अब पानी जैसे अदने से मुद्दे को ही लीजिए. कभी तो ये लोग पानी की कमी का रोना ले कर बैठ जाते हैं, कभी अधिकता का. इस साल तो दोनों मुद्दों पर एकसाथ शोर उठ रहा है.

दिल्ली शोर मचाने वालों के मामले में अव्वल है. देश की राजधानी है, आए- दिन यहां झंडेडंडे के साथ नारों का शोर मचता रहता है. शोर के मर्म को समझ कर ही दिल्ली के लोग बिजलीपानी की कमी का शोर मचा रहे हैं.

मुझे तो अनधिकृत कालोनियों से ले कर गरीबों की जे.जे. कालोनी तक इन चीजों का कोई अभाव नहीं दिखता. बिजलीपानी जैसी सभी सुविधाएं उन्हें लगभग मुफ्त मिल रही हैं. गरीब मानी जाने वाली दिल्ली की आधी आबादी 24 घंटे फुल स्पीड पर टीवी, म्यूजिक प्लेयर, हीटर, कूलर आदि चलाती है. सुबह और शाम जलबोर्ड के पानी से घर, आंगन और सड़कें धोती है. दिल्ली जल बोर्ड बेशकीमती गंगाजल दशकों से नालों में बहा रहा है.

विद्युत विभाग भी अपनी बिजली खुले दिल से लोगों में मुफ्त बांटता है. शहर भर में बिजली के तारों में फंसे कांटे इस के गवाह हैं.

अब यह सबकुछ तो वहीं हो सकता है जहां ये चीजें अधिक मात्रा में हों.

दिल्ली के मूल निवासियों के संसाधन (जल, जमीन, उद्योग, रोजगार) पर रोज दूसरे प्रदेशों से आ रही भीड़ कब्जा जमाती जा रही है. नेता, सरकार उन्हें हर तरह की सहायता देने को वचनबद्ध हैं. यहां तक कि बड़ी संख्या में विदेशी भी सरकारी जमीन पर अपनी झुग्गियां बसा कर शहर के असीमित संसाधनों को जल्दी खत्म करने में अपना कीमती सहयोग दे रहे हैं.

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