कालेधन के खात्मे के लिए नोटबंदी के बाद सब से ज्यादा किसान परेशान हैं. हालात देख कर यह लगता है, जैसे सब से ज्यादा कालाधन इन गरीब किसानों के पास ही है. किसानों पर नोटबंदी का ऐसा असर हुआ कि उन की धान की फसल औनेपौने दामों में बिक रही है और रबी की फसल के लिए उन को महंगी कीमत में खाद, बीज और कीटनाशक  खरीदने पड़ रहे हैं. उत्तर प्रदेश से ले कर हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र और बिहार तक  के किसान इस मुसीबत में फंसे नजर आए. यह संकट केवल किसानों को ही परेशान नहीं कर रहा, बल्कि खेती के काम में लगे मजदूर तक इस से परेशान हैं. मंडियों में अनाज बेचने का काम करने वाले आढ़तिए व मजदूरी करने वाले पल्लेदार भी परेशानी में डूबे नजर आए. सब से ज्यादा परेशानी में धान और गुड़ की मंडियां हैं. मंडियों से मिली जानकारियों के अनुसार नोटबंदी के बाद पहले 10 दिनों में सब से ज्यादा असर मंडियों पर पड़ा है.   

मंडियों में धान और गुड़ को बेचनेखरीदने का काम बंद हो गया है. मंडी में सुबह भीड़ जुटती है, पर धीरेधीरे दोपहर तक खत्म हो जाती है. किसान, आढ़तिए और पल्लेदार इस बात को मानते हैं कि नोटबंदी सही है, पर यह पाबंदी लगाते समय पूरी तैयारी नहीं की गईं. अगर मुद्रा बाजार में छोटे नोट पहले से ही चलन में लाए गए होते, तो यह परेशानी नहीं होती. इस परेशानी से बचने के लिए किसान आढ़तियों को सब्जी जैसी खराब होने वाली पैदावार दे देते हैं. आढ़तिए उन को पहले पुराने नोट देने का काम करते हैं, जब किसान पुराने नोट नहीं लेते तो उन्हें चेक दिया जाता है. कई आढ़त वाले किसानों के नाम अपने रजिस्टर में लिख लेते हैं और पैसा बाद में देने को कहते हैं.

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