कविता और उस के पति निर्मेष अब अकेले रहते हैं क्योंकि बेटे को उन्होंने होस्टल में पढ़ने भेज दिया है. दोनों की नौकरियां अच्छी हैं पर कविता को हर समय डर लगता है कि वह घर बंद करना या कोई खिड़की बंद करना भूल न गई हो. कई बार वह काम पर जाते हुए 2-4 किलोमीटर जा कर लौटती कि सब दरवाजे चैक कर लें. जब निर्मेष टूर पर होते तो उसे हर समय डर लगता कि कोई घर में घुस जाएगा, वह बारबार सारे कमरों में झांक कर खिड़कियां चैक करती.
यह एक मानसिक रोग है, जिसे औब्सेसिव कम्पलसिव डिसऔर्डर या आम भाषा में झक एवं सनक भी कहते हैं. यह एक आम समस्या है एवं बहुत लोगों में आमतौर पर देखने को मिलती है. यह रोग समाज में जितना माना जाता है, उस से कहीं अधिक पाया जाता है. ऐसा इस वजह से होता है क्योंकि व्यक्ति अपने इस रोग को दूसरे लोगों से सामाजिक भय की वजह से छिपाता है कि कहीं उस पर पागलपन का ठप्पा न लग जाए.
जब तक यह रोग नियंत्रित रहता है या कम मात्रा में होता है तब तक इसे मनोवैज्ञानिक समस्या मान लिया जाता है. जब यह एक सीमा से अधिक बढ़ जाता है, तब ऐसी स्थिति में यह व्यक्ति के लिए बड़ा ही कष्टकारी होता है एवं उस के लिए काम करना व जीवन जीना दूभर हो जाता है. ऐसे में यह बीमारी का रूप ले लेता है, जिसे मानसिक रोग कहते हैं. ऐसी स्थिति में तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है.
इस रोग से पीडि़त बहुत सारे लोग आमतौर पर बड़ी उपलब्धियां प्राप्त करने वाले होते हैं. दुनिया की बहुत सारी विख्यात हस्तियां इस रोग से पीडि़त बताई जाती हैं, जैसे चार्ल्स डार्विन (लेखक एवं प्रकृतिविद), होवार्ड हग्स (अमेरिकन टैलीविजन की विख्यात हस्ती), लियोनार्डो डिकेप्रियो (अमेरिकी अभिनेता), माइकल जैक्सन (अमेरिकी संगीतकार एवं मनोरंजनकर्ता), एल्बर्ट आइंस्टीन (अपनी शताब्दी के महान विद्वान), विंस्टन चर्चिल (प्रख्यात ब्रिटिश राजनेता) आदि बहुत सारे विश्वविख्यात व्यक्तित्व इस रोग से पीडि़त बताए जाते हैं.
औब्सेसिव कम्पलसिव डिसऔर्डर एक तनावयुक्त समस्या है. इस में व्यक्ति के दिमाग में बारबार ऐसे विचार आते रहते हैं जिन का व्यक्ति को पता भी होता है कि यह अनावश्यक विचार है लेकिन व्यक्ति उन से तनाव में रहता है एवं उस तनाव को दूर करने के
लिए अनावश्यक विचार से संबंधित, अनावश्यक कार्य बारबार करता रहता है. जबकि वह जानता है कि यह कार्य जो वह बारबार कर रहा है, गलत है लेकिन फिर भी वह इन विचारों के सामने मजबूर होता है. अगर वह ऐसा नहीं करता तो उस का तनाव बढ़ता जाता है एवं बारबार एक ही अनावश्यक कार्य करना उस की मजबूरी हो जाती है.
इस रोग में बिना मतलब का तनाव होता है जो किसी विशेष स्थिति से होता है. उस विशेष स्थिति के सामने आते ही व्यक्ति को सनक हो जाती है एवं जब तक वह बारबार उस कार्य विशेष को नहीं करता, उस का तनाव दूर नहीं होता है, जैसे वह अपनी अलार्म घड़ी को बारबार चैक करता है कि उस में उस ने सही टाइम का अलार्म लगा दिया है या नहीं. जबकि वह अच्छी तरह से जानता है कि उस ने अलार्म ठीक से लगाया है.
औब्सेसिव कम्पलसिव डिसऔर्डर कार्य में थोड़ाबहुत परेशानी करने से ले कर व्यक्ति को इस स्थिति तक पहुंचा देता है, जिस में व्यक्ति काम करने में अपनेआप को असहाय महसूस करने लगता है. ऐसा अकसर तब होता है जब इस रोग से ग्रसित व्यक्ति अपने व्यवहार को नियंत्रित नहीं कर पाता है एवं अपना अधिकतर समय एवं शक्ति इस रोग को नियंत्रित करने में लगा देता है.
इस बीमारी से पीडि़त अधिकतर व्यक्तियों में शुरुआत में एक ही विचार बारबार दिमाग में आने लगता है एवं जब तक वह उस विचार से संबंधित कार्य को कर नहीं लेता है, वह तनावग्रस्त रहता है. ऐसा अकसर युवावस्था में होता है. कुछ परिवार, अपने परिवारजन की इस स्थिति को शुरू में ही पहचान लेते हैं.
इस रोग का कहीं न कहीं शराब एवं ड्रग्स के सेवन से भी संबंध देखने को मिलता है. शराब एवं ड्रग्स इस बीमारी के लक्षण को बढ़ा देते हैं एवं इस रोग से पीडि़त व्यक्ति भी झक एवं सनक के तहत अगर इन चीजों का इस्तेमाल करते हैं तब जरूरत से ज्यादा इन चीजों का सेवन करने लगते हैं.
औब्सेसिव कम्पलसिव डिसऔर्डर नामक रोग में सब से ज्यादा झक एवं सनक साफ देखने को मिलती है. इस में व्यक्ति बारबार हाथ धोता रहता है, हाथों को रगड़ता रहता है एवं ऐसी वस्तुओं का हाथ पर जरूरत से कहीं ज्यादा इस्तेमाल करता है जिन से उसे लगता है कि वे उस का संक्रमण से बचाव कर सकती हैं. कोविड 19 के बाद यह रोग बहुतों का और बढ़ गया क्योंकि चारों ओर इस का खूब प्रचार हुआ.
इस समस्या से पीडि़त व्यक्ति बारबार हाथ धोता रहा. ऐसा व्यक्ति अपनेआप को संक्रमण से बचाने के लिए करता है. एक गृहिणी अपना अधिकतर समय अपने हाथ धोने में लगाती है, इस डर से कि कहीं उस के हाथ में संक्रमण न हो. इस कारण से वह अपने घर के कार्य करने में असमर्थ रहती है.
दूसरे नंबर की झक एवं सनक किसी बात को बारबार कहना एवं किसी चीज को बारबार चैक करना, जैसे घर पर या कमरे में ताला लगाने पर उसे बारबार चैक करना, कई बार वापस आ कर भी चैक करना कि ताला ठीक से लगा है या नहीं.
इस रोग से पीडि़त व्यक्ति अपनी मेज पर रखी फाइल को एकदम सीधे बारबार रखता रहता है. फाइल जरा सी भी तिरछी या इधरउधर निकली हो तो वह परेशान रहता है. अपने तौलियों को एकदम इस तरह से मोड़ कर रखता है कि जरा भी मुड़ा हुआ तौलिया इधरउधर से जरा भी न निकला हुआ हो.
हिंसात्मक या धार्मिक विचार जरूरत से ज्यादा एवं बारबार आना, व्यक्तिगत संबंधों से संबंधित झक एवं सनक, बारबार किसी नंबर को गिनना, कमरे में घुसते या निकलते समय दरवाजे को बारबार किसी विशेष नंबर या अपनी झक एवं सनक के तहत कि इतनी बार (नियत) खोलना एवं बंद करना आदि लक्षण व्यक्ति का काफी समय बरबाद करते हैं एवं व्यक्ति के लिए काफी पीड़ादायक एवं तनावयुक्त होते हैं.
ऐसे व्यक्ति के मन में खतरनाक बीमारियों, जैसे एड्स एवं कैंसर का डर भी बैठ जाता है. जबरदस्ती की खरीदारी करने की झक एवं सनक भी देखने को मिलती है. ऐसा अकसर महिलाओं में देखने को मिलता है. ऐसी महिलाएं कपड़े, गहने एवं सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुएं खरीद कर इकट्ठा करती रहती हैं.
ऐसे व्यक्ति अपने सिर एवं आंख की पलकों एवं भौंह के बाल उखाड़ते रहते हैं. शरीर की त्वचा को हाथ से पकड़ कर बारबार ऊपर उठाना, मुंह से नाखून चबाना, दुख पर हंसना, किसी जगह पहुंचने के लिए कितने पैरों के कदम (स्टैप्स) रखे उसे गिनना एवं किसी जगह पहुंचने के लिए किसी विशेष जगह से ही बारबार निकलना, घर के दरवाजे को हमेशा बंद रखना, किसी वस्तु को बारबार विशेष नंबर के हिसाब से छूना, रंगीन टाइल्स पर चलते समय एक विशेष रंग की टाइल पर ही पैर रख कर चलना, किसी खाने की वस्तु का जोड़े में खाना यानी अगर वह खाने की वस्तु 2 होंगी तभी खाना (अगर 3 होंगी तो ऐसी स्थिति में 2 खा कर एक छोड़ देना या एक और मांग कर उस के 2 जोड़े बनाना तब खाना), बारबार मुड़ कर पीछे देखना आदि लक्षण भी इस रोग के होने के संकेत हैं.
ऐसे व्यक्ति आमतौर पर बुद्धिमान होते हैं. ऐसे व्यक्ति खतरा मोल लेने से बचते हैं, सावधानीपूर्वक कार्ययोजना बनाते हैं, जरूरत से ज्यादा जिम्मेदारी महसूस करते हैं एवं निर्णय लेने में समय लगाते हैं. इस रोग में विचार बारबार आते हैं एवं व्यक्ति के बारबार इन विचारों को दिमाग से निकालने एवं इन से मुकाबला करने के बाद भी आते रहते हैं.
इस रोग से पीडि़त व्यक्ति झक एवं सनक से संबंधित तनाव को दूर करने के लिए दूसरे लोगों से बात करते हैं या उस कार्य को बारबार करते हैं. इस तरह के रोगियों में आत्महत्या आमतौर पर देखने को नहीं मिलती हैं, जब तक कि रोगी इस बीमारी के साथसाथ अवसाद या अन्य किसी मानसिक रोग से पीडि़त न हो. यह रोग आनुवंशिक भी देखने को मिलता है.
रोग का उपचार
इस रोग के उपचार में साइकोथेरैपी एवं दवा का महत्त्वपूर्ण योगदान है. इस में बिहेवियर थेरैपी भी काफी कारगर है. दवा एवं साइकोथेरैपी द्वारा यह रोग काफी नियंत्रण में रहता है एवं व्यक्ति काफी हद तक अपनी सामान्य जिंदगी जीने लायक हो जाता है तथा अपने समस्त कार्य सुचारु रूप से करने लगता है.
इस बीमारी के लिए दवाओं का उपयोग हो रहा है जो ब्रेन को ओसीडी के बारे में सही सिग्नल देती हैं. इस के इलाज में असर 3-4 माह में ही दिखता है, कुछ साइड इफैक्ट भी होते हैं. सो, अच्छे डाक्टर के पास जाना अति आवश्यक है.