भारत में आम की औसत उत्पादकता 8.11 टन प्रति हेक्टेयर है. उत्तर प्रदेश में आम की पैदावार सब से ज्यादा 34 फीसदी होती है. विश्व बाजार में भारत का आम बहुत पसंद किया जाता है. दूसरे देशों को आम भेजने के लिए हमें इस की उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाना बहुत जरूरी है. आम की कम उत्पादकता का खास कारण बाग लगाने के 8-10 सालों तक कम उपज प्राप्त होना है, क्योंकि शुरुआती साल में बौर कम आते हैं और फसल कम होती है. इस तरह शुरू के कई सालों तक फायदेमंद उपज नहीं मिलती है और बाग में पेड़ों के बीच की जमीन पर दूसरी फसल उगा कर घाटा पूरा करना पड़ता है. आम की खास किस्मों जैसे कि दशहरी, लंगड़ा, बंबई हरा, चौसा, अल्फांसो, हिमसागर, बैगनपल्ली, केसर व मलगोवा वगैरह में हर साल अच्छी उपज नहीं होती है. इन में हर दूसरे साल में अच्छी उपज होती है. लिहाजा देर से लाभकारी मूल्य प्राप्त होने के कारण आम की बागबानी बड़े किसान ही करते हैं, जो शुरू के 10-15  सालों तक आम के बाग की लाभकारी उपज की कमी को सहन करने की कूवत रखते हैं. छोटे किसान आम की बागबानी में कम रुचि रखते हैं.

पेड़ों की आपसी दूरी कम कर के इन पेड़ों से शुरू के सालों से ही अच्छी उपज ले सकते हैं.

आम में हर साल फल के लिए यह जरूरी है कि फल तोड़ने के बाद हर साल नए प्ररोह आएं. हर साल पुष्पन वाले पेड़ों पर 6 महीने तक पुष्पन व फलन होता है और हर 6 महीने तक प्ररोहों की वृद्धि का समय होता है. इस से पेड़ों पर हर साल फलन होता है. आम में वृद्धि और पुष्पन साथसाथ नहीं होता है. सघन बागबानी में दशहरी किस्म के पेड़ों की आपस में दूरी 3.0×3.0 मीटर रख कर बागबानी की जा सकती है. आम की सघन बागबानी के लिए 1111 कलमी पौधे प्रति हेक्टेयर लगाए जाते हैं, जिस में पौधों की आपस की दूरी 3.0×3.0 मीटर होती है. सघन बागबानी में साधारण बागबानी की तरह गड्ढे खोदने की जरूरत नहीं होती है. आम के कलमी पौधों को सामान्य रूप से रोपा जाता है. पौध लगाने के बाद तुरंत सिंचाई की जाती है.

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