उम्र बढ़ने के साथ मोटापा मवेशियों को भी अपनी गिरफ्त में ले लेता है. आमतौर पर इस तरफ मवेशीपालकों का ध्यान नहीं जाता, क्योंकि वे इस गलतफहमी में रहते हैं कि मवेशियों में मोटापा नहीं होता बल्कि वे सेहतमंद हो रहे हैं. मवेशियों की सेहत के बारे में किसान ज्यादा जाननेसमझने की जरूरत नहीं महसूस करते. मवेशी खापी रहा है, काम कर रहा है और गायभैंसें दूध दे रही हैं, यही किसानों के लिए काफी है. लेकिन हकीकत यह है कि मोटे होते हुए मवेशी धीरेधीरे काम करना बंद कर देते हैं और गायभैंसों के दूध की मात्रा घटती जाती है.

इसलिए मोटे होते हैं मवेशी

इनसानों की तरह कुछ मवेशी भी आलसी मिजाज के होते हैं. उन्हें जब तक धक्का न दिया जाए, वे हिलते ही नहीं. ऐसे मवेशियों से किसान परेशान रहते हैं, क्योंकि इस से खेती के काम धीमे होते जाते हैं. लेकिन गायभैंसों की यह लत आसानी से पकड़ में नहीं आती. पेटू जानवरों को अगर घासचारा लगातार मिलता रहे, तो वे जरूरत से ज्यादा खाते रहते हैं, इस से धीरेधीरे उन के शरीर में चर्बी बढ़ती जाती है और वे सुस्ती का शिकार होने लगते हैं. ऐसे में दूध घट जाता है. बात सीधी है कि मवेशी ज्यादा खाएगा और मेहनत कम करेगा तो उस का मोटा होना तय है और यही मोटापा उस में कई बीमारियों की वजह बनता है, जिन की पहचान आसानी से नहीं हो पाती. मवेशीपालक भी पशुओं की खुराक पर खास ध्यान नहीं देते, क्योंकि उन्हें इस बारे में जानकारी ही नहीं होती. नीमच के मवेशियों के माहिर डाक्टर प्रदीप त्रिवेदी का कहना है कि यह सच है कि मवेशी भी मोटापे का शिकार हो कर तरहतरह की बीमारियों से घिर जाते हैं, जिन में खास हैं डायबिटीज यानी शुगर की बीमारी, प्रजनन कूवत में कमी और दिल से ताल्लुक रखती बीमारियां. इन से बचाव के लिए किसानों को वक्तवक्त पर मवेशियों की निगरानी करते रहना चाहिए कि कहीं वे मोटे तो नहीं हो रहे.

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