47 साल का एक अधेड़ व्यक्ति 4 साल की मासूम बच्ची को चौकलेट दिलाने के बहाने साइकिल पर बैठा कर ले जाए और फिर उस का बलात्कार कर के सुबूत मिटाने के लिए पत्थरों से सिर कुचलकुचल कर उसे मार दे, इस से ज्यादा वहशीपन नहीं हो सकता. पर यौनपिपासा इतनी ज्यादा बेकाबू हो जाती है कि यह खुलेआम होता है और जिन्हें हिंसक, क्रूर, अशिक्षित नहीं कहा जा सकता, उन के द्वारा होता है.

पीड़ित बच्ची उस वहशी के मित्र की बेटी थी, जिसे वह चाचाचाचा कहती होगी. उसी ने यौनपिपासा बुझाने के लिए उस का पहले बलात्कार किया और फिर इस डर से कि वह शिकायत न कर दे, पत्थरों से मारमार कर उस की हत्या कर दी.

इस से भी बड़े दुख की बात तो यह है कि इस पर भी वह खुद को शरीफ समझने की भूल करता रहा और अपनी मृत्युदंड की सजा को माफ कराने के लिए जेल के बरताव, जिस में इंदिरा गांधी ओपन विश्वविद्यालय से परीक्षा में बैठना और ड्राइंग कंपिटिशन में हिस्सा लेना शामिल है का हवाला दिया गया. यानी अपराधी इतने घृणित काम के बाद भी सूली पर चढ़ने से बचने की भरसक कोशिश ही कर रहा था.

लगभग 8 साल बाद उस की आखिरी अपील ठुकराई गई पर उसे मृत्युदंड कब मिलेगा यह तय नहीं है और हो सकता है कि उस में भी 4-5 साल लग जाएं.

जो लोग मांग करते हैं कि बलात्कार के अपराधी को तुरंत सजा दी जाए उन्हें सबक सीखना चाहिए कि कानून का पहिया अगर सही चले तो भी दंड मिलने में कई साल लग जाते हैं. आमतौर पर अपराधी जेल जाने पर समझ जाते हैं कि अदालतों में अपराध साबित करने वाले पुलिस वालों व उन के वकीलों की चूक का अकसर उन्हें लाभ मिल जाता है.

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