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छवि को एकाएक घर के अंदर घुटन सी होने लगी. वह बाहर आ गई. बाहर का मौसम सुहाना था. रात में हुई भारी बरसात से हरसिंगार के झड़े हुए फूलों का गलीचा सा बिछा हुआ था. उसे हलका सा सुकून मिला. वह धीरेधीरे चलती हुई लंबेचौड़े लौन को पार कर चारदीवारी के पास खड़े हरसिंगार के पेड़ के नीचे रखी कुरसी पर बैठ गई. हरसिंगार झड़ रहा था. कुरसी पर बैठ कर वह अपनी शानदार कोठी और कोठी को घेरे हुए लंबेचौड़े प्रांगण को निहारने लगी. गर्व करने के लिए क्या नहीं है उस के पास, प्यार करने वाला पति और अथाह धनसंपत्ति, कई शहरों में फैला हुआ उन का कारोबार. लेकिन बस एक ही कमी थी उस के जीवन में. संतान का सुख नहीं था. 19 साल पहले का भी एक ऐसा ही दिन था. जिस दिन वह ऐसे ही हताश, उदास और निराश इसी जगह पर बैठी हुई थी. वह यादों में खो कर उस अधूरे सपने का छोर पकड़ने का प्रयास करने लगी. उस के पति नीरज 2 भाई थे. छोटा भाई समर नीरज से बहुत छोटा था. सास ने  समर का हाथ उस के हाथ में पकड़ा कर संसार से अलविदा कह दिया था. उस ने मां की तरह पाला समर को और समर ने भी उसे भाभी मां का सा सम्मान दिया. समर बड़ा हुआ तो उस ने भाई के व्यवसाय में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. मैनेजमैंट की पढ़ाई करने के बजाय उस ने मैडिकल लाइन में जाना चाहा. उस के डाक्टर बनने पर नीरज को कोई एतराज नहीं था. उन का विचार था जब समर डाक्टर बनेगा तो डाक्टर लड़की से उस की शादी कर देंगे और एक अच्छा बड़ा शानदार नर्सिंगहोम खोल देंगे दोनों के लिए.

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