2 बच्चों की 40 वर्षीय मां सुनंदा को उस समय कुछ राहत मिली जब उस ने ‘इंटरस्टिम टैक्नोलौजी’ से मूत्र असंयमता पर काबू पाया. इस से पहले सुनंदा ने कई इलाज करवाए पर फायदा बहुत कम था. जरा सी छींक, हंसी या खांसने से उस का यूरिन अनायास ही निकल आता था. उस ने अपनेआप को कहीं जानेआने से भी रोक रखा था. आम स्थान पर इस तरह की समस्या उस के लिए शर्मनाक थी.

मूत्र असंयम, दरअसल मूत्राशय पर नियंत्रण का न होना है. यह एक आम समस्या है जो अकसर खांसी, छींक आने पर आप को होती है. उस वक्त अगर आसपास शौचालय न मिले तो मूत्र को रोक पाना असंभव हो जाता है. यह दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करता है. लोग डाक्टर के पास जाने से संकोच करते हैं. यह बीमारी लाइलाज नहीं. समय रहते अगर इस का इलाज किया जाए तो व्यक्ति नौर्मल जिंदगी बिता सकता है. अधिकतर महिलाएं इस की शिकार होती हैं. प्रसव के बाद यूरिनरी ट्रैक लूज हो जाने से यह समस्या आती है पर कई बार पुरुषों और कम उम्र की महिलाओं को भी यह समस्या हो जाती है. इस के रिस्क फैक्टर निम्न हैं-

  • तनाव से यह बीमारी बढ़ती है. इस बीमारी के चलते पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अधिक तनावग्रस्त हो जाती हैं. इस के अलावा प्रसव के बाद, मेनोपोज वाली महिलाओं या प्रोस्टेट ग्लैंड की समस्या वालों को यह बीमारी हो सकती है.
  • मोटापा या वजन अधिक होने पर जब आप खांसते या छींकते हैं, आसपास की मांसपेशियों पर दबाव पड़ने से मूत्राशय पर पकड़ कम हो जाती है और अनैच्छिक रूप से यूरिन निकलने लगता है.
  • कोई न्यूरोलौजिकल बीमारी या मधुमेह होने से इस बीमारी का रिस्क बढ़ता है.

इस बीमारी के लक्षण निम्न हैं-

  • जब आप को बारबार पेशाब के बाद भी असहजता लगे.
  • पेशाब के बाद भी आप के कपड़े गीले हो जाएं.
  • कुछ भारी उठाने, छींकने या हंसने पर अनायास यूरिन निकल जाए.

ये सभी लक्षण इस बीमारी की ओर इशारा करते हैं. यह बीमारी किसी उम्र में किसी भी व्यक्ति को हो सकती है. इंटरस्टिम तकनीक के द्वारा ब्रेन और नर्व दोनों को कंट्रोल किया जाता है. इस बारे में डा. रैना बताते हैं कि जब यूरिन का ब्लैडर भरा होता है तो व्यक्ति अपने ब्रेन द्वारा उसे कंट्रोल कर उपयुक्त स्थान पर यूरिन करता है और जब यह वायरिंग ‘क्रिस क्रौस’ हो जाती है तो मरीज नर्वस हो जाता है. न्यूरो मौड्यूलेशन द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है. यह तकनीक काफी उन्नत है. यह इलाज दिल्ली, मुंबई, चैन्नई और हैदराबाद में किया जाता है.

इस तरह के इलाज के लिए अधिकतर वही व्यक्ति आता है जिस ने हर तरह की चिकित्सा करवा ली है और असर नहीं हो रहा. इसलिए इस इलाज के पहले प्रारंभिक प्रक्रिया की जाती है, जिस के तहत यूरो मौड्यूलेट किया जाता है. इस में एस थ्री फोरम में निडिल डाल कर लीड डाली जाती है.

‘नर्व को स्टिमुवेट’ कर बैटरी द्वारा उसे सैटिंग पर रखा जाता है. यह अधिकतर पोविक फलों के पास किया जाता है. 2 से 3 हफ्ते इस विधि द्वारा व्यक्ति की सहजता को आंका जाता है. अगर मरीज अपने यूरिन पर कंट्रोल पा लेता है तो उसे मरीज के अंदर प्रत्यारोपित किया जाता है. यह एक प्रकार की चिप होती है जो बैटरी द्वारा कंट्रोल होती है. एक बैटरी की लाइफ 5 साल तक होती है.

इस प्रक्रिया के लिए मरीज को पूरा बेहोश करने की आवश्यकता नहीं होती, लोकल एनेस्थेसिया के जरिए चिप को नस के ऊपर बैठा कर सैट कर दिया जाता है. रोगी उसी वक्त यूरिन पर कंट्रोल करना सीख जाता है. केवल एक सप्ताह एंटीबायोटिक देने के बाद व्यक्ति नौर्मल जिंदगी जी सकता है. इस का सक्सैस रेट काफी अच्छा है. यह उपाय महंगा है पर आवश्यक है.

इस का इलाज कराने वालों को बारबार बाथरूम की ओर नहीं भागना पड़ता और वे सैर पर, लंबी यात्रा पर भी जा सकते हैं.

एक्सोनिक्स नाम का एक और उपचार भी अब उपलब्ध है. मरीजों को दोनों के बारे में अपने डाक्टर से पूछताछ करनी चाहिए. एक्सोनिक्स के बनाने वालों का दावा है इस डिवाइस में कम बैटरी इस्तेमाल होती है.

मधुमेह के रोगी भी मधुमेह को कंट्रोल कर इसे लगवा सकते हैं. यह सिक्रेल नर्वस ब्लैडर को कंट्रोल करती है जिस से यूरिनरी मसल्स कंट्रोल में आ जाते हैं. अगर मस्तिष्क और सिक्रेल नर्वस दोनों सही दिशा में काम करते हैं तो यह समस्या खत्म हो जाती है.

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