भारत की प्रमुख फसल गेहूं पूरे देश में उगाई जाती है. भारत में साल 2010-11 में 87.7 मिलियन टन गेहूं उत्पादन हुआ. गेहूं में कीटों, सूत्रकृमियों व रोग के कारण 5-10 फीसदी उपज की हानि होती है और दानों व बीजों की गुणवत्ता भी खराब होती है. गेहूं की फसल में 80 से ज्यादा नेमेटोड की प्रजातियां होती हैं. सूत्रकृमि या निमेटोड बहुत छोटे आकार के सांप जैसे जीव होते?हैं, जिन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता. ये माइक्रोस्कोप से ही दिखाई देते हैं. ये अधिकतर मिट्टी में रह कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. इन के मुंह में एक सुईनुमा अंग स्टाइलेट होता?है. इस की सहायता से ये पौधों की जड़ों का रस चूसते हैं, जिस के कारण पौधे भूमि से खादपानी पूरी मात्रा में नहीं ले पाते. इस से इन की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है. बीज गाल (पिटिका) निमेटोड (एंगुनिया ट्रिटीसाई) : इस निमेटोड की मादा 6 से 12 दिनों के अंदर 1000 अंडे नए गाल (पिटिका) के अंदर देती है. जब फसल पकने वाली होती है, तो पिटिका भूरे रंग की हो जाती?है. दूसरी अवस्था वाले लार्वे पिटिका में भर जाते हैं. दूसरी अवस्था के लार्वे 28 साल पुरानी बीज पिटिका में जीवित अवस्था में पाए गए हैं. फसल की कटाई के समय स्वस्थ बीज के साथ पिटिका से ग्रसित बीज भी इकट्ठा कर लिए जाते हैं.
जब अगले साल की फसल की बोआई की जाती है, तो अगला जीवनचक्र फिर शुरू हो जाता है. 1 बीज पिटिका में तकरीबन 3 हजार से 12 हजार दूसरी अवस्था वाले लार्वे पाए गए हैं. जब ये लार्वे नमी वाली भूमि के संपर्क में आते हैं, तो नमी सोखने के कारण मुलायम हो जाते हैं. ये पिटिका को फाड़ कर बाहर निकल आते हैं. लार्वे की दूसरी अवस्था हानिकारक होती?हैं. इस अवस्था के लार्वे भूमि से 10 से 15 दिनों में बाहर आ जाते हैं और बीज के जमने के समय हमला कर देते हैं. लार्वे बीज के जमने वाले भाग से ऊपर पौधे के चारों ओर बढ़ने वाले क्षेत्र में और पत्ती की सतह में पानी की पतली परत के सहारे ऊपर चढ़ जाते हैं. ये पत्ती के बढ़ने वाले भाग से पत्ती की चोटी पर चढ़ जाते हैं. पौधे की बढ़वार अवस्था में फूल के बीज बनने वाले स्थान पर निमेटोड हमला करते?हैं और लार्वे फूल के अंदर चले जाते हैं. इस अवस्था में निमेटोड बीज बनने वाले भाग में रहते हैं और संख्या बढ़ने के कारण फूल पिटिका में बदल जाते?हैं. लार्वे 3 से 5 दिनों में फूलों पर आक्रमण कर के नर व मादा में परिवर्तित हो जाते?हैं. बहुत से नर व मादा हरी पिटिका में मौजू रहते हैं.
नुकसान के लक्षण
निमेटोड से ग्रसित नए पौधे का नीचे का भाग हलका सा फूल जाता?है. इस के अलावा बीज के जमाव के 20-25 दिनों बाद नए पौधे के तने पर निकली पत्ती चोटी पर से मुड़ जाती है. रोग ग्रसित नए पौधे की बढ़वार रुक जाती है और अकसर पौधा मर जाता है. रोग ग्रसित पौधा सामान्य दिखाई देता?है. उस में बालियां 30-40 दिनों पहले निकल आती?हैं. बालियां छोटी व हरी होती हैं, जो लंबे समय तक सामान्य बाली के मुकाबले हरी रहती?हैं. बीज पिटिका में बदल जाते हैं. इस रोग का मुख्य लक्षण यह है कि बीज गाल यानी पिटिका में बदल जाते?हैं. गाल (पिटिका) छोटा व गहरा होता है, जो स्वस्थ बीज के मुकाबले भूरा और अनियमित आकार का हो जाता है. गाल (पिटिका) के आकार के अनुसार 1 गाल में 800 से 3500 की संख्या में लार्वे पाए जाते हैं. इस निमेटोड के कारण पीली बाल या टुंडा रोग हो जाता है. निमेटोड बीजाणु फैलाने का काम करते हैं. इस रोग के कारण नए पौधों की पत्तियों व बालियों पर हलका पीला सा पदार्थ जमा हो जाता है. रोग ग्रसित पौधों से बालियां ठीक से नहीं निकल पातीं और न ही उन में दाने बनते हैं.
रोकथाम
बीज की सफाई : टुंडा रोग या बाल गांठ रोग या निमेटोड रहित बीज लेने चाहिए. बीजों को छन्नी से छान कर पानी में 20 फीसदी के बराइन घोल में डाल कर तैरते हुए बीज अलग कर लेने चाहिए.
गरम पानी से उपचारित करना : बीजों को 4 से 6 घंटे तक?ठंडे पानी में भिगोना चाहिए. इस के बाद 54 डिगरी सेंटीग्रेड गरम पानी में 10 मिनट तक उपचारित करना चाहिए.
फसल हेरफेर कर बोना : निमेटोड को खेत से बाहर करने के लिए प्रभावित फसल की 2 या 3 सालों तक बोआई नहीं करनी चाहिए.
रोगरोधी किस्म : निमेटोड अवरोधी प्रजातियां ही खेत में बोनी चाहिए.
संक्रमित पौधे निकालना : निमेटोड से संक्रमित पौधे पता लगा कर अगेती अवस्था में ही नष्ट कर देने चाहिए.
सूप से फटकना या हवा में उड़ाना : यह विधि भी सहायक गाल को बाहर करने के लिए कारगर है, पर इस विधि से गाल (पिटिका) पूरी तरह से बाहर नहीं होते?हैं.
सिस्ट गांठ निमेटोड (हेटरोडेरा एविनी) : गांठ निमेटोड नीबू के आकार की गांठ के अंदर अंडे देता है, जो कई सालों तक जीवित रहते?हैं. ये गांठ से अलग हो कर भूमि में निकल आते?हैं. मार्चअप्रैल और अक्तूबरनवंबर तक गांठ में करीब 400 अंडे रहते हैं. इस समय अंडों में दूसरी अवस्था के लार्वे बेकार अवस्था में रहते हैं. फसल की अगली बोआई के समय नवंबर से जनवरी के दौरान रोग ग्रसित लार्वे गांठ से निकलने शुरू हो जाते हैं. एक सीजन में 50 फीसदी अंडे फूट जाते?हैं और बाकी अगले सीजन तक महफूज रहते हैं. जब फसल 4 से 5 सप्ताह पुरानी व ताप 16 से 18 डिगरी सेंटीग्रेड हो जाता है, तब दूसरी अवस्था के लार्वे जड़ की चोटी से घुसते हैं. शरीर विकसित होने में 4 हफ्ते लगते हैं. भोजन लेने के बाद दूसरी अवस्था चौड़ाई में बढ़ती है. मादा नीबू का आकार लेती है और सफेद रंग की होती है.
जड़ में घुसने के 4-5 हफ्ते बाद लार्वों को जड़ से बाहर निकलते देखा जा सकता?है. मादा तभी मर जाती है. उस के शरीर का कठोर व गांठ से भरा अवशेष अगले सीजन को संक्रमित करने के काम आता?है. नर वयस्क गोलाकार केंचुए जैसा होता?है. नर का विकास लार्वे में होता है. लार्वे वयस्क में बदलते?हैं. इन का जीवनचक्र 9 से 14 हफ्ते में पूरा होता?है और साल में 1 पीढ़ी पाई जाती?है. यह निमेटोड गेहूं और जौ में मोल्या रोग फैलाता है.
नुकसान के लक्षण
इस निमेटोड के लक्षण शुरू में खेत में टुकड़ों में दिखाई देते?हैं, जो 3-4 सालों में पूरे खेत में फैल जाते हैं. इस के शुरुआती लक्षण फसल के जमाव के समय दिखने लगते हैं. इस की वजह से पौधों की जमीन से पोषक तत्त्वों को लेने की कूवत कम हो जाती है और जड़ों में गांठें बन जाती हैं. इस के अलावा पौधों की बढ़वार रुक जाती?है और रोगग्रस्त पौधे हरेपीले रंग के दिखाई देते हैं. ऐसे रोगग्रसित पौधों की बालियों में बहुत कम दाने बनते?हैं. पौधों के आधार पर मूसला जड़ें विकसित हो जाती हैं. जड़ों पर फरवरी के मध्य में निमेटोड का आक्रमण दिखाई पड़ता?है. रेशे वाली जड़ें भूमि से आसानी खींची जा सकती हैं. इस के प्रकोप से रेतीली मिट्टी में 45 से 48 फीसदी नुकसान होता?है.
रोकथाम
कृषि क्रियाएं विधि : गांठ निमेटोड अवरोधी और सूखा न सहने वाला?है. फसलचक्र व गरमी की जुताई से इस की रोकथाम की जा सकती है.
पोशक अवरोधी फसलें जैसे सरसों, चना, कारिंडर, गाजर व फ्रैंचबीन वगैरह से इस की रोकथाम कर सकते हैं.
मईजून महीनों में 2-3 बार गरमी की जुताई करने पर निमेटोड की संख्या कम की जा सकती है. गरमी के महीनों में गांठें कम हो जाती हैं. गेहूं की अगेती बोआई करने पर नुकसान को कम किया जा सकता?है.
अवरोधी प्रजातियां : भारत में गेहूं की निमेटोड अवरोधी प्रजातियां सीसीएनआरवी 1 व राज एमआर 1 उगाई जाती हैं.
जौ की अवरोधी प्रजातियां राज किरन, आरडी 2035, आरडी 2052 और सी 164 संक्रमित क्षेत्र में उगाई जाती हैं. इन प्रजातियों में मादा के अंडे देने में असफल होने के कारण निमेटोड की तादाद कम हो जाती है.
रसायनिक विधि : खेत में कार्बोफुरान 3 फीसदी 65 किलोग्राम या फोरेट 10 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालने से निमेटोड पर काबू पाया जा सकता है.
एकीकृत इलाज : मईजून के महीनों में गरमी की जुताई कर के और अवरोधी फसलों जैसे चना व सरसों की बोआई कर के निमेटोड की तादाद कम करने में सफलता पाई जा सकती है.