सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है. क्या आधार नंबर को टैलीफोन, बैंक अकाउंट, परिचयपत्र, आयकर, पैनकार्ड से जोड़ना अनिवार्य होना चाहिए. दुनियाभर में निजता एक गंभीर मामला बनता जा रहा है. जहां चीन और रूस में सरकारें जानकारी को नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं, वहीं लोकतांत्रिक देशों में इस का उपयोग हर नागरिक के बारे में और जानने व उस को अपना माल बेचने को उकसाने के लिए किया जा रहा है. आधार जैसे तरीके से एकत्र की गई जानकारी की जम कर खरीदफरोख्त हो रही है. फेसबुक, व्हाट्सऐप, गूगल भी जबरन आम नागरिक की जानकारी जमा कर लेते हैं. यही जानकारी फिर नागरिकों को बहलानेफुसलाने में इस्तेमाल करते हैं.

अब आप के मैडिकल रिकौर्ड भी जमा हो रहे हैं. आप किसी भी अस्पताल में चले जाइए, आप का आधारकार्ड भी मांग लिया जाएगा और आधार से जुड़ी आप के खून की बूंदबूंद की जानकारी एक जगह इकट्ठी होती रहेगी. आप का मैडिकल रिकौर्ड अब सरकारी होता जा रहा है. आप का मैडिकल इतिहास गोपनीय होना चाहिए पर हर बड़े अस्पताल में यह बीसियों कंप्यूटरों में पड़ा है. आप का ईसीजी, स्कैन रिपोर्ट, लैब रिपोर्ट, कब किस डाक्टर ने आप को देखा सब कंप्यूटर पर है. जल्द ही आप ने कौन सी दवा कितनी खाई, यह जानकारी भी आधार से जुड़ी फार्मेसी से एक जगह जमा हो जाएगी. आप किसी से कोई बात छिपा नहीं सकेंगे. आप के हर पल पर सरकार का नियंत्रण होगा.

सरकारें चाहेंगी कि आप तंदुरुस्त गुलाम रहें, इसलिए चीन की तरह अंक देना शुरू कर देंगी, जैसे क्रैडिट कार्ड या हवाईजहाज वाले आप को पौइंट्स देते हैं. चीन तो सड़क पर चलते हुए अपने लाखों कैमरों से नागरिकों को देख रहा है और हरदम नागरिकों को अनुशासित कर रहा है. भारत में भी आधार को यदि सरकार की मनचाही छूट मिली तो यही होगा.

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