पश्चिम बंगाल की आग उगलने वाली नेता ममता बनर्जी को सारदा चिटफंड की लगाई आग से अब अपने पल्लू को बचाना पड़ रहा है. धीरेधीरे यह साफ हो रहा है कि सारदा चिटफंड से तृणमूल कांगे्रस के नेताओं को धन मिल रहा था और तभी सारदा चिटफंड गांवगांव पहुंच गया था. गरीबों को मोटे ब्याज का लालच दे कर उस ने हजारों करोड़ रुपए खा लिए थे, जो कहां गए, पता नहीं है. इसी पैसे से कई सांसदों ने चुनाव लड़ा था, यह बात अब जांच एजेंसियों के जरिए मालूम हुई है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आरोपी मंत्रियों को बचाना मुश्किल हो रहा है.

यह पक्का है कि तृणमूल कांगे्रस को चुनाव लड़ने के लिए कहीं से तो पैसा मिला ही है. चूंकि वह उद्योग विरोधी है इसलिए यह पैसा उसे कोलकाता के उद्योगपतियों ने नहीं दिया था. कोलकाता के उद्योगपति व व्यापारी तो धर्मभीरु, अंधविश्वासी हैं. वे भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दे कर पुण्य कमाना चाहते हैं. सारदा चिटफंड विशुद्ध बंगाली उपक्रम था जिस ने गरीब जनता का पैसा जमा कर के गरीबों की सरकार बनाने में सहायता की थी पर अब लेने के देने पड़ रहे हैं. गरीबों की पार्टियों को फंड की हमेशा दिक्कत रहती है. मायावती, समाजवादी दल, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान जैसों को पैसा जमा करना हमेशा भारी रहा है क्योंकि उन के कार्यकर्ता कर्मठ हों तो भी न तो गांठ से पैसा खर्च कर सकते हैं और न ही चाहते हैं. उन्हें हर ऐसा आसामी भाता है जो थोड़ाबहुत पैसा दे जाए.

तृणमूल कांगे्रस ने सारदा चिटफंड का सहारा लिया हो तो कोई बड़ी बात नहीं. अब अमीरों की पार्टियां कांगे्रस व भारतीय जनता पार्टी उस सहारे को छीन कर ममता बनर्जी को नष्ट कर के ही मानेंगी. यह पक्का दिख रहा है कि ममता बनर्जी अब आक्रामक न हो कर सुरक्षात्मक रवैया अपनाए हुए हैं और वे ज्यादा दिन टिक न पाएंगी. उन के 2 मंत्री जेल में हैं और सत्ता में होने के बावजूद ममता अपने मंत्रियों को जेल से निकाल नहीं पा रहीं. उन के पास सिवा रोनेचिल्लाने के, कुछ खास नहीं है. ममता बनर्जी जैसी जुझारू नेता को खयाल रखना चाहिए था कि वे पैसे वालों को बांट कर रखें. यदि बड़े पैसे वालों, टाटा जैसों का विरोध करना है तो उन्हें छोटे व्यापारियों का संरक्षक बनना चाहिए था, जो पार्टी को लगातार पैसा दे सकें. जो लोग सारदा चिटफंड के खजाने भर सकते थे वे ममता बनर्जी को कुछ न देंगे, यह नहीं माना जा सकता. चिटफंड, चीट फंड यानी धोखा फंड है, यह लोगों को अरसे से मालूम है और जो सरकार में हैं वे तो जानते ही हैं. ममता उन के चक्कर में फंसीं, यह बात यह बताने को काफी है कि आग उगलने वाले गलों को किस तरह ईंधन की भी जरूरत होती है.

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