दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं के दिन जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं वैसे-वैसे स्टूडेंटस के बीच टेंशन और स्ट्रेस बढ़ता जा रहा है. स्टूडेंट्स के ऊपर बोर्ड एग्जाम में अच्छे नंबर लाने का दवाब बढ़ने से उनके दिमाग और सेहत दोनों पर काफी बुरा प्रभाव देखने को मिलता है. परीक्षा की तैयारी में अकसर बच्चे अपनी नींद में कटौती करने लगते हैं, जिस वजह से उन्हें टेंशन और एग्जाम फोबिया जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है.

वैदिकग्राम के डॉक्टर अजय सक्सेना कहते हैं “इस समय जरुरी होता है की घर में पॉजिटिव माहौल रहे. इसके साथ ही परीक्षा की तैयारी के बीच रोज आधे घंटे का समय योग और मैडिटेशन पर देना जरुरी है. इस समय हम नस्यं विधि को प्रयोग में ला सकते है जिसमें बच्चों के माथे में मेडिकेटिड तेल के प्रयोग से स्ट्रेस खत्मकर कंसंट्रेशन पॉवर को स्ट्रोंग करने में मदद मिलती है. पदमासन और सर्वांगासन करने से यादाश्त तेज़ होती है और साथ ही शरीर भी तंदरुस्त रहता है. कई बार हमें बच्चों से यह सुनने के लिये मिलता है की उनका ध्यान पढ़ाई से ज्यादा एग्जाम के ऊपर रहता है जिस वजह से वह पूरी तरह से विषयों को याद नहीं कर पाते हैं और समय भी बर्बाद होता है. इसकी वजह ध्यान की कमी है, जिसे बच्चे कपालभारती और अन्लोम बिलोम के द्वारा दूर कर सकते है.”

10वीं कक्षा के छात्रों में हार्मोनल बदलाव भी होते है जिनकी वजह से उनके व्यवहार में काफी बदलाव आता है. कई बार चिड-चिड़ापन बढ़ जाता है खास कर परीक्षार्थियों को इस तरह की काफी चीजों का सामना करना पड़ता है. बदलते मूड से बच्चों में डिप्रेशन ओर डिमोटीवेट होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है. बच्चों में एग्जाम के समय कोर्टीसोल और एपिनेफ्रीन जैसे स्ट्रेस हार्मोन रिलीज़ होते है जिनसे उन्हें विषयों की तैयारी पर ध्यान केन्द्रित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इसी विषय पर डीपीएस इंदिरापुरम की प्रिंसिपल मीता राय ने कहा “इस समय बच्चे बहुत जल्दी निराश और हताश हो जाते हैं. इस वक्त घरवालों की भूमिका काफी अहम हो जाती है. यह बहुत जरुरी होता है की अभिवावक अपने बच्चों की दूसरों से तुलना न करें तथा उन पर अनावश्यक दवाब न डाले और बच्चों को जितना हो सके प्रोत्साहित करें, जिससे उनके आत्मविश्वास में कोई कमी न आये.”

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