आएदिन समाचार पत्रों व टैलीविजन पर छाती में गोली लगने की घटना आम बात हो गई है. अवैध रूप से निर्माण होने वाले देशी तमंचों व रिवौल्वर की भरमार हो गई है. पहले तो हर छोटे कसबे व नगर में गुंडे, मवाली व आपराधिक प्रवृत्ति के लोग अपनी करतूतों को अंजाम देने के लिए इन देशी तमंचों का खुलेआम इस्तेमाल करते थे पर यह रोग अब बड़े महानगरों में भी तेजी से फैल रहा है. थोड़ी सी गरमागरम बहस के बाद ही लोग अपने प्रतिद्वंद्वी को सबक सिखाने के लिए आननफानन लाइसैंसी रिवौल्वर निकाल लेते हैं.
सड़कों पर स्वचालित वाहनों की भरमार होने से आएदिन बहस और फिर आवेश में आ कर प्रतिरोधी पर तमंचे व रिवौल्वर से फायर कर देना मानो मर्दानगी व शूरवीरता की निशानी है. जमीनजायदाद व धनसंपत्ति को ले कर होने वाली गोलीकांड की घटनाएं तो बरसों से होती आ रही हैं, पर यह वाहनों की सड़क पर जरा सी आपस में टक्कर हो जाने पर गोलीकांड हो जाना, ऐसा लगता है कि यह नए जमाने का नया फैशन है जो आधुनिक सड़कों पर देखने को मिल रहा है. लोग आपसी मसलों को सुलझाने के लिए एकदूसरे के घर जा कर बातचीत करने जाते हैं पर समस्या का समाधान निकलना तो दूर की बात रही, बहस का समापन गोली चला कर करते हैं.
छाती में गोली कैसे लगती है
छाती में गोली 3 तरह से लग सकती है. पहले या तो बिलकुल पास से फायर किया जाए या फिर दूर से. कभीकभी चांदमारी क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोगों की छाती में सेना के नौजवानों द्वारा अभ्यास परीक्षण के दौरान चलाई गई गोली दिशाहीन व छिटक कर घुस जाती है. लोगों के जेहन में यह खयाल अकसर आता है कि ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोग छाती में गोली लगने के तुरंत बाद घटनास्थल पर ही दम तोड़ देते हैं और कुछ लोग छाती में गोली लगने के बाद जिंदा अस्पताल तक तो पहुंच जाते हैं पर वहां जा कर कुछ घंटों में ही मर जाते हैं.
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