अगर किसी वजह से किसी फसल में नाइट्रोजन की मात्रा नहीं दी जा सके, तो खड़ी फसल में यूरिया के 3 फीसदी घोल का पर्णीय छिड़काव कर के नाइट्रोजन की कमी को दूर किया जा सकता?है. कुछ मिट्टियों में चूने या सिंचाई वाले पानी में बाईकार्बोनेट की मात्रा ज्यादा होती है. ऐसी अवस्था में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की उपलब्धता पौधों में बहुत कम हो जाती है, खासकर जस्ते की. ऐसी हालत में 0.5 फीसदी जिंकसल्फेट का 2 फीसदी यूरिया के साथ छिड़काव करना चहिए. खड़ी फसल में उर्वरक के घोल के पर्णीय छिड़काव के निम्नलिखित फायदे हैं:

* कम मात्रा में उर्वरकों की आवश्यकता होती है.

* कम मात्रा में संपूर्ण क्षेत्र में उर्वरकों का समान वितरण किया जा सकता है.

* पोषक तत्त्वों का पौधों द्वारा अच्छा उपयोग किया जाता है.

* सूक्ष्म तत्त्व जो मिट्टी में जा कर स्थिर हो सकते हैं, इस विधि से उन के नुकसान को कम किया जा सकता?है.

* ऊंचीनीची एवं रेतीली भूमियों में उर्वरकों का वितरण समान हो जाता?है.

* जहां सिंचाई के साधन कम होते हैं यानी मिट्टी में नमी के अभाव के कारण ठोस रूप में उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है. मिट्टी में नमी के अभाव में पौधों की जड़ें पोषक तत्त्वों का चूषण नहीं कर सकती हैं.

* लवणीय मृदाओं में जहां पर नाइट्रोजन का अमोनिया गैस के रूप में नष्ट होने का डर रहता है, वहां पर नाइट्रोजन की हानि को बचाया जा सकता?है.

* जलमग्न भूमियों में नाइट्रोजन का डिनाइट्रीफिकेशन हो जाता है. इस विधि के प्रयोग से नाइट्रोजन की हानि को कम किया जा सकता है.

यह है विधि

एक ड्रम में साफ पानी जिस में कचरा या अन्य पदार्थ न हों, भर लेते हैं. जिस सांद्रता का यूरिया का घोल बनाना हो, उस की गणना कर यूरिया को तोल लेते हैं. 3 फीसदी यूरिया के घोल हेतु 100 लीटर पानी में 3 किलोग्राम यूरिया की जरूरत होती है. यूरिया को पानी में डाल कर अच्छी तरह से लकड़ी या प्लास्टिक की छड़ी से हिला कर घोल देते?हैं. इस के बाद इस प्रकार से तैयार घोल में 0.1 फीसदी की दर से टीपोल या अन्य कोई भी पदार्थ जैसे साबुन का?टुकड़ा, सर्फ मिला लेते हैं, जिस से घोल चिपचिपा होने के कारण पत्तियों पर ठहर जाए और पौधों द्वारा अवशोषित किया जा सके, वरना घोल पत्तियों से नीचे गिर जाता?है. तैयार घोल को बालटी में ले कर फुट स्प्रेयर की सहायता से फसल पर छिड़काव करें. फुट स्प्रेयर उपलब्ध न होने पर नेपसेक स्प्रेयर भी काम में लिया जा सकता है. प्रति हेक्टेयर 750 से 1000 लीटर घोल का छिड़काव करें.

बरतें ये सावधानियां

*      यह ध्यान रहे कि यूरिया का घोल बनाने में प्रयुक्त यूरिया में बाइयूरेट की मात्रा 0.5 फीसदी से ज्यादा न हो, वरना फसल को नुकसान हो जाएगा.

*      फसल की बढ़ोतरी की अवस्था पर छिड़काव करना चाहिए.

*      यूरिया का छिड़काव सुबह ओस सूखने के बाद या शाम को करना चाहिए.

*      बरसात की संभावना हो तो छिड़काव न करें, वरना छिड़काव का असर खत्म हो जाएगा व नाइट्रोजन की उपलब्धता पौधों को नहीं होगी.

*      गरमियों में छिड़काव शाम को 5 बजे के बाद करें.

*      छिड़काव खेत में सभी जगह बराबर होना चाहिए. एक ही स्थान पर छिड़काव को न दोहराएं.

*      छिड़काव करते समय स्प्रेयर के घोल को समयसमय पर हिलाते रहना चाहिए.

*      यदि उर्वरक के साथ अन्य खरपतवारनाशी, कीटनाशी या कवकनाशी का भी उपयोग करना हो तो यह ज्ञात होना आवश्यक है कि इन रसायनों का मिश्रण उर्वरक के अनुरूप है या नहीं, वरना रसायन की आपस में क्रिया कर के विपरीत प्रभाव डालने का डर बना रहता है. 

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