एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत सुधीर का ट्रांसफर घर से दूर वड़ोदरा शहर में हो गया. उस ने इस शहर के बारे में सुना तो बहुत था लेकिन उसे यहां आने का अवसर कभी नहीं मिला था. कोई परिचित भी यहां नहीं रहता कि मन को थोड़ी तसल्ली हो जाती. दिल्ली से वड़ोदरा पहुंच कर उस ने अपना नया औफिस जौइन कर लिया. घर से औफिस और औफिस से घर, यही उस की दिनचर्या बन गई. साप्ताहिक अवकाश बिताना उस के लिए भारी पड़ने लगा. क्या किया जाए, कब तक ऐसा चलेगा, अपना शहर भी इतना पास नहीं कि भाग कर घर चला जाए और परिवार से मिल आए. यह सब सोच कर वह परेशान रहने लगा. ऐसी स्थिति किसी के लिए भी उत्पन्न हो सकती है. दिनचर्या व्यवस्थित हो जाए और आप बोर भी न हों, इस के लिए निम्न उपाय अपना सकते हैं :
वर्कलोड में न दबें
नया शहर है, घर जा कर क्या करूंगा. ऐसी धारणा से प्रभावित लोग छुट्टी होने के बाद भी औफिस में समय बिताने लगते हैं. वे ज्यादा से ज्यादा काम करने लगते हैं. आप के इस तरीके का फायदा अन्य सहकर्मी उठा सकते हैं. घर जाते समय वे अपना काम आप को सौंप देंगे. ‘लो, टाइम अच्छा पास हो जाएगा,’ यह चुटकी ले कर वे अपने घर के लिए निकल जाएंगे और आप काम के नीचे दबे थकेमांदे रात को घर पहुंचेंगे. इसलिए अत्यधिक वर्कलोड से बचें. अपना काम बेहतर और समय पर पूरा करें. भूल कर भी औफिस का काम घर न लाएं.
शहर को जानें
मान लें कि आप के किसी परिचित ने आप के समक्ष उस शहर की गलत तसवीर प्रस्तुत कर दी. उस ने वहां होने वाले अपराध, लोगों के चरित्र, डरावने स्थान आदि बता कर नैगेटिव फीडबैक दे दी. इस पर आंख मूंद कर विश्वास न करें, न ही घबराएं. स्वयं उस शहर को जानने का प्रयास करें. खाली समय मिलने पर सहकर्मियों से सही जानकारी प्राप्त करें. उन से प्रमुख स्थानों, बाजारों, खानपान आदि के बारे में बात करें. सबकुछ सम?ाजान कर इस की एक सूची बना लें. जिन सहकर्मियों से घनिष्ठ संबंध बन जाएं उन के पते और मोबाइल नंबर नोट कर लें. आवश्यकता पड़ने पर उन से संपर्क किया जा सकता है. साप्ताहिक अवकाश के दिन शहर का जायजा लेने के लिए घर से बाहर निकलें. यदि आप वहां टे्रन से आए थे तो एक बार बस अड्डा भी देख आएं. प्रमुख दुकानें, अस्पताल और दर्शनीय स्थल कहां हैं, अवसर मिलते ही उन का जायजा लें.
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