बिहार में पिछले 7-8 सालों से खेती की मशीनों को हर किसान तक पहुंचाने और उस के प्रति किसानों को जागरूक करने की मुहिम जोरशोर से चल रही?है, लेकिन इस के बाद भी छोटे और मंझोले किसानों की पहुंच से मशीनें काफी दूर हैं. ज्यादातर छोटे और मंझोले किसानों को यह नहीं पता है कि खेती की मशीनों से उन की खेती को क्या फायदा होगा और वे मशीनें कैसे ली जा सकती हैं?

बिहार में पिछले कुछ सालों के दौरान काफी तेजी पकड़ने वाली कृषि यांत्रिकरण की रफ्तार अब धीमी पड़ गई है. किसानों का कहना है कि खेती की मशीनों को खरीदने के लिए बैंकों द्वारा कर्ज देने में आनाकानी करने की वजह से कृषि यांत्रिकरण की रफ्तार में कमी आई?है. अगर राज्य सरकार अनुदान का लाभ देने के लिए बैंकों से कर्ज लेने की बाध्यता खत्म नहीं करती तो यांत्रिकरण की रफ्तार तकरीबन ठप हो जाती. वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार द्वारा कई तरह की मशीनों की खरीद के लिए अनुदान कम कर देने से भी कृषि यांत्रिकरण की रफ्तार काफी कम हुई है.

बिहार में कृषि यांत्रिकरण का औसत 0.5 और 0.8 किलोवाट प्रति हेक्टेयर के बीच अटका हुआ है, जबकि राष्ट्रीय औसत 1.5 किलोवाट प्रति हेक्टेयर है. पंजाब में कृषि यांत्रिकरण की रफ्तार 3.02 किलोवाट प्रति हेक्टेयर है. साल 2013-14 में बिहार में यह औसत 1.7 किलोवाट प्रति हेक्टेयर तक जा पहुंचा था, लेकिन उस के बाद इस में लगातार गिरावट आती गई. साल 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने कृषि यांत्रिकरण को बढ़ाने पर जोर दिया था. पिछले साल बैंकों ने खेती की मशीनों की खरीद के लिए 2 हजार करोड़ रुपए लोन देने का लक्ष्य रखा था, पर महज 150 करोड़ रुपए का ही कर्ज बांटा गया. इस का सीधा असर कृषि यांत्रिकरण की गति पर पड़ा है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...