हिंदू धर्म की जातिवादी सोच के पीछे पाप और पुण्य बहुत ज्यादा हावी हैं. हर रोज समझाया जाता है कि पिछले जन्म के कामों के हिसाब से आज का भाग्य लिख दिया जाता?है और सरकार व समाज को गलत ठहराने की कोशिश न करना. जब से राजाओं का राज गया और लोकतंत्र मजबूत हुआ, तब से धर्म की यह अफीम भरी चाशनी कि भाग्य और भगवान पर ही भरोसा करो, कम हो गया. लोगों को पता चलने लगा कि शासकों के फैसले ही उन के सुखों की चाबी है. अगर सरकार अच्छी है, तो जनता फलेगीफूलेगी और खराब, तो न कानून चलेगा, न सड़कें होंगी और न जनता को सुख मिलेगा.

भारतीय जनता पार्टी ने दशकों तक यह कह कर सत्ता में आना चाहा कि वह हिंदू धर्म की रक्षक है और हर हिंदू का फर्ज है कि धर्म को बचाने के लिए उसे वोट दे, पर धीरेधीरे अहसास हो गया कि जनता को लोकतंत्र में सरकार से कुछ और ज्यादा उम्मीदें हैं. इंदिरा गांधी 1971 में ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर जीती थीं. उस से पहले तो उन्हें अंगरेजों से छुटकारा दिलाने का इनाम नाम मिलता था. पश्चिम बंगाल और केरल में कम्यूनिस्ट गरीबों व मजदूरों के मसीहा बन कर राज कर सके. दूसरे राज्यों में पार्टियों ने सदियों से सताई, दबाई व कुचली जमातों के दर्द और बेबसी को भुनाया और जीत हासिल की. जब भाजपा को अहसास हो गया कि गरीब, लाचार की आवाज सुनना जरूरी है, तो उस ने विकास की बात करनी शुरू की और 2014 के लोकसभा व 2017 के विधानसभा चुनावों में वह बाजी मार ले गई.

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