नासा ने भारत के वायुमंडल की दो तस्वीरें जारी की हैं. पहली तस्वीर 27 मार्च 2021 की है और दूसरी 27 अप्रैल 2021 की. दोनों तस्वीरों में भारत के ऊपर के वायुमंडल में बहुत अंतर है. उत्तर भारत का जो हिस्सा तस्वीर में दिख रहा है वह बताता है कि इस एक महीने में थर्मल एक्टिविटी जबरदस्त तरीके से बढ़ी है. वातावरण में इस वक़्त इतना धुंआ है जितना देश के विभिन्न हिस्सों में पराली जलाने के वक़्त होता है.
राजधानी दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के पार हो गया है. यानी दिल्ली और एनसीआर की हवा इस वक्त बेहद जहरीली है. ये धुंआं उन श्मशानों से निकल रहा है, जहाँ बड़ी संख्या में शव जलाये जा रहे हैं. कोरोना पीड़ितों के शव, जिनकी लाइन हर श्मशान के बाहर लगी नज़र आ रही है. दिन रात शव जल रहे हैं. मगर सरकारी आंकड़ों में महज़ चौथाई हिस्सा बताया जा रहा है. कोरोना का नया स्ट्रेन आने के बाद से मौतों का आंकड़ा बड़ी तेजी से बढ़ा है. श्मशानों में भीड़ लगी है. चिताओं की भी और जिंदा लोगों की भी. माहौल में हर तरफ जहरीला धुआं घुलता जा रहा है.
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जरा सोचिए पिछले साल जब कोरोना वायरस फैला था, तो दुनिया भर में लॉक डाउन लगने के बाद आसमान नीला हो गया था. नदियां साफ हो गई थीं. हवा में ताजगी थी. लेकिन इस बार मामला बिल्कुल उलट है. इस समय हवा में जहरीला धुआं पसरा है. पूरे देश में भयावह हालात हैं. यह जहरीली हवा आपके फेफड़ों तक सीधे पहुंच रही है, यानी हवा में कोरोना वायरस का खतरा भी है और धुएं से आ रहे कार्बन के जहरीले कणों का डर भी. जो लोग चले गए, वो राख और धुआं बन कर मानों चेतावनी दे रहे हैं कि लोग अब भी संभल जाएं. अपनी सुरक्षा रखने में लापरवाही ना करें. डबल मास्क लगाएं. भीड़ जमा करके वायरस को म्युटेशन का मौक़ा ना दें. अक्सर वायरस म्युटेट हो कर कमजोर होते हैं, मगर कोरोना वायरस जितनी बार अपना रंग बदल रहा है, वह और मजबूत और खतरनाक होता जा रहा है.
तो ऐसा नहीं है कि अगर किसी व्यक्ति को पहले कोरोना हो चुका है तो वह दोबारा इसकी चपेट में नहीं आएगा. ये भी ना सोचें कि आपने वैक्सीन लगवा ली है तो अब आप इससे बचे रहेंगे. कोरोना वायरस बहुत बड़ा बहरूपिया है. ये कितने रंग कितने रूप बदल बदल कर हमला करेगा ये गुत्थी कोई डॉक्टर कोई वैज्ञानिक नहीं सुलझा पा रहा है. चिकित्सा विज्ञान कोरोना वायरस के सामने हतप्रभ और निरुपाय-सा है. कोरोना के लक्षण दिन प्रतिदिन बदलते जा रहे हैं. अस्पतालों में कई मरीज़ों को यह कह कर एडमिट नहीं किया जा रहा है कि उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव है. यानी टेस्ट के मुताबिक उनको कोरोना नहीं है, फिर भी ऐसे लोग अस्पतालों के गेट पर एम्बुलेंस में पड़े हांफते हुए दम तोड़ रहे हैं. साफ़ है कि आपकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव है तो आपको कोरोना है, मगर पॉजिटिव नहीं है तो भी आपको कोरोना हो सकता है. आप वायरस के ‘साइलेंट कैरियर’ भी हो सकते हैं. ऐसे ना जाने कितने ‘साइलेंट कैरियर’ हमारे आस पास घूम रहे हैं, जिन्हे खुद इस बात की खबर नहीं है.
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कोरोना खुद अस्तित्व में बने रहने के लिए हर पल अपने आपको बदल रहा है. जब पिछले साल इसकी पहली लहर शुरू हुई थी तब कहा जा रहा था कि जो बुज़ुर्ग हैं या जिन्हे शुगर या अन्य प्रकार की गंभीर बीमारियां हैं उनके लिए ये जानलेवा है. लेकिन अब तो बिलकुल जवान और स्वस्थ लोगों के फेफड़ों को भी यह वायरस संक्रमित कर रहा है और उन्हें अकाल मौत के मुँह में धकेल रहा है. डॉक्टर इस वायरस के स्पष्ट और निश्चित लक्षणों को बता ही नहीं पा रहे हैं. आपका आर टी पी सी आर टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव है, तो भी आपको कोरोना हो सकता है. तब उसे ‘फ़ाल्स निगेटिव’ कहेंगे. अगर आर टी पी सी आर टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव है, तो भी ज़रूरी नहीं कि कोरोना हो. तब उसे ‘फ़ाल्स पॉजिटिव’ कहेंगे.
आपको बुख़ार आ रहा है, गले में दर्द है और खाँसी जैसे लक्षण हैं, तो उनके सातवें-आठवें दिन से साँस लेने में तकलीफ़ हो सकती है और ऑक्सीजन लेवल गिर सकता है. इनमें से एक भी लक्षण नज़र नहीं आ रहे हैं तो भी ऑक्सीजन लेवल गिर सकता है. तब उसे हैप्पी हाइपोक्सिया या साइलेंट हाइपोक्सिमिया कहेंगे. ऐसे में आपको पता भी नहीं चलेगा कि आप कब मौत के दरवाज़े पर पहुंच गए.
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देखने में आ रहा है कि कुछ मरीज़ों में अस्पताल में भर्ती होने के समय ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 और HRCT 2 था, लेकिन अगले ही दिन HRCT 12 हो गया. मतलब फेफड़े ज़्यादा डैमेज हो गए. HRCT यानी हाई रेजोल्यूशन कम्प्यूटेड टोमोग्राफी. देशभर में कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच RT-PCR टेस्ट की गलत रिपोर्ट्स चिंता का कारण बनी हुई है. गंभीर लक्षण होने के बावजूद लोगों की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है. ऐसा माना जा रहा कि ये म्यूटेट वायरस बड़ी आसानी से PCR टेस्ट को चकमा दे सकता है. इसलिए दोबारा टेस्ट कराने की बजाए मरीजों को हाई रेजोल्यूशन कम्प्यूटेड टोमोग्राफी कराने की सलाह दी जा रही है.
इन सब परस्पर-विरोधी निष्कर्षों के जमावड़े से डॉक्टर और जीव विज्ञानी परेशान और हतप्रभ हैं. वह कोरोना के हर नये हमले के बरअक्स सिर्फ़ प्रतिक्रिया ही कर पा रहे हैं? न पूरा सच उनकी समझ में आ रहा है और ना ही कोरोना के सटीक लक्षणों की जानकारी उसके पास है.