वह लंबा, डब्लू डब्लू एफ के पहलवानों जैसा है और उस के चेहरे पर गोटी (बकरा दाढ़ी) भी है. वह लाल लंगोट पहनता है, अपने पिता से नफरत करता है, उस की आंखों में हमेशा गुस्सा भरा रहता है, जिसे देख कर अपने मोगैम्बो (अमरीश पुरी) को भी गर्व होता है. जो लोग गेमिंग से परिचित हैं वे समझ गए होंगे कि हम प्लेस्टेशन के गेम ‘गौड औफ वार’ के चरित्र क्रेटोस का जिक्र कर रहे हैं, जो हमारे बैडरूम में प्रवेश कर गया है और सौतन की भूमिका निभा रहा है.
यह कैसे संभव है? आज की आधुनिक संस्कृति में सैक्सुअल आकर्षण लिंगविशिष्ट की सीमाओं को पार कर गया है. हम आज तक ‘सामान्य’ व ‘स्वाभाविक’ से जो कुछ समझते थे उसे फिर से परिभाषित किया जा रहा है. प्रेम करने के लिए जरूरी नहीं कि आप किसी पुरुष या महिला या दोनों से प्रेम करें. आप किसी से भी प्रेम कर सकते हैं और प्रेम करने में यह नहीं देखते कि वह क्या है और उस का लिंग क्या है. वह क्रेटोस की तरह गेमिंग का चरित्र भी हो सकता है. आधुनिक संस्कृति में इसे पैनसैक्सुअल कहते हैं.
क्षमा पांडे के जीवन में दूसरी महिला वास्तव में गुस्सैल व गंजा क्रेटोस है. एक सरकारी बैंक में पीओ के पद पर कार्यरत क्षमा पांडे के लिविंगरूम में जब गहरी सांसें लेते हुए, सीना खोले क्रेटोस ने पहली बार प्रवेश किया था तो उन्हें लगा था कि यह उन के पति की मित्रमंडली का एक और पागलपन है जो जल्द रफूचक्कर हो जाएगा. लेकिन जब रात की ये बैठकें बढ़ने लगीं और क्षमा के पति क्रेटोस की मदद हत्या व सैक्स में करने लगे तो क्षमा को क्रेटोस सौतन लगने लगा. क्रेटोस की तरह वह भी गुस्से व बदले की भावना से फड़फड़ाने लगी. आखिरकार प्लेस्टेशन का एक पिक्सीलेटिड चरित्र उन के पति के खाली समय का हिस्सेदार बन गया था. अपनी सौतन पर किस आत्मनिर्भर महिला को गुस्सा नहीं आता?
क्षमा पांडे अकेली ऐसी महिला नहीं हैं जिन के निजी जीवन में गेमिंग किरदार प्रवेश कर गए हैं. उन के हंसतेखेलते संबंधों को बरबाद करने के लिए छोटे शहरों से ले कर महानगरों तक ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है, जिन्होंने शुरूशुरू में तो अपने साथियों के गेमिंग शौक को उन में लड़कपन का लौटना समझा, लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि गेमिंग शराब व ड्रग से भी बुरी लत है तो उन के लिए क्रेटोस जैसी सौतनों को बर्दाश्त करना असंभव हो गया.
ऐसी महिलाओं के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि जिम्मेदारियों से भरी वास्तविक दुनिया की तुलना वर्चुअल वर्ल्ड से कैसे हो सकती है जिस में तेज रफ्तार कारें, तरबूजरूपी वक्षों वाली महिलाएं, चरम सुख प्राप्ति के हथियार, छिपी पहचान व गहरी सांसों वाले अन्य स्रोत भरे पड़े हैं?
वर्चुअल वर्ल्ड ने महिलाओं के जीवन में एक अजीब किस्म का बदलाव ला दिया है. उन्हें बर्थडे, विवाह, मुंडन आदि समारोह में अकेले जाना पड़ रहा है. वे टीवी पर अपने पसंदीदा सासबहू सीरियल नहीं देख पा रही हैं. जब वे अपने पतियों, बौयफ्रैंडों को कंप्यूटर स्क्रीन को गालियां देते हुए देखती हैं या काल्पनिक हथियारों व चीट कोड्स से जूझता हुआ देखती हैं तो उन्हें संयम से काम लेना पड़ता है कि कहीं पार्टनर भड़क कर गुस्से से आगबबूला न हो जाए.
25 वर्षीय दिव्यानी पंडित देश की जानीमानी सौफ्टवेयर कंपनी में वैबसाइट डिजाइनर हैं. दिव्यानी की परेशानी यह है कि वे अपने लिव इन पार्टनर जगदीश कौशल से जब भी कोई प्रश्न करती हैं तो जवाब हमेशा 5-7 मिनट के बाद ही मिलता है. जगदीश कौशल शनिवार व रविवार को कम से कम 4 घंटे ‘काउंटरस्ट्राइक’ व ‘कौल औफ ड्यूटी’ गेम खेलने में गुजारते हैं. अगर घर पर मौका नहीं मिलता है तो कालोनी के पास वाले गेमप्लैक्स चले जाते हैं. चूंकि दोनों दिव्यानी व जगदीश कामकाजी हैं इसलिए उन्हें सही से साथ में समय बिताने के लिए वीकेंड ही मिल पाता है. लेकिन वीकेंड को भी जगदीश गेमिंग में व्यस्त हो कर नष्ट कर देते हैं. गेमिंग की वजह से दोनों के रिश्तों में तनाव आना शुरू हो गया है. इस बात का अंदाजा उन के बीच होने वाली वार्त्ता से लगाया जा सकता है.
दिव्यानी सवाल करती हैं, ‘‘आज दफ्तर में तुम्हारा दिन कैसा गुजरा?’’
5-7 मिनट तक कमरे में खामोशी छाई रहती है. इस बीच जगदीश 8-10 वर्चुअल आतंकियों को टपका देता है. फिर उसे अचानक खयाल आता है कि दिव्यानी भी कमरे में मौजूद है, ‘‘सौरी, तुम क्या पूछ रही थीं?’’
गेमिंग निश्चित रूप से संबंधों को प्रभावित कर रहा है. यह बात समाजशास्त्रियों से भी छिपी नहीं है. इस संदर्भ में अनेक अध्ययन किए जा चुके हैं. मसलन, जनरल औफ लेजर रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि 75 प्रतिशत गेमर्स के पार्टनर्स आशा करते हैं कि वे अपने संबंधों में अधिक समय निवेश करें. साथ ही यह भी मालूम हुआ कि जब एक पार्टनर गेमिंग में दूसरे से अधिक समय व्यतीत करता है तो इस से असंतुष्टि उत्पन्न होता है.
शालिनी सिंह गेमिंग के दीवाने आनंद प्रकाश की पत्नी हैं. वे हमेशा यही इच्छा करती हैं कि काश, वे गेम में एक किरदार होतीं. यह ख्वाहिश इसलिए है क्योंकि आनंद प्रकाश हर रोज, विशेषकर वीकेंड पर पूरा समय गेमिंग में ही गुजारते हैं. शालिनी सिंह का तो यहां तक कहना है कि आनंद प्रकाश का अपने एक्स-बौक्स 360 से ‘अफेयर’ चल रहा है और उन्होंने अपने टैबलेट्स व स्मार्टफोन से विवाह कर लिया है. इसलिए उन्हें अपनी पत्नी व बच्चों की कोई बात सुनाई नहीं देती, वे बहरे जैसे हो गए हैं.
गेमिंग व स्मार्टफोन की लत को दूर करना आसान नहीं है. पतिपत्नी में इस को ले कर झगडे हो रहे हैं, लेकिन लत है कि छूटने का नाम ही नहीं ले रही है. उस समय स्थिति बहुत विकट हो जाती है जब शालिनी आनंद के हाथों से स्मार्टफोन छीन लेती है और आनंद बिना कुछ कहे शालिनी का आईफोन उठा कर कोई दूसरा गेम खेलने लगता है. यह दृश्य ज्यादातर आधुनिक बैडरूमों का है. शालिनी ने कहा, ‘‘आओ, सो जाएं.’’ जवाब में आनंद ने कहा, ‘‘आप रूम में चलिए, मैं 5 मिनट में आता हूं.’’ यह रात 10:30 बजे शनिवार की बात थी. अचानक शालिनी ने अपने कंधे पर आनंद के हाथ का स्पर्श महसूस किया. उस ने आंखें खोल कर दीवारघड़ी की ओर देखा तो रविवार की सुबह के 8 बज रहे थे. शालिनी का चेहरा उतरना स्वाभाविक था.
गेमिंग के दीवानों के लिए सब से सुंदर रातें वे होती हैं जब उन की पत्नी मायके चली जाती हैं. जब पत्नी घर में निगरानी के लिए नहीं होती तो उस वक्त आजादी ही आजादी होती है. वह समय होता है रोलप्लेइंग गेम्स (आरपीजी) खेलने का जैसे ‘ड्यूस एक्स’. इस गेम्स में, जैसा कि नाम से ही जाहिर है, प्लेयर को निरंतर विकल्प दिए जाते हैं, जैसे क्या आप को रोबोट जैसा पैर चाहिए ताकि आप खामोशी से दुश्मनों के आगे निकल जाएं या आप को ऐसा अपग्रेड चाहिए जो आप को सुपर स्पीड पर दौड़ाए? इस किस्म के विकल्प निर्धारित करते हैं कि खिलाड़ी को गेम में आगे चल कर लोगों की किस किस्म की प्रतिक्रियाएं मिलेंगी.
जिन लोगों को गेमिंग की लत पड़ चुकी है वे उसे बनाए रखने के लिए यह भी प्रयास करते हैं कि उन के साथी की भी गेमिंग में दिलचस्पी पैदा हो जाए. लेकिन ये कोशिशें अकसर सकारात्मक परिणाम पैदा नहीं कर पातीं. इस की एक वजह तो यह है कि महिलाओं को ‘द औफिस जर्क’ जैसे साधारण गेम तो समझ में आ जाते हैं जिन में सहकर्मियों पर स्टैप्लर व फाइल फेंके जाते हैं, लेकिन उन्हें रोल प्लेइंग गेम्स समझ में नहीं आते. इन अजीबोगरीब गेम्स को समझाने के लिए संयम की आवश्यकता होती है.
शालिनी ने एक बार अपने पति के साथ एक्स-बौक्स 360 के एक गेम ‘गियर्स औफ वार’ खेलने की कोशिश की थी. लेकिन वह उन चालों को भी नहीं समझ पाई जो आजकल 5 साल का बच्चा भी आसानी से समझ लेता है. आनंद प्रकाश के गुस्से का ठिकाना न रहा जब उस ने देखा कि उस का चरित्र अपने ही खून में धीरेधीरे डूब रहा है और शालिनी फर्श को कत्ल करने का प्रयास कर रही है. आनंद प्रकाश गुस्से से चिल्लाया, ‘‘तुम उसे शूट क्यों नहीं कर रहीं? गोली क्यों नहीं चला रहीं? मैं मर रहा हूं और यह सब तुम्हारी गलती है.’’
ये गेम एक अजीब दुनिया में ले जाते हैं. इन से मस्तिष्क की वही कोशिकाएं उत्तेजित होती हैं जो सैक्स के दौरान सक्रिय हो जाती हैं. इसलिए न चाहते हुए भी गेम के दीवाने बाकी दुनिया से कट जाते हैं और इसी दीवानगी में खुश रहते हैं.
आमतौर से गेमिंग और पत्नियों के बीच जो रस्साकसी चल रही है वह सम?ौते में निबट जाती है. सजा के तौर पर पतियों को गेमिंग के लिए समय निर्धारित करना पड़ता है. आनंद प्रकाश दफ्तर से लौटते ही अपने कंप्यूटर पर नहीं बैठते वरना शालिनी तलाक दे कर चली जाएगी. इसलिए आनंद के लिए शनिवार की वे शामें कुंवारेपन की यादें बन कर रह गई हैं जब वे अपनी मित्रमंडली के साथ ‘काउंटर स्ट्राइक’ खेला करते थे. आज उन्हें पत्नी के लिए समय निकालना पड़ता है. भले ही मन में क्रेटोस की यादें दौड़ रही हों. ‘सौतन’ को बचाए रखने के लिए पत्नी को समय देना जरूरी होता है.