गुजरात चुनावों के 4-5 माह पूर्व पक्का ही लग रहा था कि गुजरात विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी 2014 के लोकसभा चुनावों वाला समर्थन पाएगी जिस का अर्थ होता 182 में से 140-160 सीटें. 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस भाजपा से सिर्फ 17 सीटों पर आगे रह पाई थी.

इस तरह 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को 165 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में बहुमत मिला था. इसी को आधार मान कर अमित शाह 160 सीटों पर जीतने का दावा कर रहे थे. अब राहुल गांधी को 83 सीटों पर सफलता मिली और इस तरह राहुल गांधी ने भाजपा से अंदाजे से ज्यादा 60-62 सीटें छीन कर चाहे पूरी जीत हासिल न की हो, यह दर्शा दिया है कि वे कांग्रेस को अब लड़ने के मूड में ला रहे हैं.

कांग्रेस में ऐसे कोई सुर्खाब के पर नहीं लगे हैं कि अगले चुनावों में उस की जीत के बाद देश में उन्नति के घोड़े दौड़ने लगेंगे और सर्वत्र शांति व समृद्धि छा जाएगी. कांग्रेस की मौजूदगी का बस इतना फर्क होगा कि भारतीय जनता पार्टी का परिचित पर अघोषित महंतवादी एजेंडा लागू होने में रुकावटें लगने लगेंगी. आजकल सरकारी फैसलों में हर जगह यह दिख रहा है कि सरकार अपनी वैसी ही मनमानी करती है जैसी मुहूर्त निकालने, कुंडली मिलाने, मंदिरों के दरवाजे खोलने पर दिखती है.

कांग्रेस को जो समर्थन सब जगह मिलना बंद हुआ था वह गुजरात के प्रचार के बाद मिलने लगेगा. पंजाब के कई शहरों के चुनावों में कांग्रेस की जीत और अकालीभाजपा गठबंधन का फिसलना कुछ ऐसा ही दिखाता है. राजस्थान में भी यही दिखा. पहले महाराष्ट्र के नांदेड़ में दिखा था. सोनिया गांधी की शारीरिक कमजोरी का जो नुकसान कांग्रेस को हुआ था अब राहुल गांधी की सक्रियता से कम हो सकता है.

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