कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘हैलो रेखा, कैसी हो? मैं रेणू बोल रही हूं.’’

‘‘अरे, रेणू तुम कब आईं? मैं ने तो सुना था कि तुम लंबे समय के लिए भारत गई थीं.’’

दूसरी ओर से रेखा ने फोन का उत्तर देते हुए जब यह कहा तो रेणू सकपका सी गई. फिर अपने को संभाल कर बोली, ‘‘आज ही भारत से लौटी हूं. हां, पहले यह बताओ कि तुम्हें कुछ पता है कि अनुभव कहां हैं?’’

‘‘नहीं. मु झे तो कुछ पता नहीं. क्या भाईसाहब तुम्हें लेने एयरपोर्ट नहीं गए?’’ रेखा ने दूसरा प्रश्न किया तो रेणू चुप हो गई. अब वह उसे कैसे बताए कि अनु को उस ने अपने वापस आने के बारे में बताया ही नहीं. हां, एयरपोर्ट पहुंच कर घर फोन जरूर किया था पर किसी ने उठाया ही नहीं. इसलिए वह एकदम टैक्सी पकड़ कर घर चली आई. घर पर जब अनुभव नहीं मिले तो बहुत निराशा हुई.

‘‘नहीं, उन्हें यह पता नहीं था कि मैं आज वापस आ रही हूं. मैं उन्हें अचानक आ कर आश्चर्य में डाल देना चाहती थी,’’ रेणू ने रेखा से बात आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘सुनो, यहां आ जाओ. खाना खा कर चली जाना,’’ रेखा बोली.

‘‘नहीं, मैं बहुत थकी हुई हूं. कल देखूंगी,’’ रेणू ने उत्तर दिया और फोन रख दिया.

रेखा हमारे पड़ोस में ही रहती है तथा अनुभव और रेखा के पति सुबोध पिछले 5-6 सालों से अच्छे मित्र हैं, पहले दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे.

रात के 11 बज गए पर अनुभव का कोईर् पता नहीं चला. रेणू ने कई जगह फोन भी किया पर किसी को भी अनुभव के बारे में पता नहीं था. गैराज में दोनों कारें खड़ी हैं, तो फिर अनुभव कहां जा सकते हैं? दिमाग के घोड़े दौड़ाते हुए रेणू समझ नहीं पा रही थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...