ऊसर जमीन खेती करने के लिहाज से बेकार होती है. जब जमीन का काफी हिस्सा ऊसर हो तो चिंता वाली बात होती है, मगर इस मामले में वैज्ञानिकों ने हल तलाश लिया है. अब ऊसर जमीन को सुधारा जा सकता . भारत में एक बड़ा हिस्सा ऊसर जमीन का है, जिस में खासतौर पर लवणीय और क्षारीय जमीन मुख्य रूप से पाई जाती है.एक अनुमान के मुताबिक देश में लवणीय और क्षारीय जमीन उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत अन्य प्रदेशों के बड़े क्षेत्र में पाई जाती है. ऊसरीले इलाकों में खेती करना मुश्किल है या फिर मुमकिन ही नही है. ऐसे में इन समस्याग्रस्त जमीनों का जल्दी से सुधार करने के लिए एक अचूक तरीका है जिप्सम और पायराइट से जमीन का सुधार.
ध्यान देने वाली बात यह है कि जिप्सम और पायराइट न केवल ऊसर जमीन को सुधारते हैं, बल्कि नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश के बाद सब से जरूरी द्वितीयक पोषक तत्त्व जैसे सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम और कुछ सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसे लोहा वगैरह का भी अच्छा स्रोत हैं. क्या है ऊसर जमीन की पहचान : ऐसी जमीन, जिस में लवण (सोडियम, सोडियम बाईकार्बोनेट, सोडियम क्लोराइड) वगैरह की अधिकता की वजह से ऊपरी सतह सफेद दिखाई देने लगती है या जमीन बहुत ही कठोर हो जाती है और फसलें नहीं उगाई जा सकती हैं, उसे ऊसर जमीन कहते हैं.
ऊसर जमीन की मुख्य पहचान है, जमीन का कड़ा हो जाना, पानी न सोखना, जिस से जमीन पर कटाव होता है और नाले बन जाते हैं, जहां ऊसर क्षेत्र होता है, वहां मकानों में प्लास्टर जल्दी गिरने लगते हैं, यह धीरेधीरे ईंटों को गलाने लगता है. बारिश होने पर यह मिट्टी साबुन की तरह फिसलने लगती है. ऊसर जमीन 3 प्रकार की होती है, लवणीय, क्षारीय और लवणीय व क्षारीय.