हर शहर में कामकाजी या स्टूडैंट युवतियों के लिए होस्टल्स की मांग बढ़ रही है. गांवों या दूसरे शहरों से आने वाली युवतियों को सुरक्षित छत के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं और पैसे से ज्यादा व्यावहारिक कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं. जो लोग इन्हें मकान किराए पर देते हैं उन्हें डर लगा रहता है कि युवतियां उन पर यौन शोषण का आरोप न लगा दें या फिर वास्तव में वहां वेश्यावृत्ति जैसे मामले होने लगें.

इस समस्या से छुटकारा आसान है. युवतियों के होस्टल्स में 20 फीसदी जगह वृद्ध महिलाओं के लिए सुरक्षित होने लगे जो एकमुश्त पैसा जमा कर लंबे समय तक रहने का हक पा सकें. होस्टल का निर्माण ही ऐसा हो कि युवतियों के टू टीयर, थ्री टीयर कमरों के साथ थोड़े बड़े स्टूडियो कमरे जिन में किचनपैंट्री का इंतजाम भी हो, बनें, जिन में वृद्ध महिलाएं रह सकें.

ये वृद्ध महिलाएं जानेअनजाने उन युवतियों की हमदर्द बन जाएंगी, कुछ की दादीमां बन जाएंगी और उन्हें सुरक्षा भी देंगी और अपने लिए भी सुरक्षा पाएंगी. वृद्ध महिलाओं के लिए वृद्धाश्रम का कौंसैप्ट ही खराब है. यह जेल सा लगता है, जो छवि सामने आती है, वह बेचारी बीमार, अशक्त महिलाओं के समूह की आती है जो वृंदावन की विधवाओं की याद दिलाती है. उधर युवतियां अपने घरों से दूर किसी ऐसे का सहारा चाहती हैं जिस से सलाह ले सकें, जिस के साथ अपने दुख शेयर कर सकें. मिश्रित ग्रुप होने के कारण छेड़खानी भी नहीं होगी और होस्टल पूरे साल चलते रहेंगे. कुछ मामलों में तो होस्टल का पूरा प्रबंध अनुभवी और युवा मिल कर खुद चला लेंगे.

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