‘अरे, आओआओ, कैसे भूल पड़ी?’’
‘‘आज रात की ड्यूटी है न, इसलिए सोचा कि तुम से मिल लूं.’’
मैं शशि को ले कर अंदर चली आई और उसे बिठाते हुए बोली, ‘‘क्या पियोगी?’’
‘‘कुछ नहीं. अभीअभी खाना खा कर आ रही हूं. अकेले बैठेबैठे बोर हो रही थी. सोचा, तुम्हारे साथ थोड़ी देर गपशप ही कर लूं.’’
‘‘अच्छा किया. मैं भी बैठी बोर हो रही थी. कभीकभी आ जाया करो न.’’
‘‘तुम तो कभी आतीं ही नहीं.’’
‘‘तुम्हारी ड्यूटी का तो कुछ पता ही नहीं चलता.’’
‘‘आज से 15 दिन के लिए रात की ड्यूटी है.’’
‘‘फिर तो जरूर आऊंगी,’’ मैं ने कहा.
शशि अस्तपाल में नर्स है. जब भी वह सफेद कपड़ों में सैंडिल ठकठकाती हुई अस्पताल जाती है तो मुझे रश्क सा होने लगता है. सोचती हूं मैं भी फिर से यहां किसी नौकरी पर लग जाऊं.
‘‘तुम क?हां तक पढ़ी हो?’’ शशि ने पूछा.
‘‘बीए तक.’’
‘‘अच्छा, सुना है शादी से पहले तुम नौकरी करती थीं.’’
‘‘हां, लेकिन ज्यों ही मंगनी हुई त्यों ही नौकरी छोड़ दी.’’
‘‘तुम ने खुद छोड़ दी या तुम्हारे पति ने छुड़वा दी?’’
‘‘उन्होंने.’’
‘‘चलो, अच्छा हुआ. वैसे भी तुम्हारे पति ऊंचे पद पर हैं और उन की अच्छीखासी तनख्वाह है. फिर तुम्हें क्या जरूरत है नौकरी करने की.’’
‘‘लेकिन घर पर ही बैठ कर क्या करूं? 3 जनों का खाना ही कितना होता है? कोई न कोई काम हो तो...’’
‘‘जिन के पास दांत हैं उन्हें चने नहीं मिलते और जिन के पास चने हैं उन के दांत नहीं.’’
‘‘मैं कुछ समझी नहीं.’’
‘‘देखो, कभीकभी मैं सोचती हूं कि यह नौकरी छोड़ कर घरगृहस्थी बसा लूं और तुम घरगृहस्थी से हाथ झटक कर नौकरी करना चाहती हो.’’