मूलतः दक्षिण भारतीय विद्या बालन को कोलकाता के लोग बंगाली समझते हैं. तो वहीं वह बहुत अच्छी हिंदी बोलती हैं. उनसे बात करते समय इस बात का अहसास ही नहीं होता कि विद्या बालन हिंदी भाषी नहीं हैं. इन दिनों वह सुजोय घोष निर्देशित फिल्म ‘‘कहानी 2 : दुर्गारानी सिंह’’ को लेकर काफी उत्साहित हैं. उन्हे एक सफल फिल्म की आवश्यकता है. जिन लोगों ने ‘‘कहानी 2 : दुर्गारानी सिंह’’ का ट्रेलर है, वह तो विद्या बालन के अभिनय की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे हैं. पर अंतिम फैसला तो 2 दिसंबर को दर्शक ही करेंगे.

विद्या बालन की एक खासियत यह भी है कि उन्होंने संगीत का प्रशिक्षण ले रखा है, मगर अभी तक उन्होने दूसरी बौलीवुड अभिनेत्रियों की तरह किसी भी फिल्म में गीत नहीं गाया है. हाल ही में जब विद्या बालन से मुलाकात हुई, तो उनसे बंगाल, संगीत व महिलाओं के हालात पर विशेष बातचीत की. 

आपको पश्चिम बंगाल खासकर कोलकत्ता के लोग बंगाली समझते हैं?

– मैं मूलतः दक्षिण भारतीय हूं, जबकि कोलकाता के लोग मुझे बंगाली समझते हैं. यह महज संयोग है कि मैने चार फिल्मों की शूटिंग कोलकाता में की और तीनों ही फिल्मों में मैंने बंगाली किरदार निभाए. मैंने 2003 में एक बंगला फिल्म ‘‘भालो ठेको’’ में में भी अभिनय किया था. अब तक मैंने काफी बंगला सीख ली है. मैं बंगला गीत व संगीत की भी दीवानी हूं. कोलकाता में शूटिंग करना मेरे लिए हमेशा सुखद अनुभव रहता है. वहां हमेशा मुझे गर्मजोशी का अहसास मिलता है. वहां के लोग कला और कलाकार की कद्र करना जानते हैं.

आपने कर्नाटकी संगीत की ट्रेनिंग ली थी. पर आपने अभी तक किसी फिल्म में गाना नहीं गाया?

– मैं गायक नही हूं. मैं बहुत बेसुरा गाती हूं. संगीत सीखने का अर्थ यह नही होता कि सभी लता मंगेशकर बन जाएं. कुछ चीजें अपने लिए होती हैं. दक्षिण भारत में हम लड़के व लड़कियों को नृत्य व संगीत बचपन से सिखाया जाता है. इससे हमारे अंदर अनुशासन आता है. इसीलिए मैंने कर्नाटकी संगीत के अलावा नृत्य की भी ट्रेनिंग ली थी. पर मैंने कभी नहीं चाहा कि मैं किसी फिल्म में गाउं.

संगीत व नृत्य की ट्रेनिंग एक कलाकार को अभिनय करने में कहां मदद करती है?

– सिर्फ संगीत ही क्यों, नृत्य, मार्शल आर्ट या पेंटिंग की ट्रेनिंग हो, हर ट्रेनिंग इंसान को कभी न कभी मदद जरुर करती है. वह सारी ट्रेनिंग जिससे आप जिंदगी में एक नए नजरिए से जुड़ सकें, जिंदगी को नए नजरिए से समझ सकें, वह सब कलाकार की मदद करता है. हम गाने, नृत्य, दृश्यों में भावनाओं को व्यक्त करते हैं, यदि कलाकार को इसका अनुभव है, यदि कलाकार ने विविध प्रकार की ट्रेनिंग लेकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीखा है, तो वह उसके लिए मददगार ही होता है. देखिए, यह जरुरी नहीं है कि एक कलाकार के तौर पर आप जो कहानी कह रहे हैं, उसके अनुभव से आप निजी जिंदगी में गुजरे हों, मगर यदि आप किताबें पढ़ते हैं, नाटक देखते हैं, संगीत सुनते हैं, तो आपको एक अनुभव का अहसास होता है, इससे आपकी परफार्मेंस पर असर पड़ता है.

क्या आपको महिलाओं के मुद्दों पर समाज में कोई बदलाव नजर आ रहा है?

– हम कुछ लड़कियों या औरतों से मिलते हैं या कुछ पढ़ते हैं, तो हमें लगता है कि कुछ बदलाव आ गया है. पर जब कुछ अजीब सी चीजें सुनते हैं, तो लगता है कि कोई बदलाव नही आया. आज भी आपसे बात करने से कुछ समय पहले मैं अखबार पढ़ रही थी. मैंने खबर पढ़ी कि एक मां अपनी जुड़वा बेटियों को पैसे के लिए पड़ोसी के 17 साल के बेटे के हाथों बेचते हुए पकड़ी गयी. इस खबर को पढ़ने के बाद मेरे दिमाग में सवाल उठा कि क्या आज भी औरतों की स्थिति व औरतों से जुड़े मुद्दों में फर्क नहीं आया. पर हम पूरी तरह से यह नहीं कह सकते कि कोई फर्क नही आया. कई जगह फर्क आ रहा है, कई जगह फर्क नहीं आया. पर हर जगह से लोग बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं, यह एक अच्छी बात है.

पर जो बदलाव आना चाहिए, वह क्यों नही आ पा रहा है?

– देखिए, यह 10-20 वर्ष का मामला नहीं है. सदियों से जो हमारी सोच चली आ रही है, उसे बदलने का मसला है, जिसमें समय लगेगा. सदियों से कहा जाता रहा है कि यह मर्दों की दुनिया है. औरतों को इसी तरह से रहना चाहिए. औरतों को फलां काम नहीं करना चाहिए. हर औरत की जिंदगी पहले पिता, फिर भाई, फिर पति और फिर बेटे के साए में ही चलनी चाहिए. यह सोच इतनी जल्दी नही बदलेगी. 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...