अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को छिन्नभिन्न कर के ही जाएंगे, इस में अब शक नहीं रह गया है. 50 प्रतिशत से कहीं अधिक कौलीजिएट के वोटों से जीतने वाले और गोरे कट्टरपंथियों के लिए मसीहा बन कर उभरे डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक अमेरिका में अब 26 प्रतिशत ही रह गए हैं. उन की पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी भी, उन का अब लंबाचौड़ा साथ नहीं दे रही क्योंकि वे खब्तीनुमा राष्ट्रपति हैं, कब क्या कह दें, इस का पता नहीं.
अमेरिका का प्रैस अभी स्वतंत्र है और उसे राष्ट्रपति के भक्तों का दबाव नहीं सहना पड़ रहा है और इसीलिए वह मुखर है. वह राष्ट्रपति की अनर्गल बातों व बेसिरपैर के फैसलों को आड़ेहाथों ले रहा है.
दुनिया के अधिकांश देशों में जहां प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बहुमत में हैं, इस तरह के अधिकार नहीं रखते. पर जहां भी सरकार चलाने वालों के पास इस तरह के हक हैं, वे उन का कब दुरुपयोग कर लें, पता नहीं.
डोनाल्ड ट्रंप मुसलिम देशों के प्रति घृणा का उन्माद बनाए रख कर अपना काम सफलता से चला रहे हैं. अमेरिका में जनता मुसलिम कट्टरपंथियों से भयभीत है क्योंकि उन्हें उदार, लोकतांत्रिक मुसलमान तो दिखते ही नहीं हैं.
इसलामी देशों ने जिस तरह से आतंकवादियों को पनाह दी है, उस से दुनिया के सारे लोकतंत्र भयभीत हैं और सोच रहे हैं कि आतंकवादी लोकतांत्रिक अधिकारों का नाजायज फायदा उठा रहे हैं. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप व यूरोप में कट्टरपंथी पार्टियों की बढ़ती पैठ के पीछे यही कारण रह गया है.
पर इस का नुकसान न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों को चुकाना पड़ रहा है, बल्कि भय के वातावरण ने एक कोहरा सा भी बना दिया है कि कल न जाने क्या हो सकता है.