02 शताब्दी के संघर्ष के देश को आजादी मिला . आजाद भारत के शुरूआती दिन में कई बीमारियों भारत को जकड किया , जो किसी ना किसी रूप में एक महामारी के तरह था. आइये जानते है आजाद भारत में किन किन बीमारियों ने महामारी के तरह कोहरा मचाया .

* कॉलरा (हैजा) :- 1940 के दशक में आजादी के लिए लड़ते भारत ने कॉलरा से भी संघर्ष कर रहा था .  इसे हैजा भी कहते हैं. पीने का गंदा पानी इसकी मुख्य वजह थी. हैजा ‘वाइब्रियो कॉलेरी’ नाम के बैक्टीरिया से फैलता है. यह बैक्टीरिया खराब हो चुके खाने और गंदे पानी में होता है. इसमें दस्त और उल्टियां होती हैं, जिससे मरीज शरीर का सारा पानी बाहर आ जाता है. इसका सीधा असर ब्लड प्रेशर पर पड़ता है. ब्लड प्रेशर लो हो जाता है. समय पर इलाज न हो जान भी जा सकती है. और फिर साफ पानी न मिलने पर मरीज की मौत कुछ घंटों के अंदर हो सकती है. 1941 के आस पास यह बीमारी भारत के गांवों में फैल गई. ऐसे फैली कि गांव के गांव साफ हो जाते. शुरू में लोग समझ नहीं सके लेकिन फिर दुनियाभर में इस बीमारी ने तबाही मचा दी. बताया जाता है कि 1975  के दशक में बंगाल की खाड़ी के इलाके में यह फिर से फैला था. 1990 के दशक में टीके की खोज के बाद इस पर काबू पाया गया.हाल ही में सामने आई राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2019 के अनुसार, हर साल भारत में हैजे के 100 से ज्यादा मामले सामने आते हैं. इसका इलाज सिर्फ टीका ही है.

* चेचक :– यह संक्रमण भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के साठ के दशक में काफी तेजी से फैला. इससे पहले 18वीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में हर साल चेचक से चार लाख लोगों की जान जाती थी. 20वीं सदी में चेचक की वजह दुनियाभर में लगभग 30 करोड़ लोगों की मौत हुई थी. चेचक दो तरह के होते हैं.  –

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स्मालपॉक्स (बड़ी माता) –  इस बीमारी में शरीर पर छोटे दाने हो जाते हैं , यह बीमारी ग्रामीण इलाकों में गहरे पैठी. अंधविश्वासों में लिप्त. इसे ‘व्हाइट पॉक्स’ भी कहा जाता था . भारत में इसका प्रभाव 19वीं सदी की शुरुआत में देखा गया. बड़ी माता दो वायरसों व्हेरोला प्रमुख और व्हेरोला के कारण होती है.

चिकनपॉक्स (छोटी माता) – चिकन पॉक्स के संक्रमण से पूरे शरीर में फुंसियों जैसी चकत्तियां हो जाती हैं.  वहीं छोटी माता वेरीसेल्ला जोस्टर नाम के वायरस से फैलती है. सामान्यत: चेचक, बीमार के संपर्क में आने से फैलता है.

यह संक्रमण की बीमारी है जो पांच से सात दिनों तक रहती है. इसे रोकने के लिए टीका लगाया जाता है.  भारत में 1960 के दशक के आसपास इसका प्रभाव बढ़ा. 1970 में इसे रोकने का अभियान शुरू किया गया. इस अभियान में पूरी जनसंख्या को टीका लगाना था. जो कि काफी मुश्किल टास्क था. 1977 से इसके उन्मूल का दावा होता है. इसके बाद भी भारत में हर साल लगभग 27 लाख बच्चों को चेचक होता है. डॉक्टर्स की सलाह रहती है कि 12 से 15 साल तक के बच्चों को टीका लगवा देना चाहिए.

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* मलेरिया :- हर साल दुनिया भर में मलेरिया के लगभग 22 करोड़ मामले सामने आते हैं. अगर मलेरिया का सही इलाज न हो तो समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है.  ‘वर्ल्ड मलेरिया’ रिपोर्ट 2019 के मुताबिक भारत में मलेरिया के मामलों में 24 फीसद तक कमी आई है. दुनिया में मलेरिया मरीजों के 70 फीसद मामले 11 देशों में पाए जाते हैं जिनमें भारत भी शामिल है. पिछले साल भारत में मलेरिया के मामलों में 24 फीसद की कमी आई और इसके साथ ही भारत मलेरिया की मार वाले शीर्ष तीन देशों में शुमार नहीं है. हालांकि अब भी भारत की कुल आबादी के 94 फीसद लोगों पर मलेरिया का खतरा बना हुआ है. भारत में मलेरिया मरीजों का 40 फीसद हिस्सा ओडिशा से आता था.कंपकंपी, ठंड लगना और तेज बुखार मलेरिया के लक्षण हैं.

* डेंगू, मस्तिष्क ज्वर, चिकनगुनिया और फाइलेरिया :– डेंगू, मस्तिष्क ज्वर, चिकनगुनिया और फाइलेरिया जैसी बीमारियां मच्छरों के काटने से ही होती हैं. हर साल लाखों लोग इन बीमारियों के चपेट में आते हैं और हजारों डेंगू से दम तोड़ देते हैं. डेंगू और चिकनगुनिया एडिस मच्छरों के काटने से फैलते हैं. मस्तिष्क ज्वर फैलाने वाला युलेस विश्नुई मच्छर धान के खेतों में ही पनपता है.

*एचआईवी (एड्स) :- एचआईवी  (ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस) शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं को संक्रमित कर देता है. एचआईवी कई तरीकों से फैल सकता है. भारत में एचआईवी का पहला मामला 1986 में सामने आया. इसके पश्चात यह पूरे देश भर में तेजी से फैल गया. एड्स के ज्यादातर मामले यौनकर्मियों में पाए गए हैं.

भारत को “पूर्णतः एड्स मुक्त” होने में अभी काफी समय लगेगा क्योंकि अभी भी देश में 15 से 49 वर्ष की उम्र के बीच के लगभग 25 लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं.वही पूरे विश्व में लगभग 3.53 करोड़ लोग एचआईवी से प्रभावित हैं. विश्व के लगभग 33.4 लाख बच्चे एचआईवी से प्रभावित हैं.

हालांकि 1990 की शुरुआत में एचआईवी के मामलों में अचानक वृद्धि दर्ज की गई, इसके बाद  सरकार ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के माध्यम से इसके रोकथाम के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है . भारत की 99 प्रतिशत जनसंख्या अभी एड्स से मुक्त है, बाकि एक प्रतिशत जनसंख्या में इसके फैलने की प्रवृति के आधार पर इस महामारी की रोकथाम एवं इस पर नियंत्रण करने संबंधी नीतियाँ बनाईं जा रही हैं.

* कैंसर :- क्या आप जानते है भारत में कैंसर महामारी का रूप धारण करता जा रहा है. भारत में अभी 2.25 मिलियन लोग कैंसर से जूझ रहे हैं. वही देश में हर साल कैंसर के करीब 12 लाख नये मामले आ  रहे है जो 2030 तक हर साल करीब 17 लाख और 2040 तक दोगुना होने की संभावना है.जबकि जर्नल ऑफ ग्लोबल ऑन्कालजी में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में कैंसर मरीजों का यह आंकड़ा हो जाएगा.

भारत में कैंसर तेजी से फैल रहा हैं. 2018 में देश में आबादी आधारित 42 कैंसर रजिस्ट्रियों से 28 प्रकार के कैंसर के आंकड़े  सामने आए तो पता चला कि 2016 में भारत में हुई कुल मौतों का 8·3 फीसदी मौत कैंसर के कारन हुआ .

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेसन के अनुसार, 30-50 फीसदी कैंसर की बीमारियों को रोका जा सकता है. कैंसर के सबसे बड़े खतरों, जैसे तंबाकू और UV rays से दूर रहें. क्या आप जानते है कि एक अकेली सिगरेट में 7000 कैमिकल होते हैं, और जिनमें से 50 से अधिक कैंसर होने का कारण बनते हैं. तो अगर कैंसर मूक्त रहना है तो आज ही तंबाकू  छोड़ें.

* स्वाइन फ्लू :- स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, जो ए टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है. इसे 1919 में एक महामारी के रूप में मान्यता दी गई थी. यह बीमारी 2009 में दुबारा लौटी और पुरे विश्व में कोहराम मचा दिया . तब से अब तक इसके मामले सामने आ ही रहे है . 2019 में स्वाइन फ्लू के 27,505 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 1137 लोगों को जान गंवानी पड़ी है. सबसे ज्यादा 5,052 मामले राजस्थान में दर्ज किए गए हैं और यहां 206 लोगों की मौत हुई है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल देश में 437 स्वाइन फ्लू ग्रस्त मरीज मिले हैं। इनमें से 10 लोगों की मौत हो चुकी है. सबसे ज्यादा मरीज तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक और दिल्ली में मिल रहे हैं.

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