पपीता एक जायकेदार फल होने के साथ ही कई खूबियों से  भरपूर होता है. जब किसी को आंखों में कमजोरी या पेट की तकलीफ होती है, तब डाक्टर उसे पपीता खाने की सलाह देते  हैं. पपीता हर जगह आसानी से मिलने वाला फल है.

किसानों के लिए पपीते की खेती करना काफी फायदे का सौदा साबित हो सकता  है. पपीते की खेती में लागत कम आती  है, लेकिन समयसमय पर उस की देखभाल बहुत जरूरी  है. पपीते की खेती के लिए किसी खास किस्म की मिट्टी की जरूरत नहीं होती. इस की खेती किसी भी मिट्टी और जलवायु में आसानी से की जा सकती है.

पपीते की खेती के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. अगर किसान जरा सी सावधानी से काम लें, तो कम लागत में अच्छी पैदावार कर के काफी मुनाफा कमा सकते हैं.

रोपाई  : पौधे लगाने के लिए 1 या 2 मीटर की दूरी पर 50×50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोद लेते हैं. 15-20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद और 2 किलोग्राम आर्गेनिक खाद का मिश्रण मिट्टी में मिला कर सभी गड्ढों में जरूरत के हिसाब से भर देते  हैं.

जिन इलाकों में पाला पड़ता  है और सिंचाई के साधन मौजूद हों, वहां पौधे लगाने का काम फरवरीमार्च में करना चाहिए. उत्तर भारत में पौधे लगाने का काम आमतौर पर जुलाईअगस्त में किया जाता  है. वैसे तमाम प्रयोगों से साबित हो गया  है कि अक्तूबरनवंबर में पौधे लगाने से विषाणु रोग का खतरा कम हो जाता है.

सिंचाई  : पपीता उथली जड़ वाला पौधा है, इसलिए इसे ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती  है. यह पानी के भराव को सहन नहीं कर सकता. पपीते में कम दिनों पर हलकी सिंचाई करनी चाहिए. गरमी के दिनों में हर हफ्ते और सर्दी के मौसम में 10-15 दिनों पर सिंचाई करना ठीक रहता  है. बारिश के मौसम की खेती के लिए सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती.

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