‘हमारे मंदिरों को तोड़ कर मसजिदें बनाने वाले आज भी हम पर गुर्राते हैं’ जैसे वाक्यों से आज का भारत का सोशल मीडिया लदा पड़ा है. वोटों की खातिर गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं. तरहतरह की नफरती कहानियों को फैलाया जा रहा है. हर फूलपत्ती, तराशे हुए पत्थर को किसी भगवान का नाम दे कर नया इतिहास लिखा जा रहा है. जैसा हर समाज में होता है, धर्म के दुकानदार किसी भी आंधी, बिजली की चमक, बाढ़, बारिश, बर्फ गिरने को चमत्कार कह कर साबित कर डालते हैं कि देखो भगवान है, यह भगवान का किया है.

आज का हिंदू समाज इस बात को ले कर खुश हो रहा है कि वह 500 या 700 वर्षों पहले हुए वाकए को ले कर अपनी जीत मना सकता है.

हिंदू समाज की तार्किक शक्ति इतनी कुंद हो गई है कि वह अपनी कमजोरी को अपना बदला लेने का हक मानता है. सदियों पहले क्या हुआ था, इस का आज कोई सुबूत नहीं है और जरूरत भी नहीं है. सदियों तक हिंदू समाज विदेशी राजाओं के राज का हिस्सा रहा है. हालांकि, दुनिया के राजाओं का इतिहास परखें तो पता चलेगा कि लगभग सभी समाज कभी न कभी लंबे समय तक किसी तरह के विदेशी आक्रांताओं के अधीन रहे और जब विदेशी आक्रांता उन में घुलमिल गए तो कोई और दूसरा विदेशी आक्रांता सिर पर आ चढ़ा तो उस समाज को आधीपौनी मुक्ति पिछले आक्रांता से मिल सकी.

मुसलिम राज से पहले कब कौन से विशुद्ध भारतीयों ने अपनी इच्छा से चुने हुए राजा के अधीन रह कर जीवन जिया है, इतिहास इस बारे में कम ही बताता है. इतिहास तो जीतने वाले आक्रांता ही लिखवाते हैं और वे तरहतरह के निशान छोड़ जाते हैं. वे कैसे राजा बने, यह इस इतिहास में स्पष्ट नहीं होता. उस समय की जनता बाहरी व्यक्ति के खिलाफ उठ खड़ी क्यों नहीं हुई, यह भी पता ही नहीं चलता.

इतिहास के सहारे वर्तमान में वोट पाने की कला अब भारतीय राजनेताओं ने सीख ली है क्योंकि जब आर्थिक या सामाजिक मोरचों पर कुछ उपलब्धि न हो तो इतिहास का ढोल बजाना बहुत आसान है. जो ज्यादा शोर मचा सकता है, वह सारी बातचीत का मुंह मोड़ सकता है. आज देश में बात एक ही हो रही है कि कौन सा मंदिर कब तोड़ा गया. अभी 2-3 जगहों की बातें हो रही हैं, कल को और ढूंढ़ निकाले जा सकते हैं.

इस नई कहानी से होगा क्या? क्या किसान का अन्न ज्यादा पैदा हो जाएगा? क्या अस्पतालों के बैड बढ़ जाएंगे? क्या फ्लाईओवरों के नीचे रह रहे भूखों के लिए मकान उग जाएंगे? क्या क्लासों में ज्यादा अच्छी पढ़ाई होने लगेगी? उलटे, इन सब जगह जो भी हो रहा है वह और धीमा हो जाएगा. देश में खुदती खाइयां चौड़ी हो जाएंगी. एकदूसरे के प्रति भेदभाव बढ़ जाएगा और भेदभाव का यह वायरस धर्म से जाति और फिर घरघर में घुस जाएगा.

एक टूटाफूटा समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता. एक विशाल पत्थर को उठाने के लिए हजारों हाथों का जोर एकसाथ चाहिए, अलगअलग नहीं. देश की जनता को इतिहास, परंपरा, पूजापाठ की विधि के नाम पर बांट कर जो विनाश किया जा रहा है, वह देश को दशकों पीछे ले जाएगा.

इस का अर्थ है, हर घर का अपना अच्छे कल का सपना धूमिल हो जाएगा. जीते तो हम रहेंगे क्योंकि उत्तर कोरिया वाले भी जी रहे हैं, सोमालिया वाले भी और हैती वाले भी.

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