सरकारी आदमी हर गुनाह से ऊपर होता है. वह तो नेताओं से भी ऊपर है. वह ग्रंथों में वर्णित श्रेष्ठों की तरह है जिन्हें कोई दंड नहीं दिया जा सकता. स्मृतियों में निर्देश है कि श्रेष्ठ को तो हत्या का भी पाप नहीं लगता. हत्या के अपराध में उस का अपमान करना ही काफी दंड होता है. इसलिए जब नोएडा के एक इंजीनियर यादव सिंह के घर पर छापे में 1,000 करोड़ रुपए की संपत्ति मिलने की खबर आई तो मोटे शब्दों में छपा था कि दंड के नाम पर उन का पद छीन लिया गया है और उन्हें सूखी जगह पर भेज दिया गया है.

सुब्रत राय को सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर रखा है. ओमप्रकाश चौटाला बंद हैं. जयललिता जेल में रहीं और अब जमानत पर हैं. कितने ही व्यापारी जेलों में हैं. आम आदमी तो सरकारी ईंट उठाने के जुर्म में भी महीनों की कैद काट आते हैं पर सरकार के आदमी को कोई छू नहीं सकता. सरकारी नौकर, पुलिस वाला व सैनिक सब इन गुनाहों से ऊपर दिखते हैं. अमेरिका में भी कुछ ऐसा ही है. वहां की अदालत ने एक गोरे पुलिस अधिकारी को बरी कर दिया जिस ने निहत्थे अश्वेत युवा को गोली मार दी थी क्योंकि अफसर के अनुसार वह भागने की कोशिश कर रहा था. सरकारें अपने आदमियों के प्रति इतनी संवेदनशील रहती हैं कि कहीं उन्होंने विद्रोह कर दिया तो पूरा शासन ही बिगड़ न जाए. यही नहीं, उन्हें यह डर भी होता है कि कहीं सरकारी अफसर सरकार की निरंकुशता की पोल न खोल दें. अदालतें रामपाल जैसे ढोंगी के लिए तो गिरफ्तारी के आदेश दे सकती हैं पर एक रिश्वतखोर जज, आईएएस अफसर, पुलिस आयुक्त को अदालत में पेश होने तक के आदेश देने से कतराती हैं.

इस अफसर के पास नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना ऐक्सप्रैसवे प्राधिकरणों का चार्ज था और यह मायावती के करीबी लोगों में था. इस अफसर के समय लाखोंकरोड़ की जमीनें दिल्ली व आगरा के बीच किसानों से जबरन ली गईं और उन्हें बिल्डरों को बेचा गया. इस छीनाझपटी में लेनदेन तो होना ही था. गरीब किसानों की जमीनों पर अब रेस ट्रैक बन रहे हैं, होटल बन रहे हैं, कीमती मकान बन रहे हैं, फर्राटे से गाडि़यां दौड़ सकें ऐसी सड़कें बन रही हैं. ये सब मुफ्त में तो नहीं होता. सैकड़ों को नजराने देने होते हैं. चूंकि अंत में जनता इस नजराने को जमीन की कीमत का हिस्सा मान लेती है, इसलिए वह कोई आपत्ति नहीं करती. बात आईगई, हो जाती है.

इस अफसर पर गाज क्यों गिरी, यह तो शायद कभी पता न चले क्योंकि सरकार कभी ही अपने लोगों पर पर भी छापा मारने की कार्यवाही करती है. चाहे लोकपाल बनवा लो, लोकायुक्त बनवा लो या केंद्रीय जांच ब्यूरो लगवा लो, जब केंद्रीय ब्रांच ब्यूरो के प्रमुख पाकसाफ न साबित हो रहे हों, फिर भी खुले घूम रहे हों तो अदने से अफसर पर छापा मारा जाना किसी रंजिश का नतीजा ही है, रिश्वतखोरी दूर करने का प्रयास नहीं, यह समझ लें.w

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