किसी भी देश की संपत्ति और साधन असिमित नहीं होते और यह देश के नेताओं का फर्ज होता है कि वे अपनी संपत्ति का सही इस्तेमाल करें. अमेरिका ने पिछले 100 सालों में अमेरिकियों की मेहनत, सूझबूझ और नई खोजों से खरबों कमाए और वह आज भी दुनियाका सब से अमीर देश है जबकि पहले 2 विश्वयुद्धों, कोल्ड कर, वियतनाम और अफगानिस्तान में उस ने बहुत पैसा बर्बाद किया.

अमेरिका को इस का लाभ यह हुआ कि यूरोप के समर्थ देश जर्मनी को पिछली सदी में रोका जा सका और उस के बाद रूस के कम्युनिस्टों का केंद्र बनाने से रोका जा सका. वियतनाम में उसे कम्युनिस्ट शासन रोकने में बुरी तरह मार खानी पड़ी पर हनोई की तब की विजय आज वियतनाम को फिर कैपिटलिस्ट इकोनौमी की ओर ले जा रही है. जो अमेरिका ने खोया था, असल में पा लिया.

अफगानिस्तान से निकलने की वजह यह रही है कि अमेरिक अब अपने साधन और अपनी संपत्ति को चीन से व्यापार युद्ध में लगाना चाहता है. अमेरिका को दिख रहा है कि चीन किस तेजी से औद्योगिक ही नहीं खोजी वातावरण को मजबूत कर रहा है और नई चीजें बनाने में वह बिना दुनिया भर का टेलेंट जमा किए भी पीछे नहीं है.

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अमेरिका के लिए चीन एक काला बादल है जो हो सकता है उस पर बरस पड़े. अमेरिका ने अफगानिस्तान की दलदल से निकल कर हार तो चाहे मान ली पर अब उसे आतंक का सामना नहीं करना पड़ेगा क्योंकि वह विश्व सरकार नहीं रह गया है, वह लगता है स्वीट्जर लैंड, स्वीडन, नार्वे, ङ्क्षसगापुर का मौडल अपनाएगा जिस में नागरिकों की खुशहाली ज्यादा मुख्य लक्ष्य होगी बजाए दुनिया भर में लोकतंत्र और न्याय का निर्यात करने के. चीन ने दूसरे देशों में दखल नहीं दिया खरबों डालर बनाए थे.

भारत के लिए यह कठिन स्थिति है. हम अपने साधनों और संपत्ति को धर्मकर्म में झोंक रहे है. देश भर में पागलपन की हद तक पैसा मंदिरों, आश्रमों, घाटों, घंटों घडिय़ालों और पूजा अर्चनाओं पर खर्च हो रहा है. पौराणिक युग का बखान पढ़ो तो वहां हर समय इस ऋ षि ने यज्ञ किया, उस महॢष ने हवन किया का बखान है. यही आज हमारे यहां हो रहा है. देश की संपत्ति का बड़ा हिस्सा धर्म में बर्बाद हो रहा है.

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अफगानिस्तान को अकेला छोड़ देने का मतलब है कि अब पठान फिर 1947 को कश्मीर में दोहरा सकते हैं. कश्मीर कभी काबुल के राजाओं के हिस्से में भी था. वे इतिहास के पन्ने उसी तरह पढ़ सकते हैं जैसे हम अपने इतिहास को अपनी दृष्टि से पढ़ रहे हैं. हमारा सारा पैसा धर्म, और जमीन बचाने में लगे तो बड़ी बात नहीं होगी. रूस और चीन के एक जमाने में कम्युनिज्म फैलाने में व थोपने में देश के लोगों को कंगाल किया था. अब भारत की बारी जिस का आटा तो कंगाली में गीला होने वाला है.

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