दालों में प्रोटीन की भरपूर मात्रा होने के साथसाथ ये मिट्टी की उपजाऊ कूवत को भी बढ़ाती हैं. पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई दलहनी फसलें खरीफ, रबी व जायद के मौसमों में उगाई जाती रही हैं. फसल चक्र में दलहनी फसलों की मौजूदगी मिट्टी में नाइट्रोजन की भी बढ़ोतरी करती है. 

अरहर की उन्नत खेती

अरहर खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली दलहनी फसल है. इस की खेती ज्यादातर इलकों में होती है और पिछले 10 सालों में किसानों का रुझान इस की खेती की तरफ बढ़ा है. ऐसे इलाकों में जहां पर सिंचाई का सही इंतजाम नहीं है, वहां इसे उगया जाता है. इस के उत्पादन व उत्पादकता में बढ़ोतरी के लिए अच्छी किस्मों का चुनाव बेहद जरूरी है. अरहर की अलगअलग किस्मों की पैदावार कूवत 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.

अरहर कुदरत-3 और कुदरत करिश्मा जैसी संशोधित किस्में भी हैं. यह किस्में रोग रहित है इस के लिए आप मोबाइल नंबर : 09935281300 पर संपर्क कर के बीज मंगा सकते हैं. 

अच्छी किस्में : हालांकि अरहर की

3 प्रकार की (अल्पकालीन, मध्यकालीन व दीर्घकालीन) किस्में होती हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य के पश्चिम हिस्से में इस की केवल अल्पकालीन किस्मों (140-150 दिन) की खेती ही सफल है.

खेत का चयन व तैयारी : अरहर की फसल के लिए ऐसी मिट्टी जरूरी है, जिस में जल निकास की सही व्यवस्था हो, क्योंकि खेत में पानी भरने पर फसल को भारी नुकसान हो सकता है. मिट्टी का पीएच मान 5-8 के बीच होना चाहिए. अरहर में मिट्टी जनित रोगों से बचाव के लिए एक ही खेत में लगातार कई सालों तक अरहर नहीं उगानी चाहिए. बोआई करने से पहले खेत की एक बार गहरी जुताई कर के 2-3 बार हैरा चला कर मिट्टी  को भुरभुरी कर लेना चाहिए. इस के बाद खेत बोआई के लिए तैयार हो जाता है. बोआई के समय खेत में सही नमी का होना बहुत जरूरी है.

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