सभ्य और आधुनिक कहे जाने वाले समाज में आज बुजुर्गों की हालत बिरयानी में पड़े तेजपत्ते की तरह है. सब अपनेअपने में व्यस्त हैं. वृद्धों की व्यथा सुनने व समझने वाला कोई नहीं है, मगर ‘ठिकाना’ नामक स्वयंसेवी संस्था ने अकेलेपन के शिकार बुजुर्ग महिलाओं व पुरुषों को एक होने का मंच प्रदान कर सराहनीय कार्य किया है.

गणित के हिसाब से भले ही एक और एक 2 होता हो, लेकिन एकाकी जीवन जी रहे किसी भी बुजुर्ग महिला या पुरुष का एक से 2 होना सही माने में एक और एक ग्यारह वाली कहावत को चरितार्थ करता है.

मनोचिकित्सक अमिताभ डे सरकार ने बताया, ‘‘मैं वरिष्ठ नागरिकों की मानसिक स्थिति का लंबे समय से अध्ययन करता आ रहा हूं, इसलिए भलीभांति समझता हूं कि अकेलेपन के कारण जीने की इच्छा लगभग खत्म होने लगती है. और इसी वजह से कई तरह की शारीरिक व मानसिक बीमारियां घर करने लगती हैं.

ऐसे में यदि कोई बुजुर्गों के लिए हाथ बढ़ा कर मदद करे तो उस की जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है. ऐसा ही प्रशंसनीय व सराहनीय काम कर रही है ‘ठिकाना’ नामक संस्था.

संस्था द्वारा बीते दिनों सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले कोलकाता शहर के स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट क्लब में एकाकी रहने वाले बुजुर्गों के लिए ‘स्वयंवर’ आयोजित किया गया, जिस में 6 महिला और 5 पुरुष समेत कुल 11 प्रतिभागियों ने जीवनसाथी की तलाश में शिरकत की. महिला प्रतिभागियों का प्रवेश निशुल्क था और पुरुषों ने बतौर पंजीकरण शुल्क 600 रुपए अदा किए.

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आयोजकों ने बताया कि उन की संस्था के बैनर तले इसी तरह का पहला स्वयंवर दिसंबर 2017 में आयोजित किया गया था. आयोजकों के मुताबिक, संस्था का काम केवल मंच प्रदान करना है. इस के आगे का काम खुद प्रतिभागियों को करना है. मसलन, एकदूसरे को समझना, एकसाथ एक घर में रहना, शादी करना या दूर रह

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