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‘‘कुछ नहीं. कुछ भी तो नहीं,’ झेंपते हुए मैं ने कहा और नमकदानी उठाने लगी. ‘असल में रीना की मम्मी आई थीं और उन्हें देख कर मुझे लगा कि कहीं रीना का परिवार न टूट जाए, मोनू का क्या होगा?’’ कहते हुए जब मैं ने अपने पति की ओर देखा तो उन का चेहरा बहुत शांत था. धीरेधीरे पूरी बात सुन कर वह बहुत गंभीर स्वर में बोले, ‘‘किसी के घर के अंदर क्या हो रहा है उस को तब तक जानने की कोशिश मत करो, जब तक वह स्वयं तुम्हें न बताए और एक कहावत याद रखना कि जब तक कोई मांगे नहीं सलाह व नमक मत दो वरना संबंधों व मुंह का जायका बिगड़ जाता है.’’

अपने पति की दोटूक राय मेरी समझ में आ गई और मैं ने फैसला किया कि अपने को इस मामले से दूर रखूंगी. इस बात से मुझे गहन शांति मिली और मैं भी आराम करने चली गई. फिर रीना के यहां क्या हुआ, मैं ने जानने की कोशिश नहीं की.

‘7 बज गए, अभी तक तुलसी नहीं आई.’ अपनेआप से बड़बड़ाते हुए मैं रसोई तक जा कर लौट आई, पूरा सिंक बरतनों से भरा हुआ था. ‘खुद साफ करूं कि और इंतजार करूं...’ की दुविधा बनी हुई थी. फिर सोचा, ‘अच्छा, साढ़े 7 तक देख लूं.’ सच है दूसरे के अधीन रहने में टैंशन तो झेलनी पड़ेगी पर सवा 7 पर ही तुलसी देवी के दर्शन हो गए. मैं क्रोध करने की स्थिति में तो थी नहीं, इसलिए जबरन मुसकराते हुए ही कहा, ‘‘क्या हो गया?’’

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