बेटा बन कर पैदा होना कोई मजे की बात नहीं है. बेटे की जिंदगी गधे की सी होती है. गधा जिंदगीभर मालिक का सामान ढोता रहता है तो बेटा मांबाप की फटकार, पढ़ाई, नौकरी और पत्नी के नाजनखरों के बोझ तले जिंदगी गुजारने को मजबूर रहता है. अगले जनम में बेटी बन कर पैदा होने की ख्वाहिश पाले एक बेटे की दास्तान आप भी पढि़ए.

मांबाप का अकेला बेटा, 2 बहनों का इकलौता भाई, घर का नूर, खानदान का चिराग, नाममात्र की जायदाद का वारिस व वंश वृद्धि का बायस, इतने सारे तमगे ले कर मैं अवतरित हो गया इस धरती पर.

‘‘तुझे पैदा करने के लिए मैं ने क्याक्या जतन किए, तुझे क्या मालूम है? मैं चाहती थी कि मेरी गोद में भी मेरा बेटा खेले, खानदान का नाम रोशन करने वाला, मेरा सिर ऊंचा करने वाला. बेटी पैदा होने पर न वह गुरूर महसूस होता है जो बेटा पैदा होने पर होता है. क्याक्या नहीं किया हम ने तेरे पैदा होने पर. सोहर गवाए, लड्डू बंटवाए, पूरे गांव को खाना खिलाया. आखिर अब

मैं भी एक बेटे वाली मां जो थी,’’ मां कहतीं.

मैं भुनभुना कर रह जाता, ‘स्वार्थी कहीं की.’ मुझे मालूम है, मां मुझे क्यों पैदा करना चाहती थीं क्योंकि मैं बड़ा हो कर उन का सहारा जो बनूंगा. कितने बेवकूफ हैं मेरे मांबाप. बेटा पैदा करने के साथ उस के लिए एक अच्छी नौकरी भी तो पैदा करनी चाहिए थी. अब भुगतो. जब तक नौकरी नहीं मिलती तब तक इस सहारे को सहारा दो.

मुझे बचपन से ही मांबाप तैयार कर रहे थे अपने बुढ़ापे के लिए, ‘हाय मेरा बचपन,’ मैं और मेरी बहनें टीवी देखते रहते. मां आवाज लगातीं, ‘बबलू, चलो, पढ़ने बैठो.’ मैं ठुनकता, ‘नहीं मां, मुझे अभी टीवी देखना है.’

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