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उन की निश्छल हंसी के बीच उन का मन नहीं हुआ कि वे शुचि को अपने कड़वे अनुभवों के बारे में बताएं. पर बताना तो पड़ेगा ही. इतनी बड़ी बात को वे छिपा भी तो नहीं सकतीं, विशेष रूप से अपने बेटे शायक से.

शीघ्र ही शुचि चाय बना लाई और स्वयं वहीं बैठ कर चाय की चुस्कियां लेने लगी.

‘‘मां, हमें भी भूख लगी है,’’ आर्यन और अदिति ने दोनों को चाय पीते देख शोर मचाया.

‘‘धीरज रखो, थक गई हूं. मांजी भी सुबह से अकेले बैठी हैं. चाय तो पीने दो,’’ शुचि ने दोनों को डपटा.

‘‘तुम कह कर जातीं तो मैं दोनों के लिए गरम नाश्ता बना कर रखती. पर तुम ने बताया ही नहीं. तुम दोनों तो कुछ खाते ही नहीं, तलाभुना खाने से वजन जो बढ़ जाता है,’’ कामिनी ने शिकायत की.

‘‘मुझे भी कहां पता था मां? औफिस में अदिति का फोन आया कि स्कूल

3 दिनों के लिए बंद हो रहा है. एनसीसी का कैंप है. मैं जा कर ले आई. छात्रावास में रहने से तो अच्छा है 3 दिनों तक घर में रहेंगे हम सब के साथ. आज मैं बनाती हूं कुछ गरमागरम आप सब के लिए. आप तो दिनभर रम्या की सहायता कर के थक गई होंगी,’’ शुचि चाय समाप्त होते ही उठ खड़ी हुई.

‘‘रम्या आंटी की सहायता, पर क्यों? उन्हें दादी की सहायता की क्या आवश्यकता पड़ गई?’’ अदिति बोली.

‘‘पलक का जन्मदिन है. मांजी उसी के लिए रम्या की सहायता कर रही हैं,’’ शुचि ने समझाया.

‘‘अच्छा, रम्या के बेटे का नाम पलक है? लो भला मुझे तो यह भी पता नहीं. न मैं ने पूछा न रम्या ने बताया. मैं ने तो उसे देखा तक नहीं है. वह भी क्या तुम दोनों की तरह छात्रावास में ही रहता है?’’ कामिनी ने प्रश्न किया.

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