शादी के बाद 2-3 साल में यदि पति की मृत्यु हो जाए और चाहे बच्चे हों या न हों, मृत पति के घरवालों को जितना सदमा बेटे को खाने का होता है उस से ज्यादा यह होता है कि अब बेटे की संपत्ति की हकदार विधवा पत्नी भी है. अगर बिना वसीयत के मौत हुई है तो कानून के अनुसार मृत पति के वारिसों में पत्नी, बच्चे और मां होते हैं.
इस का अर्थ है कि जो संपत्ति मृत पति के पिता, दादा की दी या किसी और ढंग से युवा बेटे के नाम हुई, उस में उस युवा पत्नी का एक बच्चा हो तो दोतिहाई और 2 बच्चे हों तो तीनचौथाई हिस्सा हो जाएगा. वर्ष 1956 में कानून निर्माताओं ने मां को बेसहारा न रखने के लिए उसे बेटे की संपत्ति में हकदार बना दिया था, इसलिए कुछ हिस्सा वह पा सकती है.
कितने ही मामलों में विधवा और उस की ससुराल वाले लड़ाई करते हैं कि मृत पति की संपत्ति को बांटें कैसे. हाल में एक मामले में पति की मृत्यु शादी के 8 माह में हो गई और बच्चा पति की मृत्यु के बाद हुआ. बच्चा न होता तो पति की संपत्ति का आधा हिस्सा मां को मिलता पर बच्चा हो जाने के बाद वह हिस्सा केवल एकतिहाई रह गया. चोट पर नमक तब छिडक़ा गया जब पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया और ससुराल के मकान में पति के हिस्से पर हक जमाने लगी. इस से ज्यादा मृत बेटे के घर वालों को दुख तब होता है जब विधवा बहू दूसरा विवाह कर ले क्योंकि उस का मृत पति की संपत्ति पर हक बना रहता है.
इस का अर्थ है कि जो मांबाप मृत बेटे के साथ 20-30 साल से रह रहे हैं उन का संपत्ति पर जरा सा हक और वह लडक़ी, जो 2-3 साल साथ रहे, बड़ा हिस्सा ले जाए. इस पर अदालतों में बरसों विवाद चलते हैं. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उन की बेटे की विधवा मेनका गांधी के बीच ऐसा ही एक विवाद हुआ था जो अदालतों में संजय गांधी की विमान दुर्घटना में हुई मृत्यु के बाद हुआ था. संजय गांधी की संपत्ति का एक हिस्सा इंदिरा गांधी को मिला जो उन्होंने तुरंत संजय के उस समय नाबालिग बेटे वरुण गांधी के नाम कर दिया था.
अब विरासत के कानूनों में परिवर्तनों की जरूरत है. बजाय मुसलिम कानूनों के पीछे पडऩे के भारतीय जनता पार्टी को हिंदू औरतों की सुरक्षा के कानून बनाने चाहिए. यह भी देखना होगा कि शादी के 2-4 महीने या 2-4 साल में पति की मृत्यु के बाद पत्नी को कितनी संपत्ति मिले या न मिले.
आजकल युवक शादी से घबराने लगे हैं क्योंकि आज कानून नई पत्नियों को भी बहुत अधिकार देता है. मातापिता बेटों के नाम पैसा करने से घबराते हैं. इकलौती बेटियों के मातापिता भी चिंतित रहते हैं कि उन का दामाद उन की संपत्ति के लिए कुछ गलत न कर दे. कानूनों पर चर्चा नहीं होती क्योंकि हिंदूमुसलिम करने में वोट मिलते हैं और हिंदू औरतों को छेडऩा मिड के छत्ते में हाथ डालना है.