बेटे के बारबार कहने पर पूर्णिमा के मन में बेटे के पास जाने की इच्छा जाग्रत हुई. अब वे हमेशा पति से इस बारे में कहने लगीं कि 1 महीना तो कम से कम हमें भी बेटे के पास जाना चाहिए.
अब जब बेटे के आने का समाचार मिला, खुशी के चलते उन के हाथपैर ही नहीं चलते थे. हमेशा एक ही बात मन में रहती, ‘बेटा आ कर कब ले जाएगा.’
भरत जिस दिन आने वाला था उस दिन उसे हवाई अड्डे जा कर ले कर आने की पूर्णिमा की बहुत इच्छा थी. परंतु भरत ने कहा, ‘मां, आप परेशान मत हों. क्लियरैंस के होने में बहुत समय लगेगा, इसलिए हम खुद ही आ जाएंगे,’ उस के ऐसे कहने के कारण पूर्णिमा उस का इंतजार करते घर में अंदरबाहर चक्कर लगा रही थीं.
सुबह से ही बिना खाएपिए दोनों को इंतजार करतेकरते शाम हो गई. शाम 4 बजे करीब भरत व बहू आए. आरती कर बच्चों को अंदर ले आए. पूर्णिमा की खुशी का ठिकाना नहीं था. बेटाबहू अब और भी गोरे, सुंदर दिख रहे थे. रमाकांतजी बोले, ‘‘सुबह से अम्मा बिना खाए तुम्हारा इंतजार कर रही हैं. आओ बेटा, पहले थोड़ा सा खाना खा लें.’’
‘‘नहीं, बाबूजी, हम इंदू के घर से खा कर आ रहे हैं. अम्मा, आप अपने हाथ से मुझे अदरक की चाय बना दो. वही बहुत है.’’
तब दोनों का ध्यान गया कि उन के साथ में सामान वगैरह कुछ नहीं है.
इंदू ने अपने हाथ में पकड़े कपड़े के थैले को सास को दिए. उस में कुछ चौकलेट, एक साड़ी, ब्लाउज, कपड़े के टुकड़े थे.