपना मन मार कर ससुराल और पति के अनुसार इसलिए ढल जाती हैं ताकि उन का शादीशुदा जीवन शांतिपूर्ण तरीके से चले.
आर्थिक रूप से पति पर आश्रित महिलाएं मजबूरी में ससुराल द्वारा थोपे गए सारे नियमकानून मानती हैं और काम के बो झ को ढोती हैं. मगर ध्यान रखना चाहिए कि गुब्बारे को एक सीमा तक ही दबाया जा सकता है, उस से ज्यादा दबाने पर गुब्बारा फट जाएगा. पढ़ीलिखी, कामकाजी और अपने हक के प्रति जागरूक महिलाएं बहुत ज्यादा दबाव और ससुराल वालों के मनमाने रवैए को झेलने को तैयार नहीं होती हैं. यही कारण है कि अब एकल परिवारों की संख्या बढ़ने के साथ तलाक के मामले भी बढ़ रहे हैं. गौरतलब है कि भारत में तलाकशुदा औरत को लोग बड़ी बेचारगी और हीनता की दृष्टि से देखते हैं. हाय! अब इस बेचारी का क्या होगा, कौन करेगा इस से शादी, मांबाप पर बो झ बन कर आ गई, ससुराल वालों से नहीं निभा पाई, पति ने निकाल बाहर किया आदिआदि बातों से उसे छलनी करने की कोशिश की जाती है. जबकि तलाकशुदा पुरुष के बारे में ये बातें सुनने को नहीं मिलती हैं.
पुरुषों को ज्यादा दिक्कत हालांकि तलाकशुदा औरत परिवार और समाज द्वारा तमाम लानतमलामत करने के बाद भी खुद को जल्दी संभाल लेती है. अगर वह नौकरीपेशा है तो अलग घर ले कर आराम से रहने में उसे कोई दिक्कत नहीं होती है. वह अपने सारे काम खुद करने की आदी होती है. अपने किसी काम के लिए उसे दूसरे का मुंह नहीं देखना पड़ता है. जबकि तलाक होने पर आदमी को औरत से ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है क्योंकि वह अपने हर काम के लिए औरत पर निर्भर रहा है. बचपन से किशोरावस्था तक मां पर और उस के बाद बीवी पर. बुढ़ापे में मां से काम नहीं होता और अगर बीवी भी छोड़ कर चली गई तो वह असहाय सा हो जाता है. प्रभास की पत्नी सुलक्षणा बेहद सुंदर थी. आसपास के घरों में उस की खूबसूरती की चर्चा होती थी. उस का व्यवहार भी पड़ोसियों के साथ बहुत अच्छा था. 2 बच्चे होने के बाद उस की खूबसूरती और निखर गई थी. जबकि उस के मुकाबले में प्रभास का रंगरूप बहुत दबा हुआ था. प्रभास में इस को ले कर एक हीनभावना तो थी ही, वह सुलक्षणा के चरित्र पर भी शक करने लगा था. सुलक्षणा की सास आग में घी डालने का काम करती थी.
आज वह इस पड़ोसी से बात कर रही थी, कल वह उस को खिड़की से देख रही थी, इस तरह की बातें वह बेटे के कान में भरती रहती थी. इस के चलते प्रभास और सुलक्षणा के बीच अकसर विवाद होने लगा. फिर प्रभास पत्नी पर हाथ भी उठाने लगा. सुलक्षणा पहले ही घर और बच्चों की देखभाल में चकरघिन्नी बनी रहती थी, उस पर पति का यह रूप उस से सहा नहीं गया. एक दिन वह दोनों बच्चों को छोड़ कर अपने मायके चली गई और उस के बाद कभी नहीं लौटी. प्रभास और उस का परिवार 2 साल तक सुलक्षणा की मानमनौवल करता रहा मगर वह वापस नहीं आई. आखिरकार, दोनों की रजामंदी से तलाक हो गया और बच्चे प्रभास के पास रहे. तलाक के 6 महीने बाद ही सुलक्षणा की एक अन्य व्यक्ति से शादी हो गई और इधर प्रभास के सिर पर एक भारी बो झ आ गया. तलाक के वक्त सुलक्षणा द्वारा बच्चों को न मांगे जाने से प्रभास जितना खुश था, उन की जिम्मेदारियां उठाने में अब उस को दिन में तारे नजर आने लगे. उस की मां बुढ़ापे का बहाना ले कर कामकाज से अलग हो गई.
बच्चों की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी प्रभास के सिर आ गई. सुबह उठ कर उन के लिए नाश्ता और लंच बनाना, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, उन्हें नहलानाधुलाना, यूनिफौर्म पहनाना, उन्हें स्कूल छोड़ने जाना, स्कूल से ले कर आना, उन का होमवर्क करवाना, खानेपीने, कपड़ों आदि का ध्यान रखना, हर सुबह के लिए उन का यूनिफौर्म साफ और प्रैस कर के रखना, छुट्टियों में उन को घुमाने ले जाना, उन की जरूरत का सामान खरीदना, अपने खुद के हजार काम जो अब तक सुलक्षणा बिना कुछ बोले करती आई थी, वह सब करने में प्रभास के हाथपैर फूलने लगे. दरअसल औरतों द्वारा घर में किए जाने वाले ये तमाम काम अकसर मर्दों को नजर ही नहीं आते हैं. ये कितने थकाऊ और समय लेने वाले काम हैं, यह तभी पता चलता है जब खुद करना पड़ता है. प्रभास की आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं थी कि कोई फुलटाइम नौकर रख सके. घर के नीचे ही एक छोटी किराने की दुकान थी, जिस से घर का खर्चा चलता था. दूसरी शादी में कभी बच्चे अड़चन बन रहे थे, कभी उस की दबी हुई पर्सनैलिटी तो कभी तलाक का लांछन. लोग कहते जो इतनी सुंदर और सुशील पत्नी से नहीं निभा पाया, उसे अब कौन अपनी लड़की देगा? घर में मां की गैरमौजूदगी बच्चों ने शिद्दत से महसूस की. पिता से सवाल भी किए मगर प्रभास उन को कभी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया. अब कई साल बीत चुके हैं.
बच्चे अब किशोरावस्था में पहुंच गए हैं मगर काफी कोशिशों के बाद भी प्रभास की दूसरी शादी नहीं हुई. घर, दुकान और बच्चों की परवरिश के बीच झूलते हुए उस की काया पहले से ज्यादा बदसूरत हो चुकी है. वह अवसादग्रस्त और चिड़चिड़ा सा रहने लगा है. 40-42 साल की उम्र में 50-55 का नजर आता है. दूसरी तरफ सुलक्षणा अपनी दूसरी शादी से बहुत खुश है. उस के पास फिर से 2 बच्चे हैं. प्रभास से हुए बच्चों की तरफ उस ने आज तक पलट कर नहीं देखा. ऐसी ही कहानी गाजियाबाद के रहने वाले रामशरण की है. रामशरण और उस की पत्नी सरला शादी के बाद कुछ साल तक तो बड़े प्यार से रहे. दोनों के एक बेटा हुआ. मगर चौथे बरस रामशरण की मां भी गांव से आ कर उन के साथ रहने लगी. मां शुगर और बीपी की मरीज थी. यहां उस का इलाज चलने लगा. रामशरण की पत्नी सरला ने सास की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी. बिन साथी सब सूना बीमारी के कारण सरला को 2 जगह खाना बनाना पड़ता था. मां के लिए सादा और पति के लिए मिर्चमसाले वाला. छोटे बच्चे के साथ उस को सास की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ रही थी. वह खुद पास के एक प्राइवेट स्कूल में पार्टटाइम पढ़ाने जाती थी, मगर सास के आ जाने से उस को नौकरी भी छोड़नी पड़ गई. साल बीततेबीतते मां ने रामशरण को अपने वश में कर लिया और सरला के काम में मीनमेख निकालने लगी.
नतीजा पति व पत्नी के आराम से चल रहे जीवन में भूचाल आ गया. 2 साल ऐसे ही नरमगरम मामला चलता रहा. जब सरला की बरदाश्त की सीमा खत्म हो गई तो वह बेटे को ले कर मेरठ अपने मायके चली गई. वहां उस ने बच्चे का एडमिशन पास के एक स्कूल में करवा दिया. अब गाजियाबाद में रामशरण मां के साथ अकेले रहता है. घर का सारा काम अब उसे ही करना होता है. सुबह दूधसब्जीभाजी लाने से ले कर खाना बनाने, कपड़े धोने और घर की साफसफाई के अलावा मां की दवा व इंजैक्शन का खयाल उसे ही रखना पड़ता है. सरला न तो उसे तलाक देने को तैयार है और न उस के पास वापस लौटने को. पत्नी के यों छोड़ जाने से रामशरण अकेला और परेशान है. जबकि सरला अपने मायके में अपने मातापिता के साथ मजे से रह रही है. उस के बच्चे को नानानानी का भरपूर प्यार मिल रहा है. समाज की आम धारणा के विपरीत पत्नी के बिना पति का जीवन बिलकुल वैसा ही उजाड़ हो जाता है जैसे सूखी धरती का बारिश के बिना. जीवन में ऐसी दरारें पड़ जाती हैं जिन में प्रेम और स्नेह की कोई कोंपल नहीं फूटती. ऐसी स्थिति शारीरिक और मानसिक रोग का आधार बनती है.
68 वर्षीय राम बहादुर सिंह सोशल मीडिया पर अपने अकेलेपन का दर्द बांटते हुए लिखते हैं कि कहावत है बच्चे की मां और बुड्ढे की घरवाली का मरना अच्छा नहीं. जीवन का आंनद खत्म हो जाता है. जीता तो है आदमी मगर जिंदा लाश की तरह. कुछ कह नहीं सकता, दूसरे का मुहताज हो जाता है. मैं स्वयं भुक्तभोगी हूं. बच्चे हर प्रकार से ध्यान रखते हैं पर उन की भी एक सीमा है, उस से परे वे भी विवश हैं. कहते हैं, घूमोफिरो पर अकेले यहांवहां टक्कर मारने से क्या मिलेगा. मेरी तो सलाह है कि यदि आप के बच्चे अच्छे हैं तो उन के किसी भी काम में दखल मत दो, खासतौर से बहू के, क्योंकि घर उस को ही चलाना है. वह एक जीवित प्राणी है, वह गुलामी करने के लिए नहीं आई है.