लड़ाकू अफगानों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि पहाड़ी इलाकों में रहने वाले ये लोग यदि कबिलाई ही हों, किसी के गुलाम बन कर नहीं रह सकते. अमेरिका को हराना इतना आसान नहीं है और अमेरिका को लगने लगा था कि उन्होंने ओसामा बिन लादेन को मारकर अपना 9/11 का बदला ले लिया जब ओसामा बिन लादेन की स्कीम के मुताबिक 2 हवाई जहाज न्यूयौर्क के बल्र्ड ट्रेड सेंटर से जा टकराए और——-मंजिल ट्रेड सेंटर कुछ घंटों में 2000 से ज्यादा लोगों को जान ले कर भरभरा कर गिर गया.
ओसामा बिन लादेन उस के बाद भागताफिरता रहा. अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. जब लगा कि दुनिया से आतंकवाद का आधा अधूरा छुटकारा मिल चुका है तो उन्होंने पहले इराक और लिबिया को छेड़ा और अब जब अफगानिस्तान की गुफाओं में छिप कर रह रहे ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में ढूंढ निकाला और एक रात बिना पाकिस्तान की भनक लगे मार डाला.
अब अफगानिस्तान में रहने का मतलब नहीं रह गया था और एकएक कर के सभी राष्ट्रपति किसी तरह इस जंजाल से निकलना चाह रहे थे. उन्हें यह जरूर लग रहा था कि उन के ट्रेन किए 3 लाख सैनिक और पुलिस वाले 60000 के करीब तालिबानियों का आसानी से मुकाबला कर लेंगे और उन्हें काबुल में घुसने से रोक लेंगे पर ऐसा नहीं हुआ. अफमान सेना और पुलिस आखिरी टुकड़ों पर चली पर उन का दिल तालिबानियों के साथ था. उस में विभिषणों और सुग्रीमों की कमी थी, अन्य नहींं थे जो 2 तरफ बात करते. उन्हें तालिबानी लाख कट्टरता के बावजूद अमेरिकियों से ज्यादा पसंदा थे.
अफगानों से साबित कर दिया है कि न ब्रिटिश, न रूसी, न पाकिस्तानी और व अमेरिकी उन पर राज कर सकते हैं. इन अफगानों में बीसियों कबीले हैं जो एकदूसरे का सिर काटते रहते हैं पर जब मामला बाहरी कब्जे का आता है तो सब एक जुट हो जाते हैं. अफगानों ने भारत पर राज किया अपने उत्तर में कर्ई देशों में राज किया है. पर उन्हें हराना हर देश के लिए मुश्किल रहा है.
इस का यह मतलब नहीं कि अफगान खुश रहे हैं. यह आजादी उन की आदत है तो धर्म की गुलामी भी इन के गले पर हैं. जब से इन्होंने इस्लाम अपनाया है ये कट्टर होते गए. इस्लाम ने पहाड़ी कबीलों के मन में एक गरूर भर दिया जो 1000 साल से चला आ रहा है. अफगान सल्तनत के निशान दिल्लर में भी हैं और वे इस्लाम के सहारे फैले क्योंकि इस्लाम ने कम से कम ऊपरी तौर पर आदमी आदमी को अलग न समझता. हां औरतों को तो वे ङ्क्षहदुओं की तरह गुलाम ही मानते हैं.
भारत के लिए तालिबानी जीत एक खतरे की निशानी है. अफगान साम्राज्य कभी कश्मीर तक फैला था. कब वे कश्मीर में दखल देने लगे कह नहीं सकते. उन के तौरतरीके अलग हैं क्योंकि वे जान लेते हैं तो देते भी हैं. हमारी सेना के लिए यह खतरा है. इतना ही बड़ा खतरा ये तालिबानी पाकिस्तानी सेना के लिए हैं. चाहे तालिबानियों को जन्म तब की पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने दिया हो, आज यह खूंखार तेंदुआ पाकिस्तान पर भी झपट सकता है. इमरान खान अभी से काबुल की चिरौरी करनी शुरू कर दी है क्योंकि उन्हें मालूम हैं कि इन तालिबानियों के लिए इस्लामाबाद कुछ ज्यादा दूर नहीं है और अब न चीन बचाने आएगा, न रूस न अमेरिका.