नरेंद्र मोदी की सरकार स्मार्ट सिटीज बनाने की बात कर रही है. इस के पीछे किसानों की जमीन छीनने और बिल्डर लौबी को खुश करने की बात छोड़ दें तो भी सवाल उठता है कि स्मार्ट सिटीज होंगी कैसी? क्या वे आज के शहरों से अलग होंगी? शाहजहांबाद के बाद अंगरेजों ने जब नई दिल्ली बनाई थी तो वह स्मार्ट सिटी ही थी पर अब उस में क्या स्मार्टनैस बची है? कनाट प्लेस, राजपथ, खान मार्केट ऊपर से कितने ही अच्छे लगें, जरा सी परत के पीछे झांकेंगे तो आम शहरों की तरह लगेंगे.  मुफ्त की जमीन थी तो सड़कें चौड़ी जरूर हैं पर क्या मकानों, सड़कों, पानी, सीवर, सफाई आदि का इंतजाम अच्छा है?चंडीगढ़ और गांधीनगर भी नए शहरों की तरह बसाए गए पर आज क्या उन में स्मार्टनैस बची है?

 कुछ शहरों में जबरन लोगों को अवैध निर्माण नहीं करने दिया जा रहा, फिर भी लोग कर ही लेते हैं. नए शहरों में कोनों पर गुमटियां बन गई हैं. गलियों में कूड़े के ढेर हैं. सड़कें टूटी हैं. ट्रैफिक लाइटें गायब हैं. अगर अमीरों के इलाके अच्छे लगते हैं तो शहरों में, नई दिल्ली व चंडीगढ़ में भी, गंदे इलाकों की भरमार है. दरअसल, स्मार्ट सिटी चल ही सकती है गंदे इलाकों पर जहां सेवा करने वालों को भेड़बकरियों (गायों की तरह नहीं, वे तो माता हैं) की तरह गंदी बस्तियों में रहने को मजबूर कर दिया जाता है. हर स्मार्ट सिटी के स्मार्ट इलाकों में जितने लोग रहते हैं उन से कई गुना ज्यादा लोग गरीब इलाकोें में रहेंगे. अगर उन गरीबों के पास पैसा न होगा तो वे छोटे मकानों, खंडहरों, टीनटप्परों में रहेंगे. चाहे जितनी कोशिश कर लो, स्मार्ट सिटी को जिंदा रखने के लिए बड़ेबड़े गरीब इलाके बनाने ही होंगे.

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