जब देश का पूरा समय और ताकत गरीबी, भुखमरी, बीमारी, पढ़ाईलिखाई पर लगना चाहिए, देश के नेता या तो हिंदूमुसलिम दंगे करा रहे हैं या तीर्थयात्राएं करा कर लोगों को धर्म की अफीम पिला कर सुला रहे हैं. देशभर की आंखें एक तरह से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे बाबरी मसजिद मामले की सुनवाई पर लगी हैं. हिंदू गुट उसे ही रामजन्म भूमि मानते हैं और मुसलिम एक पुरानी मसजिद.

सुप्रीम कोर्ट ने अभी जिरह के दौरान कहा है कि वह इस मामले को सिर्फ जमीन की मिलकीयत का मामला मान रही है और रामजन्म से उस का कोई लेनादेना नहीं है. पर बहस के दौरान हिंदू पक्ष बारबार किसी हिंदू मंदिर की बात ही कर रहे हैं. और उन्हें तथ्यों से नहीं भाजपा से मतलब है. 1526 से, जब से कुछ फैक्ट मालूम हैं, यहां मसजिद ही है पर भगवा जमात इसे मंदिर साबित करने में लगी है.

सच यह है कि इस जगह अगर मसजिद दोबारा बने तो मुसलमानों की हालत चमक नहीं जाएगी और अगर राममंदिर बन गया तो हिंदू सुधर नहीं जाएंगे. यह मामला कोरा बहकाने का है. हिंदुओं का एक कट्टर हिस्सा किसी तरह साबित करने में लगा है कि 1947 के विभाजन के बाद भारत केवल हिंदुओं का है, संविधान चाहे जो भी कहता रहे.

हिंदू हों या मुसलमान मंदिरों और मसजिदों से किसी की कभी हालत नहीं सुधरी है. धर्म तो केवल दान की शक्ल में टैक्स वसूलता है और आम भक्त को गुलाम बना कर उसे वह करने को मजबूर करता है जो वह नहीं करना चाहता. तिलक, तीर्थ, नमाज, टोपी, क्रौस, कड़ा यह सब धर्मों की साजिश है कि किसी तरह अपने भक्तों को बेवकूफ बनाए रखो. उन्हें एकदूसरे से लड़वाते रहो और धर्म के नाम पर कुरबानी के लिए उकसाते रहो.

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