मजाक में अकसर लोग बैगन को बेगुन कह देते हैं, मगर हकीकत में ऐसा नहीं है. तमाम तरकारियों की तरह बैगन की भी अपनी खूबियां हैं. यह स्वादिष्ठ सब्जी सेहत के लिहाज से भी खासी कारगर होती है. महिलाएं अपनी रसोई में बैगन को पूरीपूरी अहमियत देती हैं. वे इस की सूखी व रसेदार तरकारी बनाने के साथसाथ इस का भरता भी बनाती हैं. भरवां बैगन व बैगनी यानी बैगन के पकौड़ों की भी भारतीय घरों में खूब मांग रहती है.

कुल मिला कर हर उम्र के लोग हमेशा बैगन के पकवानों को चाव से खाते हैं, इसी वजह से बाजार में हमेशा बैगन की मांग बनी रहती है. सब्जी के व्यापारी बैगन की बिक्री से खूब कमाई करते हैं, लिहाजा बैगन की खेती करना हमेशा फायदे का सौदा रहता है. इस लेख में संकर बैगन उगाने के बारे में जानकारी दी जा रही है.

आबोहवा

संकर बैगन की खेती करने के लिए औसत तापमान 22 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड के बीच होना मुनासिब होता है. इस तापमान में बैगन की फसल की बढ़वार सही तरीके से होती है और फल भी भरपूर तादाद में हासिल होते हैं. बैगन की फसल ज्यादा गरम और सूखा मौसम नहीं सह पाती है. ज्यादा गरम आबोहवा में फलों की तादाद घट जाती है.

जमीन

बैगन की खेती के लिहाज से दोमट मिट्टी ज्यादा मुनासिब होती है. अलबत्ता मिट्टी पानी की सही निकासी वाली होनी चाहिए. जमीन का पीएच मान 5.5 से 6.0 होना चाहिए. मिट्टी सही किस्म की होने से पैदावार पर बहुत ज्यादा माकूल असर पड़ता है.

बीज की मात्रा

बैगन की खेती के लिए 125 से 150 ग्राम बीजों की प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दरकार रहती है. बहुत ज्यादा या कम मात्रा में बीजों का इस्तेमाल करना ठीक नहीं रहता है.

पौधे उगाना

बैगन के पौधे उगाने के लिए 3 मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी और 0.15 मीटर ऊंची क्यारियां बनानी चाहिए. इस साइज की 20-25 क्यारियों में इतने पौध तैयार हो जाते हैं, जो 1 हेक्टेयर खेत के लिहाज से काफी होते हैं. हर क्यारी में 25 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद मिलाएं. इस के अलावा 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व10 ग्राम फुराडान डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं. तैयार क्यारी में बीजों को 5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं. बोआई के बाद बीजों को आधी मिट्टी और आधी सड़ी गोबर की खाद के मिश्रण से ढक दें. इस के बाद क्यारी को घास से ढकें. जब अंकुरण होने लगे तो घास हटा दें. शुरुआत में फुहारे से पानी दें और कुछ दिनों बाद सामान्य तरीके से सिंचाई करें. बोआई के 2 दिनों बाद से हर 5 दिनों के अंतराल पर 3 मिलीलीटर एकोमिन या 2 ग्राम केपटाफ 50 डब्ल्यू पाउडर का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर क्यारियों को भिगोएं. बोआई के 15 दिनों बाद और पौधे उखाड़ने से 3-4 दिनों पहले 1 मिलीलीटर थायोडान का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें.

खाद व उर्वरक

खेत तैयार करते वक्त 25-30 टन अच्छी तरह से सड़ीगली गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में मिलाएं. इस के अलावा 7.50 क्विंटल नीम की खली भी प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं.

इन के अलावा 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश का भी प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. खेत की तैयारी के वक्त नाइट्रोजन की आधी मात्रा और पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा जमीन में मिलाएं. नाइट्रोजन की बची मात्रा का आधा भाग रोपाई के 25 दिनों बाद और बाकी भाग रोपाई के 50 दिनों बाद खेत में इस्तेमाल करें.

रोपाई

बोआई के 4 से 6 हफ्तों के दौरान पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जब रोपाई के लिए पौधे उखाड़ने हों, उस से 2-3 घंटे पहले क्यारियों में भरपूर पानी डालें ताकि वे आसानी से निकल सकें. पौधों को 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेंड़ों के बाजू में 60 सेंटीमीटर के फासले पर लगाएं. रोपाई के बाद फौरन हलकी सिंचाई करें. खयाल रखें कि पौधों की रोपाई का काम शाम के वक्त करना बेहतर रहता है.

खास बीमारियां व बचाव

फाइटोपथोरा फलसड़न रोग : इस से बचाव के लिए रिडोमिल एमजेड या इंडोफिल एम 45 की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें.

जरूरत के मुताबिक 10 दिनों बाद दोबारा छिड़काव करें.

फायोप्सिस सड़न और ब्लाइट : इस से बचाव के लिए इंडोफिल एम 45 की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 7-8 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

डैंपिंग आफ (पौधविगलन) : इस से बचाव के लिए सेरेसान दवा की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें. पौधों को 3 फीसदी फाइटोलान या डाइथेन एम 45 द्वारा अच्छी तरह भिगोएं. नर्सरी में ज्यादा पासपास पौधे न रखें और बहुत ज्यादा सिंचाई भी न करें.

लिटिल लीफ रोग : इस रोग की चपेट में आने वाले पौधों को उखाड़ कर जला दें. इस के अलावा रोगोर 0.03 फीसदी का 10 से 15 दिनों के अंतराल पर फल आने तक छिड़काव करें. रोपाई के वक्त पौधों की जड़ों को टैट्रासाइक्लिन 1000 पीपीएम में भिगोने के बाद रोपाई करें.

खास कीट व बचाव

तनाछेदक व फलछेदक : कीड़े लगे भागों को सूंडि़यों सहित पौधों से अलग कर के जला दें. फसल की छोटी अवस्था में दानेदार सिस्टेमिक कीटनाशक का इस्तेमालकरें. इंडोसल्फान या मेटासिस्टाक्स की

2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

हरा मच्छर (जैसिड) : 10 ग्राम थायमेट का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. मेटासिस्टाक्स या मोनोक्रोटोफास की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

माहू (एफिड) : इस से बचाव के लिए इंडोसल्फान या मोनोक्रोटोफास के 0.05 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

लाल मकड़ी : लाल मकड़ी से बचाव के लिए मैलाथियान के 0.02 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

इस के अलावा फसल पर सल्फर धूल का बुरकाव करें या बैटेवल सल्फर के 0.05 फीसदी घोल का छिड़काव करें.इस प्रकार कीड़ों व रोगों से बैगन की फसल की हिफाजत करते हुए भरपूर पैदावार हासिल की जा सकती है. उम्दा नस्ल के बैगनों की मांग हमेशा बनी रहती है, लिहाजा इस की खेती करना बेहद फायदे का सौदा होता है.कीटों व रोगों की रोकथाम के लिए दवाओं का इस्तेमाल करते वक्त दवाओं में चिपटाक या सेंडोविट जैसे चिपकने वाले पदार्थ जरूर मिलाएं. दवाओं का छिड़काव करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि पूरा पौधा दवा से भीग जाना चाहिए.              

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...