कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

वह मुकेश की गुस्ताखी की चर्चा करना चाहते थे, लेकिन कुछ सोच कर चुप रह गए थे. वह जानते थे कि मुन्ना सब कुछ सुन कर तपाक से कहेगा, ‘‘अरे बाबूजी, क्यों बच्चों के मुंह लगते हैं? नौकर से कह दिया होता. वह दबा देता आप का सिर.’’

लेकिन प्रश्न यह था कि क्या नौकर खाली बैठा रहता था उन के लिए? दूध लाओ, सब्जी लाओ, बच्चों को ट्यूशन पढ़ने के लिए छोड़ कर आओ, बहू और बच्चों के कमरे साफ करो, रसोई धोओ. हजार काम थे उस के लिए. वह भला उन का काम कैसे करता?

‘‘दर्द निवारक टिकिया मंगवाई थी न आप ने? 2 गोलियां एकसाथ खा लीजिए. तुरंत आराम आ जाएगा. मैं सुबह डाक्टर को बुलवा कर दिखवा दूंगा. अच्छा, मैं चलता हूं. अगर रात में ज्यादा तकलीफ हो तो हमें आवाज दे दीजिएगा,’’ कह कर मुन्ना चल दिया था.

मुन्ना के पहले उन की 2 बेटियां और थीं. वह सोचते थे कि बेटियां तो पराया धन होती हैं. दूसरे घर चली जाएंगी. उन का बेटा मुन्ना ही बुढ़ापे में उन की सेवा करेगा. उस की बहू आ जाएगी तो वह उन की सेवा करेगी. फिर नातीनातिन हो जाएंगे तो वे बाबाबाबा कहते हुए उन के आगेपीछे घूमेंगे. मुन्ना बचपन में आए- दिन बीमार पड़ जाता था. उन्होंने उस की बड़ी सेवा की थी और धन भी खूब लुटाया था. न जाने कितने दवाखानों की धूल छानी थी. न जाने कितनी मनौतियां मानी थीं. न जाने कितनी रातें जागते हुए गुजार दी थीं. अब उस का रवैया देख कर लगता था कि उन्होंने कितना बड़ा भ्रम पाल लिया था. वह भी कैसे पागल थे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...