पार्टियों के झगड़े देश की सरकारों को ढंग से चलाने में कितने आड़े आ रहे हैं. यह कोई आज की बात नहीं है. वैसे तो रामायण और महाभारत दोनों में जड़ में परिवारों के झगड़े थे, न बाहरी जने का हमला, न जनता की नाराजगी, न कुदरत का कहर. इन पौराणिक ग्रंथों से निकले देवीदेवता आज भी पूरी तरह पूजे ही नहीं जाते, उन के नाम पर एकदूसरों का सिर कलम भी किया जाता है. पर लोग भूल जाते हैं जो सत्ता में बैठे होते हैं, उन के आपसी झगड़े कितने भारी पड़ते हैं.
जब भी सत्ता के लिए घरवालों में झगड़ा होता है, जनता की भलाई के कामों पर ब्रेक लग जाता है. सत्ताधारी का सारा समय तो अपनी गद्दी बचाने में लग जाता है. कल तक जो कंधे से कंधा मिला कर बोझ ठो रहा था वह कंधा तोडऩे में लग जाता है. फिलहाल यह गरमी महाराष्ट्र में ढो रही है जहां उद्धव ठाकरे और एकनाथ ङ्क्षशदे शिवसेना को चकनाचूर करने में लगे हैं.
एकनाथ ङ्क्षशदे अपने साथ 30-35 विधायकों को ले कर भारतीय जनता पार्टी के खेमे में चले गए है और वहां उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया. बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे अब अपने पिता की बनाई पार्टी का बचाखुचा हिस्सा संभालने में लगे हैं. आमतौर पर इस तरह ने झगड़े भाइयों में होते है पर यहां ङ्क्षशदे शिवसेना के कार्यकर्ता थे लेकिन उन का रौब सब घरेलू सदस्य का सा था.
इस झगड़े में महाराष्ट्र को जनता के भले के लिए ही रहे हर काम में अड़चन आने लगी है. फैसले टल रहे हैं. फाइलों जमा हो रही हैं, सप्लायर, ठेकेदार बदले जा रहे हैं. हर पुराने काम को जांच की कोशिश की जा रही है ताकि साबित किया जा सके कि उद्धव ठाकरे ने कोई बेइमानी की और उन्हें बिहार के लालू यादव और हरियाणा के ओमप्रकाश चौटाला जैसे जेलों में सड़ाया जा सके.