भारत में टमाटर  की फसल को साल भर उगाया जा सकता है. यह सब्जी की महत्त्वपूर्ण फसल है. इस के बिनरा सब्जी अधूरी मानी जाती है. इस में विटामिन बी व सी की मात्रा ज्यादा होती है. टमाटर का इस्तेमाल सब्जियों के साथ पका कर किया जाता है. इस के अलावा सूप, सौस, चटनी, अचार बनाने व सलाद में किया जाता है. टमाटर की फसल से किसानों को अच्छी आमदनी हो जाती है. टमाटर में फलभेदक, तंबाकू की सूंड़ी, सफेद मक्खी, पर्ण सुरंगक कीड़ा, चेंपा माहू वगैरह कीड़े लग जाते हैं.

फलभेदक कीड़ा : यह पीलेभूरे रंग का होता है. अगले पंखों पर भूरे रंग की कई धारियां होती हैं व इन पर सेम के आकार के काले धब्बे पाए जाते हैं, जबकि निचले पंखों का रंग सफेद होता है, जिन की शिराएं काली दिखाई देती हैं और बाहरी किनारों पर चौड़ा धब्बा होता है. इस कीट की मादा पत्तियों की निचली सतह पर हलकेपीले रंग के खरबूजे की तरह धारियों वाले अंडे देती है. 1 मादा अपने जीवनकाल में लगभग 500 से 1000 तक अंडे देती है. ये अंडे 3 से 10 दिनों के अंदर फूट जाते हैं.

नुकसान की पहचान : सूंडि़यां पत्तियों, मुलायम तनों व फूलों को खाती हैं. ये बाद में कच्चे व पके टमाटर के फलों में छेद कर के उन के अंदर का गूदा खा जाती हैं. ऐसे टमाटर खाने लायक नहीं रहते हैं. कीड़े के मलमूत्र के कारण उस में सड़न शुरू हो जाती है, जिस से फलों की कीड़ों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है. ऐसे फलों का भाव कम हो जाता है. इस कीड़े के लगने से करीब 50 फीसदी फसल खराब हो जाती है.

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