इंडक्शन कुकर और गैस के चूल्हे इस्तेमाल करने वाले लोग और किसी ईंधन के बारे में सोच भी नहीं पाते, मगर आज भी गांवों में लकड़ीकंडे वगैरह का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है. जलावन जलाने वालों के लिए पेश है ऐसा चूल्हा, जो उन की आंखें सही रखेगा. हालांकि आजकल ज्यादातर घरों में गैस से जलने वाले चूल्हों पर ही खाना पकाया जाता है, बल्कि इंडक्शन कुकर पर खाना पकाने का रिवाज भी लगातार बढ़ रहा है, लेकिन इस के बावजूद हिंदुस्तान की एक बड़ी आबादी आज भी खाना पकाने के लिए लकड़ी, कंडे, कोयले वगैरह का ही इस्तेमाल करती है. गांवों व छोटे कसबों में मिट्टी के तेल यानी केरोसीन से जलने वाले स्टोव भी बाकायदा इस्तेमाल किए जाते?हैं.

यकीनन लकड़ी, कंडे, कोयले या बुरादे का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर पुराने जमाने से होता आ रहा है. नए जमाने के आधुनिक बच्चों के दादादादी वगैरह भी अपने वक्त में लकड़ी, कंडे या कोयले आदि का इस्तेमाल कर चुके?हैं, बल्कि तमाम बुजुर्ग तो आजकल भी सर्दियों में कच्चे या पक्के कोयले की अंगीठियां जलवा कर आग तापना पसंद करते हैं. लकड़ी, कंडे व कोयले वगैरह को मोटे तौर पर जलावन कहा जाता है और इस जलावन का पहले तो हर घर में इस्तेमाल होता था और आजकल भी भारत के तमाम घरों में होता है. इस जलावन से खाना पकाने वाली महिलाएं इस के धुएं से बहुत दुखी रहती?हैं. जलावन का धुंआ आंखों में जलन व कड़वाहट पैदा कर देता?है. चूंकि महिलाएं ही अमूमन खाना पकाती हैं, इसलिए उन के दर्द की बात कही गई?है, वैसे जलावन इस्तेमाल करने वाला कोई भी व्यक्ति इस के धुएं व तकलीफ से बच नहीं पाता.

मगर अब इस तकलीफ के दिन लद चुके?हैं. अब जलावन का इस्तेमाल कर के खाना बनाने वाली औरतों की आंखों को धुंए के कहर को नहीं झेलना पड़ेगा. धुंए की वजह से उन की आंखों में जलन व कड़वाहट नहीं पैदा होगी. कार्बन उत्सर्जन में कमी होने से खाना पकाने वाली महिलाओं की सेहत के साथसाथ पर्यावरण की हालत भी दुरुस्त रहेगी.

उन्नत चूल्हा

जलावन जलाने वाली महिलाओं और पर्यावरण की सहायता के लिए ‘नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय’ (एमएनआरई) की मदद से एक बेहद उन्नत चूल्हा बनाया गया है. इस उन्नत चूल्हे की खासीयत यह?है कि लकड़ी, कंडे व कोयले वगैरह का इस्तेमाल करने पर भी इस से धुंआ नहीं निकलता है. गांवों की औरतें जंगलों से बीनी गई लकडि़यों और गोबर से बनाए गए कंडों यानी उपलों से ही ज्यादातर ईंधन का काम चलाती?हैं. ऐसे में यह चूल्हा उन्हें बहुत राहत देगा. मिट्टी के साधारण चूल्हे या ईंटों से बनाए गए अस्थायी चूल्हे में जब लकड़ीकंडे जलाए जाते हैं तो भरपूर मात्रा में काला व खतरनाक सा धुंआ निकलता है, मगर उन्नत चूल्हे में ऐसा नहीं होता है. उन्नत चूल्हे का इस्तेमाल गांवों की शादियों जैसे मौकों पर भी किया जा सकता?है, जहां लकड़ीकंडे व कोयले वगैरह का इस्तेमाल कर के सैकड़ों लोगों का खाना पकाया जाता है. गांवों के होटलों, ढाबों व सामुदायिक भवनों में भी इस चूल्हे को इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि इन जगहों पर भी जलावन का इस्तेमाल कर के काफी लोगों का खाना पकाया जाता है.

उन्नत चूल्हे की खासीयत

उन्नत चूल्हे की स्कीम से जुड़े एमएनआरई में काम करने वाले एक अफसर के मुताबिक सामान्य चूल्हे में आक्सीजन की मात्रा जरूरत लायक नहीं होती, लिहाजा लकड़ी पूरी तरह से नहीं जल पाती?है, नतीजतन धुआं ज्यादा पैदा होता है. एमएनआरई के अफसर ने बताया कि उन्नत चूल्हे को इस तरह से बनाया गया?है कि उस में आक्सीजन पूरी मिलने से लकड़ी सही तरीके से जलती?है, लिहाजा साधारण चूल्हे के मुकाबले इस चूल्हे से कार्बन का उत्सर्जन 50 फीसदी कम होता है. चूंकि उन्नत चूल्हे से धुआं बेहद कम निकलता है, लिहाजा नुकसान करने वाले तत्त्व भी बहुत कम हो जाते?हैं. इसी वजह से उन्नत चूल्हा इस्तेमाल करने वाली औरतों को आंखों में किसी किस्म की तकलीफ महसूस नहीं होती. एमएनआरई के अफसर ने बताया कि उन्नत चूल्हे 2 किस्म के होते?हैं. पहली प्रकार के चूल्हों में कार्बन का उत्सर्जन पुराने चूल्हों के मुकाबले 50 फीसदी ही कम होता है, जबकि दूसरी प्रकार के चूल्हे और दमदार होते?हैं. दूसरी किस्म के चूल्हे के चेंबर में छोटा पंखा लगा होता है. इस चूल्हे से पुराने चूल्हों की तुलना में 80-90 फीसदी तक कम कार्बन निकलता है.

एमएनआरई के अफसर ने बताया कि उन्नत चूल्हे की कीमत उस के साइज व कूवत के हिसाब से 1000 से 3000 रुपए के बीच है. इस की खरीदारी के लिए मंत्रालय माइक्रो फाइनेंसिंग करने पर विचार कर रहा?है. मंत्रालय ने यह बात साफ कर दी?है कि इस कारगर चूल्हे को मुफ्त में बांटे जाने की फिलहाल कोई योजना नहीं?है. मंत्रालय भी इस हकीकत को मानता है कि खाना पकाने के दौरान मामूली चूल्हे के धुएं से महिलाओं की आंखें खराब हो जाती हैं और उन्हें तमाम बीमारियां भी हो जाती हैं. अब उन्नत चूल्हे के इस्तेमाल से महिलाओं की सेहत दुरुस्त रहेगी. इस के अलावा कार्बन कम निकलने से यह उन्नत चूल्हा पर्यावरण के लिए भी मुफीद रहेगा. काबिलेगौर है कि गांवों के 84 फीसदी घरों में खाना पकाने के लिए जलावन की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. अब इस उन्नत चूल्हे की वजह से गांवों की नाजुक गोरियों को अपनी खूबसूरत आंखों से आंसू नहीं बहाने पडेंगे.

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