कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव जीतने पर देश के सभी गरीबों को मिनिमम गारंटेड इनकम यानी शर्तिया न्यूनतम आमदनी का वादा कर के वही किया है जो नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव के दौरान 15 लाख रुपए हरेक के अकाउंट में डालने की बातें घुमाफिरा कर कह कर किया था. इस तरह के चुनावी वादे असल में सड़क पर दवा या अंगूठी बेचने वालों के वादों ‘शर्तिया नामर्दी दूर होगी’, ‘धन टपकेगा’, ‘सारे कष्ट दूर होंगे’, ‘शराब से छुटकारा मिलेगा’, ‘प्रेमिका वश में आ जाएगी’ जैसे होते हैं.
जेब से थोड़े से पैसे गए या वोटिंग के दिन वोट गया, उस के बाद कौन पूछता है कि वादे का क्या हुआ? यह वादा, वैसे, पूरा करना असंभव नहीं है. जीने के लिए एक आम भारतीय को बहुतकुछ नहीं चाहिए होता, इसीलिए हमारी जनसंख्या इतनी बड़ी है. यहां की उपजाऊ जमीन खानेभर को कुछ न कुछ दे ही देती है. न्यूनतम आय का वादा पूरा करना, जीतने के बाद कांग्रेस के लिए यह कहना मुश्किल न होगा. मुख्य सवाल तो यह है कि कांग्रेस जीतेगी या नहीं.
देश की बड़ी जनता आज भी पंडों, संतों की सुनती है जो भाजपा के राज में अपना सुखमय भविष्य देखते हैं. उन की जो मौज इस राज में हो रही है, वह पहले नहीं होती थी. केवल पुराणों में ही इस का जिक्र है. निठल्लों को संत या जनता का मार्गदर्शक मान लेना, इस देश की बुरी हालत के लिए जिम्मेदार है. यहां तो पढ़ेलिखे भी तथाकथित चमत्कारों में भरोसा कर रहे हैं और लोगों को अपने पर कम, ऊपरवाले पर भरोसा ज्यादा है चाहे वह भाजपा का प्रधानमंत्री हो, कांग्रेस का. जब लोगों को अपने पर विश्वास न हो और वे सोचते हों कि अनाज खेतों में, सामान कारखानों में दैविक कृपा से पैदा होता है, तो उन के बीच इस तरह के वादे कारगर होते ही हैं.